पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है |
पवन शर्मा |
मेरे दो धड़
( भाग -1 से आगे )
चलते – चलते ऐसा लगा कि कोई
मेरा पीछा कर रहा है | कई बार मुड़कर देखा , किन्तु समझ नहीं आया कि कौन है ? पेण्ट
की जेब में हाथ डालकर सौ – सौ के दस नोटों को कसकर पकड़ लिया | भय लगने लगा कि पीछा
करनेवाला छीनकर न भाग जाए |
“ भाई साहब ! ” पीछे से किसी ने पुकारा
|
मैं रुक गया | मुड़कर देखा तो अपना वही
पुराना स्वेटर पहने और गले में मफलर डाले बदसूरत धड़ खड़ा था | मैं जानता हूँ कि
स्वेटर के नीचे उसकी शर्ट फटी होगी | मेरी त्यौरियाँ चढ़ गईं , “ तुम ! ”
“ हाँ भाई साहब ! काफी देर से आपको ढूँढ
रहा था | ” बदसूरत धड़ बोला , “ फिर पता चला कि आप ‘ बार ’ में बैठे हैं | यहाँ
आपसे मिलने की हिम्मत नहीं हुई | ”
“ क्यों ? क्या काम है ? ” मैं झल्लाया
|
“ कुछ नहीं | बस , आपके दर्शन करने थे |
” वह नर्म स्वर में बोला |
मैं झल्लाता हुआ चलने लगा | वह भी मेरे
बराबर चलने लगा | मैंने पेण्ट की जेब में से हाथ बाहर निकाल लिए | अब कोई भय नहीं
था |
“ आजकल आप बदल गए हैं ... आपका जीवन
बदल गया है | ” बदसूरत धड़ चलते – चलते कहता है |
“ सो तो है | ये सब उसकी वजह से सम्भव
हुआ है | ” मेरा इशारा खूबसूरत धड़ की ओर था |
“ वह आपको कुमार्ग पर ले जा रहा है|
सुमार्ग पकड़ें | ” कहते – कहते बदसूरत धड़ गिड़गिड़ा गया |
“ तुम मेरे और उसके बीच दरार पैदा कर
रहे हो | ”
“ मेरा उनसे कोई बैर नहीं है|वे ही
मुझसे बैर रखते हैं| ” उसने कहा और जेब में से रुमाल निकालकर चेहरे पर जमी धूल
पोंछी |
अँधेरा होने लगा | ठण्ड में जल्दी
अँधेरा होता है | सड़क के किनारे बिजली के खम्बों पर लगे बल्ब जलने लगे | ऑफिस से
घर तक का रास्ता लम्बा पड़ता है | पैदल ही तय करता है | कई दिनों से सोच रहा हूँ
कि स्कूटर ले लूँ | पैदल चलने में परशानी होती है |
बदसूरत धड़ मेरे साथ – साथ चल रहा है |
“ आजकल आप अपने पद का दुरुपयोग कर रहे
हैं | पद की गरिमा नष्ट कर रहे हैं | ” बदसूरत धड़ ने चलते – चलते कहा |
मैं चौंका , “ कैसे ? ”
“ किसी का भी काम बिना लिए नहीं करते |
” बदसूरत धड़ ने कहा | मैं निरुत्तर था |
“ आपकी पेण्ट की जेब में जो सौ – सौ के
दस नोट रखे हुए हैं , वे आपको किसने और क्यों दिए हैं, मैं ये भी जानता हूँ | ”
बदसूरत धड़ कहता है | सुनकर मैं जेब में हाथ डालकर नोटों को कसकर पकड लेता हूँ |
फिर से भय लगने लगा |
“ जानते हैं आप – यदि ये एक हजार रुपए
आपके ऑफिस के भृत्य रामदास के पास ही रहते तो उसके कितने काम आते ! अपनी बेटी को
अपने घर से विदा कराने में कितने सहायक होते ! ”
रामदास का सामान्य भविष्य निधि से
आंशिक विकर्षण स्वीकृत किया जाना मेरी आँखों में कोंध गया | रामदास से दो हजार
रुपए लिए | एक मैंने रखे और एक साहब को दिए |
“ अपने सुखों की पूर्ति के लिए आप
दूसरों का गला काटने में लगे हैं | छिः – छिः पहले तो आप ऐसे नहीं थे | ”
मैं फिर निरुत्तर था| बदसूरत धड़ दो
टूक कह रहा था |
“ बेईमानी आपमें अन्दर तक घर कर गई है |
झूठ आप अपने सिर से ऊपर तक बोलने लगे हैं | कितने गिर गए हें आप ! ” बदसूरत धड़ कह
रहा था |
