यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -
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30.11.20
28.11.20
कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " मैं खड़ा हूँ हारकर "
यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
मैं खड़ा हूँ हार कर
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ?
सामने मेरे खड़ा
चम्बल नदी – सा क्रुद्ध
भरका |
है कहाँ पितृव्य का आशीष
वाला हाथ ,
माँ की है कहाँ ममतामयी वह
गोद ,
जो दुख दर्द सहलाते कहाँ है
अब
प्रिया के वे प्रियंका नैन ?
उफ़ , कहीं कोई नहीं ,
जो दे तनिक आश्वस्ति ,
लेकिन देह के नीचे
अचानक एक ठण्डा और चिकना
साँप – सा सरका |
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ?
लालसाएँ / तितलियों के पंख –
सी
फेंकी समय ने नोंच
प्रेत – नख – तन और मन को
दे रहे हैं विष – भरे व्रण
/ नोंच और खरोंचे ,
औ’ खड़ा मैं हार कर जैसे कि
लम्बी जंग |
अब होकर अपाहिज इस तरह
जाऊँ , कहाँ जाऊँ
ओह , बर्बर और खूनी
व्याघ्र – जैसी दृष्टि से
बच ?
दे सकेगी ज़िन्दगी
इस मौत को कब तक भला चरका ?
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ? **
- श्रीकृष्ण शर्मा
----------------------------------------------------------------------------संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
26.11.20
कवि श्रीकृष्ण शर्मा - " जीवन परिचय " ( पुस्तक - अक्षरों के सेतु से )
जीवन परिचय
एवं स्व. श्रीमती जावित्री देवी शर्मा
जन्म : 17 अक्टूबर , 1933 ई.
( आगरा ) उ. प्र.
शिक्षा : एम. ए. ( हिन्दी ) , बी. एड.
प्रकाशन : * देश की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में सन 1952 से कविता/गीत/ बालगीत आदि का प्रकाशन |
· आकाशवाणी के विभिन्न
केन्द्रों से गीतों का प्रसारण |
· तेलगु और बँगला से हिन्दी
में अनेक कविताओं का रूपांतरण |
· मरीचिका , त्रिकाल , ताज की
छाया में , हिन्दी के मनमोहक गीत , हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ मुक्तक , स्पन्दन ,
सप्तपदी – 5 आदि समवेत काव्य – संग्रहों में रचनाएँ संकलित |
·
आदिम जाति कल्याण विभाग ,
मध्यप्रदेश शासन के जिला छिन्दवाड़ा के समस्त हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों
की संयुक्त वार्षिक पत्रिका ‘ चेतना ’ का 1985 से 1990 तक सम्पादन और प्रकाशन |
सम्मान : * साहित्य एवं हिन्दी – सेवा के लिए अनेक
संस्थानों द्वारा सम्मानित | **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
23.11.20
कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " निशि - दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी "
यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिए गया है -
निशि – दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
सिर पर उजियारे की पगड़ी
बाँधे रहा दिया ,
तम अनियारे रखा , देह में
तब तब रक्त जिया ;
काल – रात्रि में ज्योति –
केतु घर – घर फहराये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
पर अब भी शातिर अँधियारा
पसरा धरती पर ,
नक्षत्रों का बोझ लिये
