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31.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " केवल कोरे शब्द " ( भाग - 5 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




30.10.20

कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " बोनस "

 










बोनस 


बोनस बोनस सब करे
एनपीएस पर न ध्यान धरे
चक्का जाम करने की बात करे
ओपीएस कब आयेगा 
इसका कोई न बात करे
नौकरी कर बुढापे में बेसहारा रहे
दूसरे का मुँह देखना पड़े
 पर इसका कोई न बात करे
चक्का जाम की सिर्फ बात करे
लोग का मन दुखाता रहे
अपने मजा मारते रहे
बोनस बोनस सब करे
एनपीएस पर न ध्यान धरे **

        - संगीत कुमार वर्णबाल 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " केवल कोरे शब्द " ( भाग - 4 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




29.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " केवल कोरे शब्द " ( भाग - 3 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




28.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " केवल कोरे शब्द " ( भाग - 2 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




27.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " केवल कोरे शब्द " ( भाग - 1 )

 यह दोहा श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




26.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " दीपक - सा जलता चल ! "

 श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -








दीपक – सा जलता चल !

 

              अँधियारा गहरा है ,

           दूर पर सवेरा है ,

हिम्मत मत हार अरे , दीपक – सा जलता चल !

 

अम्बर के आँगन में चाँद नहीं आया है ,

तारों का मन भी अब लगता घबराया है ,

दृष्टि फेर ली है अब , गोरी किरणों ने भी ,

उजियारा अब जैसा – बन गया पराया है ,

          मावस का पहरा है ,

          तिमिर – सिन्धु लहरा है ,

हिम्मत मत हार अरे , दीपक – सा चलता चल !

 

बदल – बदल कर त्यौरी , आ रही हवाएँ हैं ,

स्याही का कफन ओढ़ सो रही दिशाएँ हैं

व्याकुल है गगन , अवनि आकुल उजियारे को ,

लेकिन ये काजल की , बरसाती घटाएँ हैं ,

          रात की जवानी है ,

          तुझे सुबह लानी है ,

पकड़ किरण का आँचल , भोर तलक चलता चल !

हिम्मत मत हार अरे , दीपक – सा जलता चल !!

 

इन तम के पृष्ठों पर , लिख प्रकाश के अक्षर ,

सूने की स्याही में भर दे तू ज्योतिर्स्वर ,

ज्वाला का यज्ञ रचा , रात ये सिन्दूरी हो ,

दीप – दीप महक उठे , दीपों के उत्सव पर ,

          छेड़ दीप राग नवल ,

          दीपशिखा हो उज्जवल ,

रात यह सुहागिन हो , पूनम – सा खिलता चल !

हिम्मत मत हार अरे , दीपक – सा जलता चल !! **



    - श्रीकृष्ण शर्मा 





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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


25.10.20

कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " जयति जय जय मॉं "











जयति जय जय मॉं 


जयति जय जय मॉं भगवती जयति  खड्ग धारणी

जयति  जय जय सिंहवाहिनी जयति शत्रु विनाशनी

जयति जय जय महिषासुर मर्दनी जयति जगत कल्यायणी

जयति जय जय आदिशक्ति स्वरूपणी जयति मंगलकारनी 

 जयति जय जय दुख दारिद्र  हरनी  जयति हर्ष मंगल प्रदायनी

जयति जय जय शक्ति दात्री मॉं जयति जगत पालनी 

जयति जय  जय विद्यादायनी मॉं जयति सर्वगुण प्रदायनी 

जयति जय  जय क्षमाकरनी मॉं जयति  ज्ञान प्रदायनी 

जयति जय जय काल हरनी मॉं जयती कालरात्रि 

जयति जय जय आशीष दात्री  मॉं जयति सिद्धिदात्री

जयति जय जय तमहरनी मॉं जयती प्रकाशदायनी 

जयति जय  जय  मॉं भवानी जयति दिव्यप्रकाशनी

जयति जय जय रोग हरनी मॉं जयति सुख प्रदायनी 

जयति जय जय  मॉं भगवती जयति  सर्व सौभाग्यदायनी

जनमानस की विनती सुनले सबके दुख दूर करदे  मॉं

जयति जय जय मॉं भगवती जयति खड्ग धारणी

जयति जय जय सिंहवाहिनी जयति शत्रु विनाशनी **

                       - संगीत कुमार वर्णबाल 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " लिखना यदि होता सरल " ( भाग - 13 )

