यह गीत श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " बोल मेरे मौन " ( गीत-संग्रह ) से लिया गया है -
इससे तो था भला
इससे तो था भला मौन ही मैं रहता !!
सुनी-अनसुनी जब तुमने बातें कर दिन,
तब भी तो मैं गया सिर्फ़ अपनी कहता !
इससे तो था भला मौन ही मैं रहता !!
सच है, मैं अपनी पीड़ा में खोया था ,
तुम डूबे थे अपने सुख की यादों में,
चाह रहा था व्यथा-कथा अपनी कहता,
पर तुम फागुन थे, था सावन-भादों मैं ;
कैसे भला बात फिर बननी थी बोलो ?
सम्मुख रहकर भी गर होंठ न तुम खोलो,
ऐसी निर्ममता ? आँसू क्या, मन टूटा
कब्र सरीखा मौन और कब तक सहता ?
इससे तो था भला मौन ही मैं रहता !! **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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