बेमानी है अम्बर ;
मावस ने दहशत के ऐसे व्यूह
बनाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
अब न दिवाली निशि – दिन अब
धृतराष्ट्र व गांधारी ,
और हस्तिनापुर में है
दुर्योधन की पारी ;
जिसकी खातिर भीष्म – कर्ण ने
शस्त्र उठाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
बचकर रहना शकुनी की तुम
घातक चालों से ,
अभिमन्यु के बधिकों औ’
लाक्षाग्रह वालों से ;
मारो ज्यों न भीष्म से
अन्यायी बच पाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !! **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
22.11.20
कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " दीप "
दीप
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " अपनी मातृभूमि "
अपनी मातृभूमि
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
कवि श्रीकृष्ण शर्मा - अक्षरों के सेतु - " आत्म - कथ्य "
इसे श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अक्षरों के सेतु " ( काव्य - संग्रह ) से लिया गया है -
आत्म – कथ्य
जब मैं छः वर्ष का था और बहिन तीन की ,
चाचा ( पिताजी ) गुजर गये | घर में जो कुछ था , सब उनकी बिमारी में लग गया | अम्मा
ने सूत काता , बोर घिसे , लेकिन बात नहीं बनी | फलस्वरूप बचपन में ही भूख , गरीबी ,
पीड़ा , अभाव , मुश्किलों और मजबूरियों से गहरी पहचान हो गयी | इससे जहाँ संघर्ष
करने की क्षमता आयी , वहीँ दूसरों के दुखों और तकलीफों से भाव – प्रवण ह्रदय की
द्रवणशीलता भी बढ़ी |
आगे चलकर जब मैंने अपने आस – पास देखा ,
सुना और पढ़ा तो इस बाहरी हवा , पानी , खाद आदि के दबाव से भीतर संवेदनशीलता में
पीके फूटे , जो भाषिक संस्कार ग्रहण कर ‘ गीत ’ बन गये | ... मैं मूलतः एक गीत –
धर्मा रचनाकार हूँ | इसलिए 1964 से नयी कविता की ओर प्रवृत होने पर भी अभिव्यक्ति
के स्तर पर मेरी कविताओं में छन्दसिकता अधिक मुखर है , जो रचना में एक लय और गूँज बनाये
रखती है | यह भी स्पस्ट करना चाहूँगा कि सम्प्रेषणीयता की दृष्टि से मैंने शिल्प
के बजाय कथ्य को प्रमुखता दी है |
1964 से 1976 के बीच लिखी गयी इन
कविताओं में वैयक्तिक सुख – दुःख , समाज और राष्ट्र से जुडी चिन्ताएँ और देखे –
भोगे अनुभवों का स्पन्दन है | जिस और जैसे स्थिति ने भी मन को संवेदित किया , वही
भाव कविता / गीत के रूप में मुखर हो उठता है | बढ़ती संवेदन – हीनता , जीवन –
मूल्यों के क्षरण , भ्रष्ट शासन – तंत्र और स्वार्थी व हिंसक व्यवस्था के बीच
अकेले पड़ते साधनहीन लाचार आदमी के दर्द और संघर्ष को वाणी देने का मैंने यत्किंचित
प्रयास किया है , किन्तु इस ‘ यथार्थ ’ ( सत्य ) की अंगुली ‘ शिवम् ’ ( लोकमंगल )
के हाथों में है , जो सृजन की अनिवार्य शर्त है | कुछ कविताएँ प्रकृति और प्रेम को
केंद्र में रखकर लिखी गयी हैं |
सन 1947 – 48 से लेखन - कर्म से जुड़े
रहने औए चाहने के बावजूद अर्थाभाव व अन्य कारणों के चलते मेरा एक भी गीत संग्रह
नहीं छप सका | यद्यपि प्रिय भाई हरीश सक्सेना ने 1956 – 57 में बड़े आग्रहपूर्वक
मेरा गीत – संकलन छापने की पूरी तैयारी कर ली थी ; किन्तु व्यवसायी तो वह थे नहीं |
