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30.4.20

संगीत कुमार वर्णबाल - '' दो सितारे चल दिये ''


दो सितारे चल दिये

दो दिन में दो सितारे चल दिये। 
आसमाँ से सितारे बिखर गये।। 
सरहद तेरे यादों में डूब गया।  
तेरी कलाकृतियाँ रंग बिखेर चला।। 
दो दीन में  दो सितारे चल दिये। 

तू कहीं भी रहो,आँखें तुझे देखता रहेगा। 
गम भी तेरे यादों से नम  यूँ  ही बना रहेगा।। 
तूने छवि छोड़ चला, अरमाँ बिखेर गया। 
दो दिन में दो सितारे चल दिये।। 

ऐसा क्या विपदा छा गया ,जग तूने छोड़ चला। 
कला  में खूब रंग तूने दिया, सितारे तुम डूब गये।। 
हिज्र हो के भी बहुत याद आओ गे तुम ।
दो दिन में दो सितारे चल दिये।। **

 - संगीत कुमार वर्णबाल 

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संगीत कुमार वर्णबाल
कवि 













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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867



पवन शर्मा की लघुकथा - '' अलाव ''


                                                                           
                       
                                      अलाव 

जलता हुआ अलाव जरा धीमा पड़ गया था , जिससे ताप भी कम हो गया था | उन दोनों के शरीर में ठण्ड समाती चली जाती है और वे उकडू होकर अलाव की राख को कुरेदने लगते हैं | आले में रखी ढिबरी की लौ हवा के झोंके से थरथरा उठती है और मरियल - सा पीला प्रकाश लकदिप कर उठता है |
          ' तुमे नई मालूम की सारे गाम में हल्ला मचो भओ है | '  लड़का कहता है |
          ' चुप रे | '  बूढ़ा झल्ला गया |  
          ' मोए चुप कराके सारे गाम  ऐ चुप करा लोगे ! '
          बूढ़ा कुछ नहीं बोला | उसकी ओर आग्नेय नेत्रों से ताकने के बाद झटके से एल्यूमीनियम के पुराने गिलास को मुँह से लगाकर ठेठ महुआयी दारु गले में उतार ली |
          ' का सुनो है ? '  झल्लाते हुए बूढ़े ने पूछा |
          ' जेई ... जेई कि अपन दोनों ने मिल के रामकालिया ऐ ... | '  लड़का बीच में ही बात छोड़ देता है |
          ' ... मार डालो ... है न ... साल्लेन कूं दसियों बार कह दओ कि बा के पेट में मोड़ा ख़तम हो जावे के कारण वो ... वो साली ... तो मर गई ... पीछे बवाल छोड़ के चली गई ... हरामजादी ! '  बूढ़ा हांफ रहा था | 
          बूढ़े ने फिर से गिलास में बोतल से दारु भरी और ख़ाली बोतल एक ओर सरका दी |
          ' देख दद्दा , तु बाए गाली मत दे ... बस्स | '
          ' काए ? '  बूढ़ा सुर्ख आँखों से उसे देखता हुआ बोला |
          ' वो मेरी घरवाली थी ... जा के मारे | '
          ' आज वो तेरी घरवाली हो गई ... बा  दिन नई थी , जब दरद के मारे तड़फ रही थी | तूने ही कहो थो  कि रैन देओ ... का इलाज करवाओ ... मर जावेगी तो जा के बाप ने जा के नाम करो खेत अपनो तो हो ही जावेगो ... बच्चा भी मर गओ पेट में ... और वो भी ... '  बूढ़े ने जमीन पर रखा गिलास झटके से उठाया और मुँह से लगाकर एक ही साँस में गिलास की पूरी दारु गले में उड़ेल ली |
          अलाव पूरी तरह बुझ गया था ... **

- पवन शर्मा 
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पवन शर्मा
कहानीकार , लघुकथाकार , कवि
 















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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

नंदन मिश्रा - '' आखिर वक्त की खता क्या है ''










आखिर वक्त की खता क्या है

कभी-कभी मुहब्बत में दिल टूट जाते हैं
अक्सर अपनों के साथ छूट जाते हैं
आखिर वक्त की खता क्या है 
जिंदगी तो रेलगाड़ी की पटरियों की तरह है 
चलता रहता है चलता रहता है
अचानक मोड़ आ जाती है 
कभी टकराव हो जाता
तो कभी पार हो जाता
अच्छा हो या बुरा इसमें
आखिर वक्त की खता क्या है 
चाहत तो सभी के होते हैं 
पंछी जैसे आसमां में उड़ने का 
मगर कभी आसमां में उड़ने वाले पंछी से पूछना
उन पर क्या गुजरती है 
जिंदगी में हरियाली बाग रहे 
तो कभी रेत का मैदान
कभी मेले बाजारों की तरह सजी रहे
तो कभी वीरानी सुनसान 
कैसी भी हो
आखिर वक्त की खता क्या है
मुहब्बत तो यूं ही देखते देखते हो जाती है
नयन के मिलन के बाद 
दिल का भी मिलन हो जाती है
मुहब्बत करना गुनाह तो नहीं
ना जाने क्यूं कुछ लोग मुहब्बत के नाम पर
बदनाम बेलगाम जैसे शब्दों से स्टाम्प लगा जाते हैं          
देखते देखते मुहब्बत नफरत में बदल जाए तो 
आखिर वक्त की खता क्या है
लोगों की जिंदगी में कुछ भी घटना घटे
सभी आरोप लगाते हैं वक्त पर 
आखिर बताओ तो सही 
कि आखिर वक्त की खता क्या है **