 श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -  




24.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " लिखना यदि होता सरल " ( भाग - 12 )

 श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




23.10.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " लिखना यदि होता सरल " ( भाग -11 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " से लिया गया है -



 

22.10.20

प्रसिद्ध कहानीकार पवन शर्मा की कहानी ---- " सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े " ( भाग - 3 )

 पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है -











                         सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े 

                          ( भाग – 2 से आगे )

                                                                   अंतिम भाग 

          नरेश फिर चुप रहा | उसकी आँखों में प्रश्न उभर आया |

          “ तू जानता है न कि मुझे पिताजी की नौकरी मिली थी |” मैंने कहा|

          नरेश की आँखों में प्रश्न ज्यों – का – त्यों टंगा हुआ था |

          “ यदि ऐसा नहीं होता तो शायद मैं भी तेरी ही तरह ... ” अबकी बार मैंने अपनी बात जान – बूझकर अधूरी छोड़ी |

          नरेश बैठे – बैठे बार – बार अपना पहलू बदलने लगा | एक बैचेनी थी, जो उसे बराबर जकड़ती जा रही थी|

          “ पिताजी की मौत ने हमारे जीवन में सुख – ही – सुख भर दिए | ” बेहद सपाट स्वर था मेरा |

          “ व्हाट डू यू मीन ? ” नरेश के मुँह से घुटी – घुटी चीख निकल पड़ी और वह मुझे आँखें फाड़ – फाड़कर देखने लगा |

          “ सौ फीसदी सच | उनके मरने पर मुझे अनुकम्पा नियुक्ति मिली | पिताजी का फण्ड मिला – लगभग दो – सवा दो लाख | एल.आई.सी. की दो पॉलिसी के डेढ़ – डेढ़ लाख मिले | एक साथ इतना पैसा ! ”

          एकाएक नरेश को दीवाल पर रेंगती छिपकली दिखाई दी | वह तेजी से उठा और दोनों हाथों को ऊपर करके हिलाते हुए छिपकली को भागने का प्रयास करने लगा | जब वह छिपकली भगा रहा था , तब उसके मुँह से अजीब – सी अस्पष्ट आवाजें निकल रही थीं | छिपकली को भगाकर वह बिस्तर पर बैठकर मुझे ताकने लगा |

          मैंने बात जारी रखी , “ उसी पैसे से रुकमा की शादी की | उसी पैसे से छोटू को गाँव में दुकान डलवा दी – खूब चल रही है | अम्मा को पेंशन मिल रही है | बाकी का पैसा बैंक में डाल रखा है , उसका ब्याज भी मिल रहा है | ”

          नरेश का मुँह खुला रह गया | आँखें बाहर निकलने लगीं |

          “ क्या पिताजी के जीवित रिटायर होने पर इतना पैसा मिलता ? ... क्या मैं और छोटू सेटल्ड हो पाते ? ”

          “ नेव्हर – नेव्हर | ” नरेश के मुँह से घरघराती आवाज निकली |

          “ अब तू ही बता कि पिताजी की मौत ने हमारे जीवन में सुख भरा या नहीं ? ” एकाएक मेरी आवाज धीमी हो गई , “ सच कहता हूँ कि मैं तेरी जगह होता तो इन दिनों के लिए अपने भीतर उर्जा बचाकर नहीं रख पाता | ”