इसलिए छपने के बाद उसे बेचना , वह भी कविता – संग्रह को , एक बड़ी समस्या थी ,
जिसमें हानि की ही पूरी – पूरी सम्भावना थी अस्तु मैंने उन्हें गीत – संग्रह के
बजाय कहानी – संग्रह या उपन्यास छापने की राय दी और बन्धुवर कामता प्रसाद साहू ‘ उदित
’ से मिलवाया | वे उस समय ‘ काकभुशुंडी पुराण ’ शीर्षकान्तर्गत लघु कथाएँ लिख रहे
थे | बीस – बाईस लिखी थीं |इतनी ही और लिखकर पांडुलिपि दो – तीन महीने में देने का
वादा किया उन्होंने , जो कभी पूरा नहीं हुआ | उनसे निराश होकर बाद में हरीश ने
उपन्यास छापा राजेन्द्र जगोत्ता का ‘ शीशे की दीवार ’ | ( इसकी जानकारी बहुत बाद
में हुई मुझे ) |हश्र – हरीश डूब गए , जगोत्ता बढ़ गये |
इस प्रकार एक बार जो बात टली , सो फिर
टलती ही चली गयी | जगत भैया और अभिन्न बन्धु देवेन्द्र जी व सोम जी का बड़ा आग्रह
रहा कि किसी भी तरह मेरा कम – से – कम एक गीत – संग्रह छप जाये ; किन्तु कोई – न –
कोई समस्या सदैव आड़े आती रही | मुझे प्रसन्नता और सन्तोष है कि विलम्ब से ही
आकांक्षा पूर्ण हो रही है – अभिव्यक्ति का भी तो यही तकाजा है जो प्रकाशन के अभाव
में निरर्थकहै | अब मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा उदारता पूर्वक दिये गये
आर्थिक सहयोग से 68 वर्ष की उम्र में मेरा यह पहला कविता – संग्रह – ‘ अक्षरों के
सेतु ’ – ( जो पच्चीस – तीस वर्ष पूर्व ही पाठकों के समक्ष छपकर आ जाना था )
प्रकाशित हो रहा है | एतदर्थ मैं परिषद् और उसके अधिकारियों के प्रति अपनी
कृतज्ञता प्रकट करता हूँ , विशेष रूप से श्री पूर्णचन्द्रजी रथ , जिन्होंने कुछ
सुझाव भी दिये हैं |
चि० पवन शर्मा को इसकी पांडुलिपि बनाने
तथा तत्परतापूर्वक अन्य सम्बन्धित कार्य निपटाने हेतु आशीषयुक्त मंगलकामनाएँ ही दे
सकता हूँ | इसके प्रकाशन के पीछे सुबन्धु देवेन्द्र जी का निरन्तर दबाव और प्रेरणा
रही है | वे मेरे इतने अपने हैं कि उन्हें धन्यवाद देना प्रकारान्तर से स्वयं को
ही धन्यवाद देना है | भाई डॉ0 श्याम ‘ निर्मम ’ जी ने सीमित समयावधि में इसके प्रकाशन
का दायित्व निभाकर जो सहृदयता और सौजन्य प्रकट किया है , उसके लिए ह्रदय से आभारी
हूँ और आश्चर्यान्वित भी हूँ कि उन्होंने अपना उपनाम ‘ निर्मम ’ क्या सोचकर रखा है
?
इस कविता – संग्रह के सम्बन्ध में मेरा
कोई विशिष्ट दावा नहीं है | इसलिए इसे सुधि पाठकों के हाथों में सौंपते हुए उनकी
हर प्रतिक्रिया के स्वागत हेतु तत्पर हूँ | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
शारदी पूर्णिमा संवत 2059 वि0
( गुरूवार , 1 नवम्बर 2001 ई0 )
विद्या भवन , सुकरी चर्च के पास , जुन्नारदेव ,
जिला – छिन्दवाड़ा ( म० प्र० )
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
20.11.20
कवि श्रीकृष्ण शर्मा - अक्षरों के सेतु ( काव्य - संग्रह ) - " स्मरण "
यह " स्मरण " श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अक्षरों के सेतु " से लिया गया है -
स्मरण
* स्वर्गीय
अम्मा ( माँ जावित्री देवी )और स्वर्गीय चाचा ( पिता श्री पं0 फूल चन्द्र शर्मा )
जो मेरे लिए ढेरों सपने देखते – देखते चल गए |
*
स्वर्गीय मामा श्री पं0 श्री नारायण दत्त ( चार्जमैन )
