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15.11.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - ज्योति गीत ( चार ) - " दिवाली के दीप जलाने वालों के नाम "

 यह नवगीत श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है ... " से लिया गया है -











ज्योति – गीत ( चार )

दिवाली के दीप जलाने वालों के

 

कुछ दिनों पहले जलाये

दीप हमने ढेर सारे

रोशनी से भर गये थे

घर गली छज्जे दुआरे |

        किन्तु वह सब रात भर का था ,

        सच कहें तो बात भर का था |

 

ज़िन्दगी के सँग सुबह की

चूड़ियाँ जब कुनमुनायीं ,

जब कि पूरब के क्षितिज पर

धूप चढ़ कर गुनगुनायी |

        बुझ गये वे दीप जिनने

        रात भर अँधियारा झेले ,

        जो कि निशि के राज्य में भी

        सिर उठा कर थे अकेले |

 

जो गला कर नेह अपना ,

काँपती साँसें जला कर ,

दे रहे थे उजाला ,

सिर्फ कज्जल – धूम्र पाकर |

उन दीयों ने अन्त में

निज प्राण त्यागे ,

सूर्य के इस देश में

दीपक अभागे |

        सब अँधेरे में अचानक खो गया है ,

        आज यह इंसान को क्या हो गया है ?

 

क्या कहें ?

सच तो यही है –

जो जले ,

जिनने उजाला भी दिया ,

अँधियार में भी |

        देश की ख़ातिर

        जिए औ’ मरे जो ,

        उन सब शहीदों की शहादत की कथाएँ

        विस्मरण के गाल में हैं |

 

स्वेद जिसका

ज़िन्दगी के मोतियों को आब देता ,

वही हलधर ,

साँस लेता पतझरों में |

        कर्म जिसका

        सभ्यता को सूर्य – जैसी ताव देता ,

        उस भगीरथ की बसी दुनियाँ

        उजड़ते और ढहते खंडहरों में |

 

पर ,

मुखौटे बाँध

सत्ता में विषैले नाग बैठे |

और पूजा घरों में

बहुरूपिये रख आग बैठे |

        स्वार्थान्ध कुबेर

        लक्ष्मी स्याह कर दासी बनाये |

        रक्त – प्यासे भेड़िये

        हर भेड़ पर आँखें गड़ाये |

 

ज़िन्दगी

लाचार औ’ बेबस खड़ी ,

हैवानियत हँसती |

बढ़ रही हर चीज की क़ीमत ,

मगर इंसानियत सस्ती |

इसी से यह ग़रीबी , भुखमरी , बेरोजगारी है ,

कफ़न को नोंचने तक की बनी नीयत हमारी है |

 

अगर अब भी

अँधेरे के लिए दीपक नहीं बन पाये ,

नहीं इंसानियत के दर्द से अब भी पिघल पाये ,

पतन की इन्तेहा यह देश को बदनाम कर देगी ,

ये हालत हम सभी को विश्व मेंगुमनाम कर देगी |

 

अँधेरा

बाहरी हो

या कि हो भीतर ,

हमें गुमराह करता है ,

कि हो इंसान कैसा भी

अँधेरे से सदा वह डरा करता है |

    इसी से –

    - है तुम्हें सौगन्ध माटी की ,

-           -  नहीं सोना ,

-            - जगे रहना ,

-            - कि अपने गलत कामों से 

-      कभी बनना नहीं बौना , 

-      अँधेरे में नहीं खोना |

 

इसी से –

एक दिन केवल दिवाली को

जलाना दीपकों का है नहीं काफी ,

जलो खुद , दूसरों को भी उजाला दो , 

यही अब रह गयी है राह बस बाकी | **


                 -  श्रीकृष्ण शर्मा


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867

 

   




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