             
- नन्दन मिश्रा 





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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

29.4.20

रामप्रीत आनंद - '' झाँका कोरोना ''















झाँका कोरोना 


कोरोना ने झाँका जगत का कोना-कोना यारों ,
नज़र आ रहा है हर किसी का  रोना-रोना यारों ।

जीवन का अभिमान बड़ा जिनके लिए राहों में ,
सुनसान पड़ी राहों में उनका खोना-खोना यारों ।

मानव का प्रयोग बना है जीवन का कहर बड़ा ,
 ऐसे जहर का बीज दुबारा न बोना-बोना यारों ।

बिना किसी हथियार के मौत बना है दुनिया का ,
फिर भी बचे हुए को हाथ-पैर धोना-धोना यारों ।

लाइलाज़ बीमारी का, तोड़ नहीं है कोई अब तक ,
फिर से भय का ऐसा दरिंदा न बोना-बोना यारों ।

अपने और परायों का मिलना तो अब दुस्वार हुआ , 
फिर भी दिल में बोझ उन्हीं का ढोना-ढोना यारों ।

भीड़ बनी है दुश्मन सबका खत्म सब बाजार हुआ,
मिले हितैषी चाहे कोई पास न होना - होना यारों ।

तालाबंदी की खबर बढ़ाती है बेचैनी 'आनंद' की ,
सामाजिक दूरी से जल्दी भगाओ टोना-टोना यारों ।


       - रामप्रीत आनंद 
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रामप्रीत आनंद
गज़लकार , कवि 
















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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

जितेन्द्र कुमार मीणा - '' कोरोना '' - ( 1 )














कोरोना ( 1 )







































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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

28.4.20

योगेन्द्र जाट - '' तेरे निशा ''














तेरे निशा 

मैं नीरस मन में तेज भरूगां .
तू आशा को चमकाये जा .. 
मैं फिर विश्व गुरु की ओर बढूँगा .. 
तू  बस चायना को ठुकराये जा.. 


तू स्वदेशी की कद्र तो कर. 
जब रीत सुहानी आयेगी.. 
कोरोना जैसी साजिश की.. 
ना फिर से आंधी आयेगी.. 

मैं खडा रहूँगा साजो पर.. 
तू  अपने घर सुर ताल तो  ला 
खुशियों के गीत मैं गाऊंगा .. 
तू  गौरव चित अभिमान तो  ला. 

तू अपनों के संग कदम बढा . 
औरों के निशा मैं मिटवाऊँगा .. 
तू  विश्वास की एक डोर बना.. 
फिर सब के होश मैं उडवाऊँगा .. 

अपने भी आँगन में फिर.. 
नई सुबह थिरक कर खेलेगी.. 
चाइना तो क्या फिर उसकी दादी भी .. 
अपने सामने घुटने टेकेगी ... 

- योगेन्द्र जाट 
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योगेन्द्र जाट
कवि 















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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

नन्दन मिश्रा - '' मुक्तक '' - ( 2 )







27.4.20

संगीत कुमार वर्णबाल - '' अंधर ''










अंधर
कैसा ये अंधर छा गया?
तन-मन सब भींग गया।।
भव असमंजस से छा गया।
ब्रह्मांड गरल से मचमचा गया।।
कैसा ये अंधर छा गया?
हयात पीर से भर गया।
वात माहुर से फैल गया।।
प्राण यन्तणा से ग्रस्त हो गया।
मरना भी मुसकिल हो गया।।
कैसा ये अंधर छा गया?
घर-आँगन सब निर्जन सा हो गया।
उपवन में सब मंजरी कुम्हला गया।।
मानुष मातम से घर सो गया।
बच्चा का किलकारी सब बंद पड़ा।।
कैसा ये अंधर छा गया?
नभ से पूछू , मही से पूछू, ये क्या हो गया?
निर्झरिणी क्यों झर-झर करना छोड़ दिया?
पशु-पंछी का गुंजन क्यों बंद। पड़ा?
जगत निभृत-निभृत सा क्यों हो गया?
कैसा ये अंधर छा गया?।
तन -मन में तिमिर क्यों छा गया?।
मनुज मन आकुल क्यों हो चला?।।
प्राण क्षिति से क्यों उठ गया?।
धरित्री श्मशान सा क्यों बन पड़ा?।।
कैसा ये अंधर छा गया?
          - संगीत कुमार वर्णबाल
                                         जबलपुर 
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कवि संगीत कुमार वर्णबाल