*
स्वर्गीय जीजा श्री बाबू इन्द्र जीत मिश्र
*
स्वर्गीय भैया पं0 शंकर लाल शर्मा
*
स्वर्गीय गुरुदेव पं0 लोचन प्रसाद पाठक
*
काव्य – गुरु स्वर्गीय दद्दा डॉ0 पद्मसिंह शर्मा ‘ कमलेश ’
*
भैया जगत प्रकाश चतुर्वेदी – मेरे प्रथम कवि मित्र , जिन्होनें मेरे गीतों को सुधारा और
अग्रजवत जीवन को एक दिशा दी |
*
स्वर्गीय भैया डॉ0 वीरेन्द्र सिंह परिहार – जिन्होंने मेरी नौकरी लगवा कर
मुझे पैरों पर खड़ा किया |
*
बन्धुवर देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द’–वर्षों एक–दूसरे की
रचनाओं के हम प्रथम श्रोता रहे, जिससे काव्य-विवेक विकसित
हुआ |
*
बन्धुवर सोम ठाकुर – जिनसे कविता और जीवन की बहुत – सी व्यावहारिक बातें
सीखीं |
*
बन्धुवर चौधरी सुखराम सिंह – श्रेष्ठ गीतकार ; किन्तु
मेरे गीतों के मुक्त कंठ प्रशंसक और प्रेरक |
*
बन्धुवर दीनानाथ श्रीवास्तव – जिन्होनें अनेक समवेत काव्य – संकलनों में मुझे स्थान दिया |
*
बन्धुवर दण्डमूडी महीधर – जिनकी प्रेरणा और सहयोग से तेलुगु की अनेक कविताओं के हिन्दी काव्यानुवाद
किये |
*
बन्धुवर गोकुल चन्द्र अग्रवाल – स्नेही मित्र | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
16.11.20
डॉ० अनिल चड्डा सम्पादक साहित्यसुधा - " साहित्यसुधा का नवम्बर(द्वितीय), 2020 अंक "
मान्यवर,
‘सहित्यसुधा’ के प्रेमियों को यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि ‘साहित्यसुधा’ का नवम्बर(द्वितीय), 2020 अंक अब https://sahityasudha.com पर उपलब्ध हो गया है। कृपया साहित्यसुधा की वेबसाइट पर जा कर साहित्य का आनंद उठायें। आपसे अनुरोध है कि इसमें प्रकाशित सामग्री पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेजें जिससे रचनाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा। आपसे यह भी अनुरोध है कि आने वाले अंकों में प्रकाशन हेतु अपनी मौलिक रचनायें* भेजते रहें। रचनायें वर्ड में यूनिकोड फॉण्ट में टंकित होनी चाहियें । यह सुनिश्चित करने के लिये कि आपकी रचनायें साहित्यसुधा के आने वाले अंक में प्रकाशित हो जायें, कृपया माह के द्वितीय अंक के लिये 25 तारीख तक और प्रथम अंक के लिये 10 तारिख अपनी रचनायें अवश्य भेज दें। इन तारीखों के बाद प्राप्त हुई रचनाओं पर समय और उपलब्ध स्थान के अनुसार ही विचार किया जायेगा।
यदि आप पहली बार रचना भेज रहे हैं और आपने अपना परिचय पहले नहीं भेजा हुआ है तो अपनी रचनाओं के साथ कृपया अपने चित्र के साथ अपना संक्षिप्त परिचय भी, जो वर्ड में यूनिकोड फॉण्ट में टंकित हो, भेजें।
कुछ रचनाकारों को साहित्यसुधा की पीडीएफ फ़ाइल की आवश्यकता होती है। तकनीकी कारणों से पीडीएफ फ़ाइल इस मेल के साथ नहीं भेजी जा सकती। अंत:, पीडीएफ फ़ाइल सेव करने का तरीका पत्रिका के मुख पृष्ठ पर दिया गया है जिसका लिंक है –https://sahityasudha.com/PDF_
महत्वपूर्ण : - ‘साहित्यसुधा’ का यूट्यूब चैनल लॉंच किया जा चुका है। यदि आप चाहते हैं कि इसमें योगदान करें तो अपनी रचना की विडियो अथवा आडिओ रिकॉर्डिंग भेज सकते हैं। कृपया अपनी कविता, कहानी, गीत, नज़्म इत्यादि रिकॉर्ड करके भेजें।
धन्यवाद!