          अनजाने में ही मैंने एक कटु सत्य को नरेश के सामने रख दिया | हो सकता है कि पिताजी की आत्मा को बेहद पीड़ा पहुँची हो , क्योंकि लोग यही कहते हैं कि असमय मरने वाले की आत्मा भटकती रहती है | शायद यहीं कहीं पिताजी की भी आत्मा भटक रही हो | ये सोचकर मैं क्षणभर के लिए विचलित हो गया |

          बाहर बौछारें तेज हो गईं | तेज हवा से खिड़की के पल्ले बन्द होने तथा खुलने लगे | मैंने उठकर खिड़की बन्द की | बिस्तर पर लेटे हुए मैंने घड़ी देखी – सवा दो बज रहे हैं | हमें नींद लेशमात्र नहीं है | ऐसा लग रहा है कि बातें करते हुए सारी रात गुजार देंगे |

          नरेश ने पैकिट में से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली और जल्दी – जल्दी कश लेने लगा | मैं जानता हूँ कि जब वह उद्विग्न होता है , तब वह सिगरेट अवश्य पीता है और जल्दी – जल्दी कश लेता है |

          “ एक – एक कप चाय हो जाए | ” नरेश ने कहा |

          मैं इस स्थिति से उबरने का प्रयास कर रहा था | अच्छा हुआ नरेश ने ही मुझे उबरने का मौका दे दिया |

          “ मैं भी यही सोच रहा था | ” कहकर मैं रसोई में चाय बनाने चला गया |

          नरेश ने उठकर खिड़की खोली | अभी भी तेज हवा चल रही थी | खिड़की के पल्लों को पकड़कर खड़ा वह बाहर अँधेरे में कुछ देख रहा था और जल्दी – जल्दी सिगरेट के कश ले रहा था |

          बौछारें हल्की हो गई थीं |

          थोड़ी देर बाद मैं दो कप में चाय ले आया | नरेश ने मेरे हाथ से एक कप थामा और बिस्तर पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेने लगा |

          “ तूने बताया नहीं कि तेरा आना कैसे हुआ ? ” चाय की चुस्कियों के बीच मैंने फिर से उसकी ओर सवाल उछाला | मेरे द्वारा उछाले गए सवाल पर नरेश फिर खामोश रहा – पहले की तरह |

          थोड़ी देर के लिए कमरे में सन्नाटा फैल गया |

          नरेश चाय की चुस्कियों के बीच सिगरेट के कश भी ले रहा था | थोड़ी देर बाद उसने सिगरेट बुझाकर फेंक दी | चाय ख़त्म कर हमने अपने – अपने खाली कप टेबिल पर रख दिए |

          “ मैं सुबह पहली बस से गाँव चला जाउँगा | ” एकाएक नरेश ने जाने की घोषणा की |

          “ क्यों ? ... कल और रुकता | ” मैंने कहा |

          “ नहीं रुक सकता | परसों मुझे सुधा को उसकी ससुराल से विदा कराकर लाना है | ”

          “ सुधा की शादी हो गई ? ” मुझे आश्चर्य हुआ |

          “ पिछले माह | ” कहने के बाद नरेश अपने नरेश दोनों हाथों की हथेलियाँ रगढ़ने लगा |

          “ शादी का कार्ड नहीं भेजा | खबर तक नहीं की | ” मैंने शिकायत भरे लहजे में कहा |

          “ मैंने सोचा कि तुझे खबर मिली होगी | ” कहने के बाद नरेश दीवाल – घड़ी को देखने लगा | पौने चार बज रहे हैं | साढ़े पाँच पर पहली बस जाती है |

          “ क्या मुझे सपना आया था | ” मैंने बनावटी रोष दर्शाया और सिगरेट सुलगाई |

          “ अरे ! ... पिताजी तो सुधा की शादी के डेढ़ माह पहले से तेरे ऑफिस के चक्कर काटने लगे थे | ”

          “ क्यों ? ”

          “ अपने जी.पी.एफ. से पार्टफाइनल सेंक्शन करवाने के लिए | ”