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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई

माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

प्रताप चौहान - मुक्तक



प्रताप चौहान की कविता - ( 2 )


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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

संगीत कुमार वर्णबाल - '' मन बाहर न चल ''














मन बाहर न चल
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर मौत व्याप्त है।।
अंगार धधक रहा, पैर बाहर न कर।
काल के मुँह में जाने की जरुरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर प्रवात दर्दनाक है।
दर्द लेने की जरूरत न समझ।।
जीवन अनमोल है।
श्मशान सजाने की जरूरत न कर।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
मन चंचल करने की जरूरत न कर।
सड़क पर टहलने की जरूरत न समझ।।
दूसरे को दिखाने की कोशिश न कर।
मृत्यु से हाथ मिलाने की जरूरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर काल मँडरा रहा है।
इसे छूने की कोशिश न कर।।
दिल पसीज जायेगा।
संसार बिखर जायेगा।।
हे मन चौखट से बाहर न चल। **
               - संगीत कुमार 
                                    जबलपुर 
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संगीत कुमार वन बाल

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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867





          

संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - '' मानव क्यों हैवान बना ''














मानव क्यों हैवान बना
हे मानव क्यों हैवान बना ? पालघर में नरसंहार किया ।
दानव क्यों बन बैठा तू , साधक का क्यों कत्ल किया?।।
मनुजता क्यों खो बैठा तू , दनुजता क्यों सर मँड़रा रहा?।
मानवता को कलंकित कर, क्यों ऐसा तूने कर दिया?।।
हे मानव क्यों हैवान बना।
ऐसा क्या विपदा छाया, शोणित क्यों बहा दिया ?|
सज्जन, भलमानुष का क्यों ऐसा कत्ल किया?।।
राक्षसी प्रवृत्ति क्यों आया, तूने ऐसा क्यों कर दिया?।
जग शत्रु बन क्यों तू जी रहा?।।
हे मानव क्यों हैवान बना।
क्यों सब घर सो बैठा है? क्यों न कुछ बोल रहा?।
उजियाली में क्यों न दिखता है, क्या आँख से अंधा हो गया?।।
नेतागिरी सब का कहाँ गया, देश का दुश्मन बन क्यों बैठा है?।
यती ने क्या ऐसा किया था, क्यों उसका जान लिया?।।
हे मानव क्यों हैवान बना?।
ईश्वर की ये धरती है, क्यों दानवता छा गया ?।
राक्षस बन क्यों बैठा है,देश कलंकित क्यों कर दिया?।।
जागो-जागो मानव जागो, मनुजता का लाज बचाओ ना।
राक्षसी प्रवृत्ति त्यागो, देश प्रेमी बन जाओ ना।।
हे मानव क्यों हैवान बना?
विश्व को शांति का पाठ हमने दिया, क्यों अशांति मँडरा रहा?। मनुज क्यों दानव बन देश कलंकित कर रहा? ।।
जागो-जागो राष्ट्र प्रेमी जागो, शांति का पाठ पढाओ ना।
दानवी प्रवृत्ति को छोड़, मनुष्य प्रेमी बन जाओ ना।।
हे मानव क्यों हैवान बना? **

                  - संगीत कुमार वर्णबाल 
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संगीत कुमार वनबाल
जबलपुर
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संकलन
- सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  (
राजस्थान )
,फोन नम्बर– 09414771867
 

गज़ल राज की ग़ज़ल - ( 1 )










समझेंगे कहाँ बात वो पत्थर के सनम हैं
बे दिल बे ख़यालात वो पत्थर के सनम हैं
इस बात पे मैं उनकी करूँ कैसे भरोसा
चल देंगे मिरे साथ वो पत्थर के सनम हैं
सर को मैं पटकता भी भला कितना ज़मीं पर
बदलेंगे न हालात वो पत्थर के सनम है
कुछ प्यार में पाने की ललक टूट रही है
देंगे नहीं सौगात वो पत्थर के सनम हैं
उम्मीद नहीं थी कि मुहब्बत में हमारी
तड़पेगी हरिक रात वो पत्थर के सनम है
यह कह के मिरे यार मुझे रोक रहे थे
गुम जायेगी औकात वो पत्थर के सनम है **



               
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

योगेन्द्र जाट - '' अधूरा अफसाना ''










अधूरा अफसाना

क्या लूटेगी ये ज़िन्दगी हमें..
जख्म गमों का खाये हैं..
मोहब्बत के अफसानों का.
हम शहर लुटा कर आये हैं..

