श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -
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यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
कवि श्रीकृष्ण शर्मा |
कौन बँटायेगा चिन्ता ?
एक ही दिशा अपनी
उसमें भी अंधकार ,
घबराकर एक हुए
घर , पौली और द्वार |
तय था यह पहले ही
अँधियारा होना है ,
सूरज के अस्थि – खण्ड
सारी रात ढोना है ;
फिर किस उजाले का ,
मन को है इंतजार ?
कौन बँटायेगा चिन्ता ?
सिर्फ़ है अकेलापन ,
दूर तलक फैला है
मरुथल –सा गूंगापन ;
सिर्फ याद पसरी है ,
आँगन में तन उधार | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है |
पवन शर्मा |
मेरे दो धड़
( भाग -1 से आगे )
चलते – चलते ऐसा लगा कि कोई
मेरा पीछा कर रहा है | कई बार मुड़कर देखा , किन्तु समझ नहीं आया कि कौन है ? पेण्ट
की जेब में हाथ डालकर सौ – सौ के दस नोटों को कसकर पकड़ लिया | भय लगने लगा कि पीछा
करनेवाला छीनकर न भाग जाए |
“ भाई साहब ! ” पीछे से किसी ने पुकारा
|
मैं रुक गया | मुड़कर देखा तो अपना वही
पुराना स्वेटर पहने और गले में मफलर डाले बदसूरत धड़ खड़ा था | मैं जानता हूँ कि
स्वेटर के नीचे उसकी शर्ट फटी होगी | मेरी त्यौरियाँ चढ़ गईं , “ तुम ! ”
“ हाँ भाई साहब ! काफी देर से आपको ढूँढ
रहा था | ” बदसूरत धड़ बोला , “ फिर पता चला कि आप ‘ बार ’ में बैठे हैं | यहाँ
आपसे मिलने की हिम्मत नहीं हुई | ”
“ क्यों ? क्या काम है ? ” मैं झल्लाया
|
“ कुछ नहीं | बस , आपके दर्शन करने थे |
” वह नर्म स्वर में बोला |
मैं झल्लाता हुआ चलने लगा | वह भी मेरे
बराबर चलने लगा | मैंने पेण्ट की जेब में से हाथ बाहर निकाल लिए | अब कोई भय नहीं
था |
“ आजकल आप बदल गए हैं ... आपका जीवन
बदल गया है | ” बदसूरत धड़ चलते – चलते कहता है |
“ सो तो है | ये सब उसकी वजह से सम्भव
हुआ है | ” मेरा इशारा खूबसूरत धड़ की ओर था |
“ वह आपको कुमार्ग पर ले जा रहा है|
सुमार्ग पकड़ें | ” कहते – कहते बदसूरत धड़ गिड़गिड़ा गया |
“ तुम मेरे और उसके बीच दरार पैदा कर
रहे हो | ”
“ मेरा उनसे कोई बैर नहीं है|वे ही
मुझसे बैर रखते हैं| ” उसने कहा और जेब में से रुमाल निकालकर चेहरे पर जमी धूल
पोंछी |
अँधेरा होने लगा | ठण्ड में जल्दी
अँधेरा होता है | सड़क के किनारे बिजली के खम्बों पर लगे बल्ब जलने लगे | ऑफिस से
घर तक का रास्ता लम्बा पड़ता है | पैदल ही तय करता है | कई दिनों से सोच रहा हूँ
कि स्कूटर ले लूँ | पैदल चलने में परशानी होती है |
बदसूरत धड़ मेरे साथ – साथ चल रहा है |
“ आजकल आप अपने पद का दुरुपयोग कर रहे
हैं | पद की गरिमा नष्ट कर रहे हैं | ” बदसूरत धड़ ने चलते – चलते कहा |
मैं चौंका , “ कैसे ? ”
“ किसी का भी काम बिना लिए नहीं करते |
” बदसूरत धड़ ने कहा | मैं निरुत्तर था |