          “मैं उन्हें पहचान नहीं पाया था | ”

          नरेश कुछ कहना चाहता था , किन्तु कह नहीं पाया | केवल होंठ हिल रहे थे | चेहरा सफ़ेद होने लगा | वह उठा और अपने बैग में से कुछ फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा निकाला | उसने फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा मेरी ओर बढ़ा दिया | होठों के बीच सिगरेट दबाकर मैं उन्हें उलट – पलटकर देखने लगा | देखने के बाद सिगरेट उँगलियों में फंसाई |

          बाहर बारिश पूरी तरह से थम गई थी |

          एकाएक नरेश ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए , “ तू पिताजी का पार्टफाइनल सेंक्शन करवा दे | तेरा अहसान होगा हमारे ऊपर | बोल , करवाएगा कि नहीं ? ”

          थोड़ी देर मैं चुप रहा , फिर चालू छाप उत्तर दिया , “ कोशिश करूँगा | ”

          “ कोशिश नहीं – करवाना है | ” कहते – कहते नरेश के चेहरे पर तनाव के साथ विद्रूपता उभर आई , “ तू नहीं जानता – शादी में जिनसे कर्जा लिया था , अब वो लोग हर दूसरे – तीसरे दिन छाती पर खड़े हो जाते हैं | ”

          मैं फिर से थोड़ी देर के लिए चुप रहा | कुछ सोचता रहा |

          “ अपने यहाँ का पूरा सिस्टम ही ख़राब है – ये बात जानता है न तू ... बिना गिव एण्ड टेक के कुछ नहीं होता आजकल | ” मैंने बुरा – सा मुँह बनाया , फिर नरेश के चेहरे पर अपनी नजरें स्थिर कीं | सिगरेट का कश भरा | धुआँ छोड़ा , फिर कहा , “ तू अपना आदमी है | पाँच परसेंट ही देना | सभी से दस परसेंट लेते हैं | मैंने अपना शेयर छोड़ दूँगा | कम लगेगा | ”

          नरेश के भीतर कुछ चटक गया ... चेहरे पर तनाव के साथ उभरी विद्रूपता गाढ़ी हो गई ... कानों में असंख्य सीटियाँ बजने लगीं | एक अनचाहा सन्नाटा कमरे की दीवालों से टकराने लगा | नरेश जूझने लगा सन्नाटे से ... सिगरेट की आँच से उँगलियों में जलन होने लगी | नरेश ने उँगलियों में फँसी सिगरेट झटके से फेंक दी |

          नरेश को फिर से दीवाल पर रेंगती छिपकली दिखाई दी | वह उठा और फिर से दोनों हाथों को ऊपर उठाकर छिपकली को भगाने लगा | छिपकली भागी नहीं , जैसे की दीवाल पर चिपक गई हो |

          “ बोल क्या कहता है ? ” जब वह छिपकली भगा रहा था , तब मैंने पूछा |

          नरेश ने कोई उत्तर नहीं दिया |

          छिपकली भगाते हुए नरेश के मुँह से अस्पष्ट आवाजें फिर से निकलने लगीं | अबकी बार आवाजें बहुत तेज थीं |

          पूरे कमरे में सिगरेट की राख तथा बुझे हुए टुकड़े बेतरतीब ढंग से बिखरे हुए हैं |

          नरेश अभी भी अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर छिपकली को भगा रहा है | मेरी हिम्मत नहीं होती कि मैं फिर से पूछूँ कि बोल , क्या कहता है ? **

                                             ( समाप्त )

पवन शर्मा

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com   


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

         

         

                                  

                 

           


21.10.20

प्रसिद्ध कहानीकार पवन शर्मा की कहानी - " सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े " (भाग-2)

 यह कहानी , पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है - 











          सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े 

                                 ( भाग – 2 )

 

