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21.5.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा की कविता - '' विश्वास है हाथों में हमारे ! ''




















( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के काव्य - संग्रह - '' अक्षरों के सेतु '' से ली गई 1973 में रचित रचना )


विश्वास है हाथों में हमारे


खजैले कुत्ते का त्रास कौन जानता है ,
हकलाहट को अनुप्रास कौन मानता है ,
तेली का बैल हो या इक्के का घोड़ा –
लाशों के लिए युद्ध कौन ठानता है ?


फिर
अंधों के आगे
ये सब बनाव क्यों है ?
गूंगों और बहरों से भी दुराव क्यों है ?
शोषण का ऐसा कायर स्वाभाव क्यों है ?


जानते हैं हम
लंगड़ी – बौनी ज़िन्दगी का
बैसाखियों वाला जुलूस
कुछ पन्नों तक जायेगा ,
और
उपलब्धियाँ उसकी
आम नहीं , कुछ ख़ास के ही दाय में आयेंगी |


हम यह भी जानते हैं
चंद झंडाबरदारों का प्रवक्ता
यह इतिहास असत्य है ,
जो
नहीं दुहराता
जान – लेवा संघर्ष
हम – जैसे सामान्य जनों का |


पर हम जानते हैं
शक्ति और सामर्थ्य बढ़ती हैं
जिस तेजी से / बह जाती हैं उसी गति से ,
और
रह जाते हैं
असमर्थताओं के ढूह
और उन पर खड़े चंद बुत ,
- असफलताओं के |


इसलिए
विश्वास है
हाथों में हमारे
सदैव नहीं रहेगा
अब घुटन और यंत्रणाओं का
- एक छोर |


     - श्रीकृष्ण शर्मा
-------------------------------

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई

 माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867


8 comments:

  1. इस रचना को शामिल करने के लिए आपको धन्यवाद मीना जी |

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  2. धन्यवाद जोशी जी |

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  3. ऐसी उत्कृष्ट रचनाओं से ही हम जैसे नवयुवकों को बहुत कुछ सीखने के साथ ही कुछ लिखने की भी प्रेरणा मिलती है । सादर प्रणाम । - अखिलेश कुमार शुक्ल

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    1. आपने इस रचना को पसन्द किया इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ अखिलेश जी |धन्यवाद |

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  4. उत्कृष्ट सृजन ! रचना की भावभूमि ऊंचाई लिए हुए है। ह्रदय को आंदोलित करती हुई रचना ! --ब्रजेन्द्र नाथ

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  5. ब्रजेन्द्र जी आपको बहुत - बहुत धन्यवाद | आप जैसे कविता के भावों के पारखियों से ही आज साहित्य जिन्दा है |

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  6. ज़िंदगी की तह को खोलता सारगर्भित सृजन आदरणीय सर.
    सादर

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