“ आपकी पेण्ट की जेब में जो सौ – सौ के
दस नोट रखे हुए हैं , वे आपको किसने और क्यों दिए हैं, मैं ये भी जानता हूँ | ”
बदसूरत धड़ कहता है | सुनकर मैं जेब में हाथ डालकर नोटों को कसकर पकड लेता हूँ |
फिर से भय लगने लगा |
“ जानते हैं आप – यदि ये एक हजार रुपए
आपके ऑफिस के भृत्य रामदास के पास ही रहते तो उसके कितने काम आते ! अपनी बेटी को
अपने घर से विदा कराने में कितने सहायक होते ! ”
रामदास का सामान्य भविष्य निधि से
आंशिक विकर्षण स्वीकृत किया जाना मेरी आँखों में कोंध गया | रामदास से दो हजार
रुपए लिए | एक मैंने रखे और एक साहब को दिए |
“ अपने सुखों की पूर्ति के लिए आप
दूसरों का गला काटने में लगे हैं | छिः – छिः पहले तो आप ऐसे नहीं थे | ”
मैं फिर निरुत्तर था| बदसूरत धड़ दो
टूक कह रहा था |
“ बेईमानी आपमें अन्दर तक घर कर गई है |
झूठ आप अपने सिर से ऊपर तक बोलने लगे हैं | कितने गिर गए हें आप ! ” बदसूरत धड़ कह
रहा था |
“ प्लीज , चुप हो जाओ | ” मैं चीख पड़ा
|
“ सत्य का सामना करने का आपमें साहस ही
नहीं रहा | व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठने की कोशिश कीजिए | जीवन को स्थिर कीजिए |
सूरज को छूने की कोशिश मत कीजिए | यही मेरा आपसे विनम्र निवेदन है |” बदसूरत धड़
ने मेरे अहम् पर चोट की |
“ तुम ... तुम ... ” मैं चीख रहा था |
हाथ – पैरों में ऐंठन होने लगी |
“ आप चाहें तो मेरा त्याग कर सकते हैं |
मैं उफ़ तक नहीं करूँगा या फिर उनका कर दें | निर्णय करना आपका काम है | ” बदसूरत
धड़ ने कहा , फिर भीड़ में खो गया | मैं आँखें फाड़ – फाड़कर भीड़ में खोज रहा था | वह
दिखाई नहीं दिया |
मेरी सारी सोच , मेरी सारी
फ़िक्र , मेरी सारी परेशानी इस बात में सिमट आई थी कि मैं किसका त्याग करूँ ? एक ओर
जहाँ खूबसूरत धड़ ने मुझे भौतिक सुख , एश्वर्य के साधन जुटाए है ... सुख – समृद्धि
से उसने मेरे जीवन को भर दिया है ... उसका त्याग करूँ ? अथवा बदसूरत धड़ का ? जिसके
पास कोरी इच्छाओं के अलावा कुछ नहीं है |
अचानक दरवाजा भड़भड़ाता हुआ खूबसूरत धड़
कमरे मर घुस आया | मैंने चौंककर उसकी ओर देखा , “ तुम ? ”
“ हाँ गुरु मैं | ” कहता हुआ वह सोफे
पर पसर गया | थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोला , “ आज तो अच्छा माल हाथ लगा ! ” उसका इशारा सौ – सौ के दस नोटों की ओर था | मैं चुप रहा | बदसूरत धड़ की बातें मेरी
आत्मा को और भी छील रही थीं | इसी वजह से मेरा व्यवहार खूबसूरत धड़ के साथ जरा उखड़ा
हुआ था |
“ साला , शाम को खूब भाषण पेल रहा था
आपको | ” खूबसूरत धड़ ने हँसते हुए कहा |
“ कैसे बात कर रहे हो तुम ! ऐसी बात
कहते तुम्हें शर्म नहीं आती ! ” मैं क्रोध से भर उठा |
“ क्या गुरु ! ” खूबसूरत धड़ आश्चर्य से