डॉ० अनिल चड्डा
सम्पादक
साहित्यसुधा
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
15.11.20
कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - ज्योति गीत ( चार ) - " दिवाली के दीप जलाने वालों के नाम "
यह नवगीत श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है ... " से लिया गया है -
ज्योति – गीत ( चार )
दिवाली के दीप जलाने वालों
के
कुछ दिनों पहले जलाये
दीप हमने ढेर सारे
रोशनी से भर गये थे
घर गली छज्जे दुआरे |
किन्तु वह सब रात भर का था ,
सच कहें तो बात भर का था |
ज़िन्दगी के सँग सुबह की
चूड़ियाँ जब कुनमुनायीं ,
जब कि पूरब के क्षितिज पर
धूप चढ़ कर गुनगुनायी |
बुझ गये वे दीप जिनने
रात भर अँधियारा झेले ,
जो कि निशि के राज्य में भी
सिर उठा कर थे अकेले |
जो गला कर नेह अपना ,
काँपती साँसें जला कर ,
दे रहे थे उजाला ,
सिर्फ कज्जल – धूम्र पाकर |
उन दीयों ने अन्त में
निज प्राण त्यागे ,
सूर्य के इस देश में
दीपक अभागे |
सब अँधेरे में अचानक खो गया
है ,
आज यह इंसान को क्या हो गया
है ?
क्या कहें ?
सच तो यही है –
जो जले ,
जिनने उजाला भी दिया ,
अँधियार में भी |
देश की ख़ातिर
जिए औ’ मरे जो ,
उन सब शहीदों की शहादत की
कथाएँ
विस्मरण के गाल में हैं |
स्वेद जिसका
ज़िन्दगी के मोतियों को आब
देता ,
वही हलधर ,
साँस लेता पतझरों में |
कर्म जिसका
सभ्यता को सूर्य – जैसी ताव
देता ,
उस भगीरथ की बसी दुनियाँ
उजड़ते और ढहते खंडहरों में |
पर ,
मुखौटे बाँध
सत्ता में विषैले नाग बैठे |
और पूजा घरों में
बहुरूपिये रख आग बैठे |
स्वार्थान्ध कुबेर
लक्ष्मी स्याह कर दासी
बनाये |
रक्त – प्यासे भेड़िये
हर भेड़ पर आँखें गड़ाये |
ज़िन्दगी
लाचार औ’ बेबस खड़ी ,
हैवानियत हँसती |
बढ़ रही हर चीज की क़ीमत ,
मगर इंसानियत सस्ती |
इसी से यह ग़रीबी , भुखमरी ,
बेरोजगारी है ,
कफ़न को नोंचने तक की बनी
नीयत हमारी है |
अगर अब भी
अँधेरे के लिए दीपक नहीं बन
पाये ,
नहीं इंसानियत के दर्द से
अब भी पिघल पाये ,
पतन की इन्तेहा यह देश को
बदनाम कर देगी ,
ये हालत हम सभी को विश्व
मेंगुमनाम कर देगी |
अँधेरा
बाहरी हो
या कि हो भीतर ,
हमें गुमराह करता है ,
कि हो इंसान कैसा भी
अँधेरे से सदा वह डरा करता
है |
इसी से –
- है तुम्हें सौगन्ध माटी की ,
- - नहीं सोना ,
- - जगे रहना ,
- - कि अपने गलत कामों से
- कभी बनना नहीं बौना ,
- - अँधेरे में नहीं खोना |
इसी से –
एक दिन केवल दिवाली को
जलाना दीपकों का है नहीं
काफी ,
जलो खुद , दूसरों को भी उजाला दो ,
- यही अब रह गयी है राह बस बाकी | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
-----------------------------------------
संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867