इश्क की हम उन गलियों का..
राज़ ढूंढ़ कर लाये हैं ...
मुक्कम्बल करके उन राहों को .
अरमान छोड़ कर आये हैं ..
इश्क के झरने के पानी में .
हम आग लगा कर आये हैं ..
मोहब्बत के अफसानों का.
हम शहर लुटा कर आये है..

आज गिरे हैं राहों में ..
कल संभल कर उन्हें बतलायेगें .
तुफानी गमों की आंधी का..
मंजर उन्हें भी दिखलायेगें   ..
एक दिन लौट कर के.
हम फिर उन गालियों में जायेगें  .
आँखों के छलकते पानी का..
हम सैलाब बना कर आये हैं .
मोहब्बत के अफसानों का..
हम शहर लूटा कर आये हैं ..**

   
     - योगेन्द्र जाट 





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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867




26.4.20

गुणशेखर की कविता - '' तुम्हारे जाने के बाद ''









तुम्हारे जाने के बाद

'तुम उठाईगीरों के सरदार हो
अलग कर दूंगा तो ढीली हो जाएगी धोती।'
पिता जी कहते रहते थे मुसलसल

सच में अलग होने के बाद
कई -कई बार तुम्हारी ढीली काँच को
पिताजी को बांधते भी देखा था हमने
पिता से आँख बचाकर स्वयं मैंने भी बाँधी है
वही काँच कई-कई बार
पर तुम कभी एक में न लौटे
इस पर कहा करती थी माँ
' मरने और बँटवारे से बचा ही कौन है '
तुम अलग होने पर भी सुधरे कब
तुम्हारे पास नशा था झौवा भर का
और काम रत्ती भर भी नहीं
बीड़ी,गाँजा-भाँग,धतूरा,अफीम और
अफीम के मँहगी हो जाने पर डोडा का चूरा
घर फिर भी चलता था तख्तों पर ताश खेलते हुए
मजूरी पर फ़सल बोती-काटती रहीं गिलहरियाँ
और तुम चुपड़ी खाते रहे
कोई ज़िम्मेदारी भी समझी तुमने कभी ?
तुमसे पूछना है कहाँ से लाते थे इतना शुकूँ
इतनी मौज़ कि कभी शुष्क ही न हुई जीवन यात्रा
तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहता रहा
तुम्हारे धारोष्ण फेन वाले दूधिया वात्सल्य के बदले
जैसे बीबी-बच्चों की चोरी-चोरी मनीऑर्डर
और भी बहुत कुछ पर
तुम्हारे दिए कर्ज़ न कभी पिता चुका पाए न मैं
लड़ने का अन्दाज़ भी निराला था तुम्हारा
' भाई की धान खाके हो जाएँगे कोढ़ी '
तुम्हारे भाई यानी मेरे पिता
पता नहीं कहाँ से लाए थे वह धान्य
शायद कच्ची और पक्की से,गाँजे की चिलम से,
डोडे से,धतूरे से
तुम्हारे जाने के बाद कोई नहीं है माँगने वाला
वह हिस्सा जो तुमने कभी लिया ही नहीं
मुर्दा शांति पसरी रहती है पूरे घर में
खासकर तुम्हारे वाले हिस्से में मेरे पितृव्य! **

   

     - गुणशेखर 










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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

रामप्रीत आनंद की ग़ज़ल - ( 1 )








तालाबंदी के सम्मान का अरमान लिए बैठे हैं ,
बस वतन के हुकूमत का फरमान लिए बैठे हैं।
गमन की सिफ़ारिश का ज़रिया नहीं है कोई,
मोहलत के इशारों का धरमान लिए बैठे हैं ।
महकमें में वक़्त गुजरता है बड़ी मुश्किल से ,
आराम के समय अपना घर मान लिए बैठे हैं।
हर जगह खाली, मगर कितना भरा है आदमी,
जिस अंदाज़ को अपना दर मान लिए बैठे हैं ।
ज़िन्दगी मजबूर है इन बंदिशों में रहने के लिए ,
फिर भी उनके पैग़ाम को सर मान लिए बैठे हैं।
एक माह से भी अधिक वक़्त गुजारा है घर में,
पर तुम्हारी हर बात को यार मान लिए बैठे हैं ।
यहाँ की तन्हाई ने दी है हिम्मत जैसे लेखनी को ,
सुबह से शाम तक इसे प्यार मान लिए बैठे हैं ।
दिल में घर की याद बनी रहती है हमेशा 'आनंद'
मगर दूरभाषी बातों को ही तार मान लिए बैठे हैं ।**
              - आर. पी.आनंद(एम.जे.)
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई 

माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867