मेरी ओर देख रहा था , “ लगता है, आज उसने आपका मूड ऑफ़ कर दिया है | ”
“ कुछ भी कहो – वह जो भी कहता है , खरी
– खरी कहता है | ” मेरा क्रोध जरा कम हुआ |
“ कहेगा ही ... खुद नंगा है , दूसरों
को भी नंगा रहने को कहता है | जानते हैं आप , उसके मन में मेरे प्रति हमेशा मैल
भरा रहता है ... ईर्ष्या , द्वेश अलग रखता है मुझसे | ”
“ ये बात नहीं है | वह तो ... ”
“ यही बात है | तभी तो मैं आपके साथ
आया हूँ | जब मैं यहाँ आ रहा था , तब वह दरवाजे पर खड़ा था | मैंने उसे जोर से
धक्का मारा और भीतर घुस आया उससे पहले ... उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह मेरा सामना
कर सके | ”
“ क्या वह बाहर है ? ”
“ हाँ क्यों ? “ खूबसूरत धड़ अचकचा गया |
मेरी सारी चेतना जाग्रत हो गई | मैंने
मन को संयम में किया | एक दृढ – संकल्प कर कहा , “ आज के बाद मुझसे मिलने की तुम
चेष्टा मत करना ... समझे ! मैं पहले ही ठीक था , सुख से था ... अब मैं कितना गिर
गया हूँ ! मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही है| ये सब तुम्हारी वजह से ही हुआ है|
मैं तुम्हारा त्याग करता हूँ| ”
“ गुरु ... गुरु ... ” खूबसूरत धड़ के
मुँह से आवाज नहीं निकली | वह मुझे भयभीत नजरों से देखता हुआ दरवाजे से बाहर चला
गया |
उसके जाने के बाद मेरा मन बेहद शान्त
हो गया | मुझे असीम तृप्ति होती – सी महसूस हुई | मैं पलंग पर आँखें बंद कर लेट
गया | थोड़ी देर बाद एकाएक बदसूरत धड़ का ध्यान आया | मैं दरवाजे से बाहर निकला |
बरामदे में बदसूरत धड़ लहूलुहान पड़ा कराह रहा था | मैंने उसे सहारा देकर उठाया और
कमरे में ले जाकर सोफे पर बिठाया | उसने स्नेहभरी नजरों से मुझे देखा और कहा , “
आजकल लोग देखकर भी नहीं चलते | किसी भी तरह आगे निकलना चाहते हैं और आसमान छूना
चाहते हैं | ” **
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
पवन शर्मा |
पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई कहानी है -
मेरे दो धड़
मुझे लगता है कि मैं दो
धड़ों में बंट गया हूँ |
पहला – खूबसूरत धड़ और दूसरा बदसूरत धड़ |
पहला धड़ दूसरे धड़ पर हावी हो गया है | मैं यकीन नहीं कर पाता कि ऐसा क्यों हो रहा
है ? तमाम कोशिशों के बावजूद भी मैं ये जानने में असफल रहता हूँ , फिर भी इतना
जानने में अवश्य सफल हुआ हूँ कि वे दोनों जैसे हैं , वैसे नहीं हैं , और जैसे नहीं
हैं , वैसे हैं |
दोनों धड़ों की वजह से मैं परेशानी में
फँस गया हूँ | अच्छा काम करने पर खूबसूरत धड़ मुझे रोकता है | अपनी लच्छेदार बातों
से लुभाकर अपने कर्यानुरूप कार्य करने को प्रेरित करता है और जब मैं उसके कहे
अनुसार कार्य करता हूँ तो बदसूरत धड़ मुझे रोकने की कोशिश करता है , किन्तु मैं
बदसूरत धड़ की एक नहीं सुनता , क्योंकि मैं खूबसूरत धड़ की चमक की गिरफ्त में बुरी
