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22.9.20

पवन शर्मा की कहानी - " मेरे दो धड़ " ( भाग - 2 )

 

पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है |



पवन शर्मा 








       मेरे दो धड़

                                 ( भाग -1 से आगे )

 

चलते – चलते ऐसा लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है | कई बार मुड़कर देखा , किन्तु समझ नहीं आया कि कौन है ? पेण्ट की जेब में हाथ डालकर सौ – सौ के दस नोटों को कसकर पकड़ लिया | भय लगने लगा कि पीछा करनेवाला छीनकर न भाग जाए |

          “ भाई साहब ! ”  पीछे से किसी ने पुकारा |

          मैं रुक गया | मुड़कर देखा तो अपना वही पुराना स्वेटर पहने और गले में मफलर डाले बदसूरत धड़ खड़ा था | मैं जानता हूँ कि स्वेटर के नीचे उसकी शर्ट फटी होगी | मेरी त्यौरियाँ चढ़ गईं ,  “ तुम ! ”

          “ हाँ भाई साहब ! काफी देर से आपको ढूँढ रहा था | ” बदसूरत धड़ बोला ,  “ फिर पता चला कि आप ‘ बार ’ में बैठे हैं | यहाँ आपसे मिलने की हिम्मत नहीं हुई | ”

          “ क्यों ? क्या काम है ? ”  मैं झल्लाया |

          “ कुछ नहीं | बस , आपके दर्शन करने थे | ”  वह नर्म स्वर में बोला |

          मैं झल्लाता हुआ चलने लगा | वह भी मेरे बराबर चलने लगा | मैंने पेण्ट की जेब में से हाथ बाहर निकाल लिए | अब कोई भय नहीं था |

          “ आजकल आप बदल गए हैं ... आपका जीवन बदल गया है | ”  बदसूरत धड़ चलते – चलते कहता है |

          “ सो तो है | ये सब उसकी वजह से सम्भव हुआ है | ” मेरा इशारा खूबसूरत धड़ की ओर था |

          “ वह आपको कुमार्ग पर ले जा रहा है| सुमार्ग पकड़ें | ” कहते – कहते बदसूरत धड़ गिड़गिड़ा गया |

          “ तुम मेरे और उसके बीच दरार पैदा कर रहे हो | ”

          “ मेरा उनसे कोई बैर नहीं है|वे ही मुझसे बैर रखते हैं| ” उसने कहा और जेब में से रुमाल निकालकर चेहरे पर जमी धूल पोंछी |

          अँधेरा होने लगा | ठण्ड में जल्दी अँधेरा होता है | सड़क के किनारे बिजली के खम्बों पर लगे बल्ब जलने लगे | ऑफिस से घर तक का रास्ता लम्बा पड़ता है | पैदल ही तय करता है | कई दिनों से सोच रहा हूँ कि स्कूटर ले लूँ | पैदल चलने में परशानी होती है |

          बदसूरत धड़ मेरे साथ – साथ चल रहा है |

          “ आजकल आप अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं | पद की गरिमा नष्ट कर रहे हैं | ” बदसूरत धड़ ने चलते – चलते कहा |

          मैं चौंका ,  “ कैसे ? ”

          “ किसी का भी काम बिना लिए नहीं करते | ” बदसूरत धड़ ने कहा | मैं निरुत्तर था |

          “ आपकी पेण्ट की जेब में जो सौ – सौ के दस नोट रखे हुए हैं , वे आपको किसने और क्यों दिए हैं, मैं ये भी जानता हूँ | ” बदसूरत धड़ कहता है | सुनकर मैं जेब में हाथ डालकर नोटों को कसकर पकड लेता हूँ | फिर से भय लगने लगा |

          “ जानते हैं आप – यदि ये एक हजार रुपए आपके ऑफिस के भृत्य रामदास के पास ही रहते तो उसके कितने काम आते ! अपनी बेटी को अपने घर से विदा कराने में कितने सहायक होते ! ”

          रामदास का सामान्य भविष्य निधि से आंशिक विकर्षण स्वीकृत किया जाना मेरी आँखों में कोंध गया | रामदास से दो हजार रुपए लिए | एक मैंने रखे और एक साहब को दिए |

          “ अपने सुखों की पूर्ति के लिए आप दूसरों का गला काटने में लगे हैं | छिः – छिः पहले तो आप ऐसे नहीं थे | ”

          मैं फिर निरुत्तर था| बदसूरत धड़ दो टूक कह रहा था |

          “ बेईमानी आपमें अन्दर तक घर कर गई है | झूठ आप अपने सिर से ऊपर तक बोलने लगे हैं | कितने गिर गए हें आप ! ” बदसूरत धड़ कह रहा था |

          “ प्लीज , चुप हो जाओ | ”  मैं चीख पड़ा |

          “ सत्य का सामना करने का आपमें साहस ही नहीं रहा | व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठने की कोशिश कीजिए | जीवन को स्थिर कीजिए | सूरज को छूने की कोशिश मत कीजिए | यही मेरा आपसे विनम्र निवेदन है |” बदसूरत धड़ ने मेरे अहम् पर चोट की |