भाग - 1 से आगे

          “ तुझे शुचि की याद है या भूल गया ? ” कहते हुए मैं हौले से मुस्कराया |

          “ हिष्ट ! ” नरेश भी मुस्करा पड़ा |

          मैंने देखा की नरेश की आँखों में चमक दुगनी हो गई |

          “ मुझे याद है कि तू रोज ही सिविल लाइन्स की पुलिया पर जाकर बैठता था – शुचि के लिए | ” रुई के फाहों को देखते हुए मैंने बोला |

          “ मेरे सारे प्रेम का बुखार उसके भाई ने एक ही घूँसे में उतार दिया था | नरेश बोला , फिर मुस्कराया , “ वन साइडेड लव ! ऐसे ही घूँसे पड़ते हैं | ”

          बौछारें बंद हो चुकी थीं | हम लोग टिन के शेड से निकलकर गीली सड़क पर चलने लगे | फिर से वही चुप्पी हम दोनों के बीच |

          थोड़ी दूर चलने के बाद हम सड़क से बाईं ओर मुड़कर एक गली में घुस गए | तीन मकान के बाद घर आ गया | मैंने पेण्ट की जेब में से चाबी निकालकर दरवाजे पर टंगा ताला खोला | कमरे में अँधेरा था | बिजली का स्विच दबाकर ट्यूबलाईट जलाई | कमरे में दूधिया रोशनी हो गई |

          नरेश जुटे – मोज़े उतारकर बिस्तर पर लेट गया | मैंने कपड़े बदले और लुंगी पहनकर बाथरूम में फ्रेश होने चला गया | फ्रेश होकर आया तो देखा कि नरेश अभी भी बिस्तर पर लेटा हुआ है | शायद वह थक गया है |

          तौलिये से अपने हाथ – पैर पोंछता हुआ मैं बोला , “ चल , तू भी फ्रेश हो ले , फिर खाना खाया जाए | ”

          नरेश फ्रेश होने चला गया | उसके लौटकर आने के बाद हमने साथ – साथ खाना खाया |

          तब पौने ग्यारह बज रहे थे |

 

रात के लगभग सवा बारह बज रहे हैं | हम दोनों अपने – अपने बिस्तर पर लेटे हुए हैं | नींद नहीं आ रही है |

          “ तूने कोशिश नहीं की ? ” मैं अपनी बात पूरी नहीं कर पाया कि नरेश बीच में बोला , “ फिर ? ”

          “ थ्रू – आउट फर्स्ट डिविजन वाला ... इसका आश्चर्य है ! ”

          “ इसमें आश्चर्य की क्या बात है | पिछले चार – पाँच साल से जो जनरल की व्हेकेन्सी ही कहाँ निकल निकली है | और निकली भी हैं तो सब अपने वालों के लिए | अपने यहाँ करप्शन कम है क्या ? ” नरेश की उत्तेजना कम नहीं हुई , “ जिसको मौका मिलता है , वही नोंचने की कोशिश करता है | ”

          हम दोनों के बीच थोड़ी  देर के लिए सन्नाटा पसर गया |

          “ फिर कैसे चल रहा है ? ” मैंने सन्नाटा तोड़ा |

          “ ऐसे ही | पिताजी ढो रहे हैं मुझे | ” कहते – कहते नरेश के चेहरे पर उत्तेजना के साथ – साथ कुछ भी न कर पाने का मिश्रण चस्पाँ हो गया | मैंने अनुमान लगाया कि ये परिस्थितिजन्य ही घटित हुआ है | वह बोला , “ पिताजी कहते हैं कि मुझमें संकल्प की कमी है | ”

          फिर एक सन्नाटा |

          एकाएक नरेश ही बोला , “ अपनी सुना ... कैसी गुजर रही है ? ”

          “ बस कट रही है | ”  संक्षिप्त उत्तर दिया मैंने |

          “ मजे हैं – ये बोल | ” कहने के बाद नरेश के चेहरे पर फीकी – सी मुस्कराहट उभरी |

          “ खाक मजा ! ... सुबह से शाम तक ऑफिस में अपना सिर खटाते रहो | ”

