साहित्य धरातल के पट की ,
साक्षात् सरस्वती दिखती हो |
ओज झलकता है मुख पर ,
जब मधुर काव्य तुम करती हो ||
तुम काया कंचन दर्पण हो ,
तुम ज्ञान का सागर जय श्री हो |
तुम ही वेदों की रखवाली ,
तुम ही कवियों की गुरुकुल हो || **
- प्रताप चौहान
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