तरह फँस चुका हूँ |
एक बात और है – वह ये कि जहाँ एक ओर खूबसूरत
धड़ अच्छे – अच्छे कपड़े पहने , अप – टू – डेट बना घूमता रहता है , वहीँ बदसूरत धड़ अपनी
फटी हुई शर्ट को हाफ स्वेटर के नीचे पहने और गले में मफलर डाले रहता है | उसके
चेहरे पर चेचक के दाग मन में घिन पैदा करते हैं | खूबसूरत धड़ हमेशा कलाई में
गोल्डन , चमकती घड़ी और गले में सोने की चेन पहने रहता है , वहीँ बदसूरत धड़ की कलाई
और गला हमेशा खाली रहता है |
खूबसूरत धड़ मुँहफट है और अपनी बात पर
टिकनेवाला नहीं है | मैं ये जानता हूँ कि खूबसूरत धड़ में समस्त अवगुण मौजूद हैं |
उन्हीं में मुझे वह ढाल रहा है | बदसूरत धड़ अक्खड़ है , अड़ियल है | साथ ही बेहद
शालीन है | खूबसूरत धड़ की तरह उसमें अवगुण नाममात्र को नहीं हैं |
पहले अहसासभर था , किन्तु अब यकीन भी
हो जाता है कि मैं दो धड़ों में बंट गया हूँ | सोच बढ़ती जाती है – क्यों और कैसे ?
स्मृतियों में खोता हूँ ...
मैं रात को खाना खाकर लेटा हुआ ‘ गोदान
’ पढ़ रहा था | सहसा दरवाजे पर आहट हुई | मैंने उपन्यास सिरहाने रख दिया और दरवाजे
की ओर देखा | अच्छे कपड़े पहने , कलाई में चमकती घड़ी और गले में सोने की चेन पहने
खूबसूरत धड़ मेरे पलंग की ओर बढ़ रहा है | पलंग के नजदीक आकर खूबसूरत धड़ कुर्सी
खींचकर बैठ गया और बोला , “ अकेले हो गुरु ! ”
मैं आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा | मैंने
देखा कि उसने जेब से सिगरेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली | सिगरेट के धुएँ से कमरा
भर गया | मैंने उठकर खिड़की खोली | पलंग पर बैठते हुए मैंने देखा कि वह मन्द – मन्द
मुस्करा रहा है | उसकी बेफिक्री मुझे आश्चर्य में डाल रही थी |
“ बच्चे अपने नाना – नानी के यहाँ गए
हैं न ? ” खूबसूरत धड़ ने पूछा |
“ हाँ | पर तुम्हें कैसे मालूम ? ”
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ |
“ मुझे सब मालूम है | ”
“ कैसे ? ”
“ बस , ये मत पूछिए | ”
“ कौन हो तुम ? ”
“ धीरे – धीरे सब जान जाएँगे | मुझे भी
पहचान जाएँगे | ” वह बोला , फिर सिगरेट का कश खिंचा |
हम दोनों के मध्य ख़ामोशी तैर आई | मैं
अभी तक ये अनुमान नहीं लगा पाया कि आखिर ये कौन है ? दरवाजा बन्द होने के बावजूद
ये कमरे में घुस कैसे आया ? कमरे में आया , कुर्सी पर बैठा, सिगरेट सुलगाकर पीने
लगा और बेतकल्लुफी से बातें करने लगा | उसका चेहरा देखकर मैं एक बार साँसत में फँस
गया – हू – ब – हू मेरा चेहरा |
“ पत्नी और बच्चों को लेने कब जाओगे
गुरु ? ” उसने पूछा |
“ अगले माह की चार – पाँच तारीख तक |
तब तक तनख्वाह भी मिल जाएगी | ”
मेरी बात सुनकर वह जोरों से हँसा |
“ क्यों हँस रहे हो ? ” मैं झल्लाया |
वह कुछ नहीं बोला | हँसता रहा | थोड़ी