          “ तुम ... तुम ... ”  मैं चीख रहा था | हाथ – पैरों में ऐंठन होने लगी |

          “ आप चाहें तो मेरा त्याग कर सकते हैं | मैं उफ़ तक नहीं करूँगा या फिर उनका कर दें | निर्णय करना आपका काम है | ” बदसूरत धड़ ने कहा , फिर भीड़ में खो गया | मैं आँखें फाड़ – फाड़कर भीड़ में खोज रहा था | वह दिखाई नहीं दिया |

 

मेरी सारी सोच , मेरी सारी फ़िक्र , मेरी सारी परेशानी इस बात में सिमट आई थी कि मैं किसका त्याग करूँ ? एक ओर जहाँ खूबसूरत धड़ ने मुझे भौतिक सुख , एश्वर्य के साधन जुटाए है ... सुख – समृद्धि से उसने मेरे जीवन को भर दिया है ... उसका त्याग करूँ ? अथवा बदसूरत धड़ का ? जिसके पास कोरी इच्छाओं के अलावा कुछ नहीं है |

          अचानक दरवाजा भड़भड़ाता हुआ खूबसूरत धड़ कमरे मर घुस आया | मैंने चौंककर उसकी ओर देखा ,  “ तुम ? ”

          “ हाँ गुरु मैं | ”  कहता हुआ वह सोफे पर पसर गया | थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोला ,  “ आज तो अच्छा माल हाथ लगा ! ”  उसका इशारा सौ – सौ के दस नोटों की ओर था | मैं चुप रहा | बदसूरत धड़ की बातें मेरी आत्मा को और भी छील रही थीं | इसी वजह से मेरा व्यवहार खूबसूरत धड़ के साथ जरा उखड़ा हुआ था |

          “ साला , शाम को खूब भाषण पेल रहा था आपको | ” खूबसूरत धड़ ने हँसते हुए कहा |

          “ कैसे बात कर रहे हो तुम ! ऐसी बात कहते तुम्हें शर्म नहीं आती ! ”  मैं क्रोध से भर उठा |

          “ क्या गुरु ! ”  खूबसूरत धड़ आश्चर्य से मेरी ओर देख रहा था , “ लगता है, आज उसने आपका मूड ऑफ़ कर दिया है | ”

          “ कुछ भी कहो – वह जो भी कहता है , खरी – खरी कहता है | ”  मेरा क्रोध जरा कम हुआ |

          “ कहेगा ही ... खुद नंगा है , दूसरों को भी नंगा रहने को कहता है | जानते हैं आप , उसके मन में मेरे प्रति हमेशा मैल भरा रहता है ... ईर्ष्या , द्वेश अलग रखता है मुझसे | ”

          “ ये बात नहीं है | वह तो ... ”

          “ यही बात है | तभी तो मैं आपके साथ आया हूँ | जब मैं यहाँ आ रहा था , तब वह दरवाजे पर खड़ा था | मैंने उसे जोर से धक्का मारा और भीतर घुस आया उससे पहले ... उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह मेरा सामना कर सके | ”

          “ क्या वह बाहर है ? ”

          “ हाँ क्यों ? “  खूबसूरत धड़ अचकचा गया |

          मेरी सारी चेतना जाग्रत हो गई | मैंने मन को संयम में किया | एक दृढ – संकल्प कर कहा ,  “ आज के बाद मुझसे मिलने की तुम चेष्टा मत करना ... समझे ! मैं पहले ही ठीक था , सुख से था ... अब मैं कितना गिर गया हूँ ! मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही है| ये सब तुम्हारी वजह से ही हुआ है| मैं तुम्हारा त्याग करता हूँ| ”

          “ गुरु ... गुरु ... ”  खूबसूरत धड़ के मुँह से आवाज नहीं निकली | वह मुझे भयभीत नजरों से देखता हुआ दरवाजे से बाहर चला गया |

          उसके जाने के बाद मेरा मन बेहद शान्त हो गया | मुझे असीम तृप्ति होती – सी महसूस हुई | मैं पलंग पर आँखें बंद कर लेट गया | थोड़ी देर बाद एकाएक बदसूरत धड़ का ध्यान आया | मैं दरवाजे से बाहर निकला | बरामदे में बदसूरत धड़ लहूलुहान पड़ा कराह रहा था | मैंने उसे सहारा देकर उठाया और कमरे में ले जाकर सोफे पर बिठाया | उसने स्नेहभरी नजरों से मुझे देखा और कहा ,  “ आजकल लोग देखकर भी नहीं चलते | किसी भी तरह आगे निकलना चाहते हैं और आसमान छूना चाहते हैं | ” **


                                 - पवन शर्मा 

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पवन शर्मा

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867. 

 

            

   


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