          नरेश चुप था |

          “ बाबूगिरी करते हुए चार साल कैसे बीत गए – पता ही नहीं चला | वो तो अच्छा है कि ऑफिस में सेक्शन अच्छा है | घर से खाली पेट निकलो और शाम को भरा पेट लेकर लौटो | ” कहने के बाद मैं जोर से हँस पड़ा , किन्तु नरेश के चेहरे पर इंच मात्र भी हँसी नहीं आई |

          मैंने उठकर शर्ट की जेब में से सिगरेट का पैकिट निकाला और उसमें से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली , फिर पैकिट नरेश की ओर बढ़ा दिया | नरेश ने भी एक सिगरेट सुलगा ली |

          “ अच्छा हुआ कि अम्मा नहीं हैं | नहीं तो सिगरेट की तलब लगने पर भी सिगरेट नहीं पी पाते | ” मैंने कहा और सिगरेट ला कश भरा |

          “ अम्मा यहीं हैं ? ” नरेश ने आश्चर्य से पूछा |

          “ हाँ ... मामाजी के यहाँ | पिछले हफ्ते आईं थीं गाँव से | मामाजी सदर में रहते हैं | ” कहने के बाद मैंने घड़ी देखी | रात का एक बजने वाला है , किन्तु नींद आँखों से कोसों दूर है | हम दोनों बिस्तर पर तकिये का सहारा लेकर दीवाल से टिके हुए हैं |

          “ हमने अपनी सारी उर्जा पढ़ाई में खर्च कर दी | इन दिनों के लिए बचाकर नहीं रखी | ” नरेश ने कहा और सिगरेट मुँह से लगाईं |

          मुझे लगा कि नरेश बेरोजगारी के दंश से बुरी तरह आहत है ... भीतर तक ... लबालब ... जिसे वह व्यक्त नहीं कर पा रहा है ... सिर्फ छटपटा रहा है ... एक अव्यक्त छटपटाहट | ... सम्भवतः ये अव्यक्त छटपटाहट आज और अभी व्यक्त होने की चेष्टा कर रही है |

          वातावरण भारी हो गया |

          हमारी सिगरेट के धुँए से कमरा तम्बाकू की गन्ध से भर गया | उठकर मैंने खिड़की खोली | कमरे में ठण्डी हवा का झोंका आया | बाहर फिर से बौछारें पड़ने लगीं |

          मैंने सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट फेंक दी और बिस्तर पर आकर पैर लम्बे करके तकिये के सहारे अधलेटा हो गया |

          “ अब समझ में आया है कि ये दिन कितने यंत्रणादाई होते हैं | ” नरेश ने कहा |

          “ सचमुच बेहद | ” मैंने सिगरेट का पैकिट टेबिल पर रखा , फिर अपने दोनों हाथों की हथेली आपस में रगड़ीं , “ मैं इन दिनों से अधिक नहीं गुजरा हूँ – केवल दो – ढाई वर्ष ही | ”

          नरेश चुप रहा – कुछ झेलता हुआ - सा |

          “ अच्छा हुआ कि ... ” मुझसे वाक्य पूरा नहीं हुआ | पता नहीं क्यों आगे के शब्द जुबान तक नहीं आ पाए |

          “ क्या ? ” नरेश ने पूछा | अभी भी लग रहा है कि वह भीतर – ही – भीतर कुछ झेल रहा है |

          “ बहुत कटु है , पर यथार्थ | मैं जो कहने जा रहा हूँ , उसको सुन तू निश्चित रूप से ये अवश्य सोचेगा कि मानवीय मूल्य किस हद तक गिर चुके हैं|”

        नरेश चुप रहा | उसकी आँखों में प्रश्न उभर आया | ***                                             

                           ( आगे, भाग – 3 में पढ़ें )

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पवन शर्मा

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.