देर बाद जब उसकी हँसी थमी , तब बोला , “ आप परेशान हैं गुरु ! ”
“ बिल्कुल नहीं | ” मेरी झल्लाहट कम
नहीं हुई |
“ मैं नहीं मान सकता | आप कुछ भी कहें |
मैं बराबर आपके साथ हूँ | सब जानता हूँ | ”
“ क्या जानते हो – बताओ ? ”
“ आपकी परेशानियों को | ” थोड़ी देर
रूककर उसने कहा , “ आर्थिक दृष्टि से आप बेहद कमजोर हैं | आपने दुनियाँदारी नहीं सीखी है |दुनियाँ जिस रास्ते पर चल रही है , आप नहीं चल रहे हैं | इसलिए आपकी जेब
हमेशा खाली रहती है | मैं जैसा कहूँ , वैसा ही करें , फिर देखें – आप हमेशा सुखी
रहेंगे | ”
“ क्या करना है मुझे ? ” मैंने उसके
चेहरे पर अपनी नजर गढ़ा दीं |
“ तो सुनो गुरु ... ” वह कह रहा था और
मैं सुन रहा था |
उसने सिगरेट का आखिरी कश भरकर सिगरेट
फेंक दी |
“ तुम मुझे गलत रास्ते पर चलने को उकसा
रहे हो | ” उसकी सारी बातें सुनकर मैंने कहा |
“ तो फिर सड़ते रहो | हर महीने की पहली
तारीख पर अपनी नजरें जमाये रहा करो | ” वह झल्ला गया , “ मैं चाहता हूँ कि आपका
जीवन बदल जाए , और आप खुशी रहें | ”
मैंने सोचा – सच है , बाबूगिरी करते
हुए अपने जीवन के सत्रह वर्ष बिता दिए – क्या मिला ? एक प्रमोशन ही न ! बड़े बाबू
से एकाउटेंट बन गया | न अच्छा पहन सका और न अच्छा खा सका | अपनी पत्नी और अपने
बच्चों की इच्छाओं का गला घोंटता रहा| हर महीनें की पहली तारीख पर नजरें जमीं रहतीं|
“ एक बात और , ” खूबसूरत धड़ कुर्सी से
उठता हुआ बोला | मैं भी यंत्रवत खड़ा हो गया उसके साथ , " एक साला , फटीचर आपके मार्ग का
कंटक बन सकता है | उसे अधिक लिफ्ट न दें | ”
“ कौन है ? ” मैने पूछा |
“ सब समझ जाएँगे | अब चलूँगा | मैंने
जैसा कहा है , वैसा ही करें | आपका जीवन बदल जाएगा | ” कहते हुए वह दरवाजे तक आया |
मैं भी उसके पीछे – पीछे आया | दरवाजे पर आकर वह ठिठका और मुड़कर बोला , “ मैं आपका
खूबसूरत धड़ हूँ ! “
मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया |
महीनों बाद मैंने अपनी ओर देखा | मेरा
जीवन बदल गया | हर जरूरतें पूरी होने लगीं | किसी चीज की कोई कमी नहीं रही | मैं
खुश रहने लगा | पत्नी और बच्चे भी |
खूबसूरत धड़ ने मुझे पूरी तरह गिरफ्त
में ले लिया | मेरे जीवन को बदलने में उसी का हाथ था | मुझे उसकी तलाश हमेशा रहती |
चलते – चलते ऐसा लगा कि कोई मेरा पीछा
कर रहा है | कई बार मुड़कर देखा , किन्तु समझ में नहीं आया कि कौन है ? ....
( शेष अगले भाग में )
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पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा
( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर – 9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
संगीत कुमार वर्णबाल |
बेरोजगारी का कहर
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.