“ प्लीज , चुप हो जाओ | ” मैं चीख पड़ा
|
“ सत्य का सामना करने का आपमें साहस ही
नहीं रहा | व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठने की कोशिश कीजिए | जीवन को स्थिर कीजिए |
सूरज को छूने की कोशिश मत कीजिए | यही मेरा आपसे विनम्र निवेदन है |” बदसूरत धड़
ने मेरे अहम् पर चोट की |
“ तुम ... तुम ... ” मैं चीख रहा था |
हाथ – पैरों में ऐंठन होने लगी |
“ आप चाहें तो मेरा त्याग कर सकते हैं |
मैं उफ़ तक नहीं करूँगा या फिर उनका कर दें | निर्णय करना आपका काम है | ” बदसूरत
धड़ ने कहा , फिर भीड़ में खो गया | मैं आँखें फाड़ – फाड़कर भीड़ में खोज रहा था | वह
दिखाई नहीं दिया |
मेरी सारी सोच , मेरी सारी
फ़िक्र , मेरी सारी परेशानी इस बात में सिमट आई थी कि मैं किसका त्याग करूँ ? एक ओर
जहाँ खूबसूरत धड़ ने मुझे भौतिक सुख , एश्वर्य के साधन जुटाए है ... सुख – समृद्धि
से उसने मेरे जीवन को भर दिया है ... उसका त्याग करूँ ? अथवा बदसूरत धड़ का ? जिसके
पास कोरी इच्छाओं के अलावा कुछ नहीं है |
अचानक दरवाजा भड़भड़ाता हुआ खूबसूरत धड़
कमरे मर घुस आया | मैंने चौंककर उसकी ओर देखा , “ तुम ? ”
“ हाँ गुरु मैं | ” कहता हुआ वह सोफे
पर पसर गया | थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोला , “ आज तो अच्छा माल हाथ लगा ! ” उसका इशारा सौ – सौ के दस नोटों की ओर था | मैं चुप रहा | बदसूरत धड़ की बातें मेरी
आत्मा को और भी छील रही थीं | इसी वजह से मेरा व्यवहार खूबसूरत धड़ के साथ जरा उखड़ा
हुआ था |
“ साला , शाम को खूब भाषण पेल रहा था
आपको | ” खूबसूरत धड़ ने हँसते हुए कहा |
“ कैसे बात कर रहे हो तुम ! ऐसी बात
कहते तुम्हें शर्म नहीं आती ! ” मैं क्रोध से भर उठा |
“ क्या गुरु ! ” खूबसूरत धड़ आश्चर्य से
मेरी ओर देख रहा था , “ लगता है, आज उसने आपका मूड ऑफ़ कर दिया है | ”
“ कुछ भी कहो – वह जो भी कहता है , खरी
– खरी कहता है | ” मेरा क्रोध जरा कम हुआ |
“ कहेगा ही ... खुद नंगा है , दूसरों
को भी नंगा रहने को कहता है | जानते हैं आप , उसके मन में मेरे प्रति हमेशा मैल
भरा रहता है ... ईर्ष्या , द्वेश अलग रखता है मुझसे | ”
“ ये बात नहीं है | वह तो ... ”
“ यही बात है | तभी तो मैं आपके साथ
आया हूँ | जब मैं यहाँ आ रहा था , तब वह दरवाजे पर खड़ा था | मैंने उसे जोर से
धक्का मारा और भीतर घुस आया उससे पहले ... उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह मेरा सामना
कर सके | ”
“ क्या वह बाहर है ? ”
“ हाँ क्यों ? “ खूबसूरत धड़ अचकचा गया |
मेरी सारी चेतना जाग्रत हो गई | मैंने
मन को संयम में किया | एक दृढ – संकल्प कर कहा , “ आज के बाद मुझसे मिलने की तुम
चेष्टा मत करना ... समझे ! मैं पहले ही ठीक था , सुख से था ... अब मैं कितना गिर
गया हूँ ! मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही है| ये सब तुम्हारी वजह से ही हुआ है|
मैं तुम्हारा त्याग करता हूँ| ”
“ गुरु ... गुरु ... ” खूबसूरत धड़ के
मुँह से आवाज नहीं निकली | वह मुझे भयभीत नजरों से देखता हुआ दरवाजे से बाहर चला
गया |
उसके जाने के बाद मेरा मन बेहद शान्त
हो गया | मुझे असीम तृप्ति होती – सी महसूस हुई | मैं पलंग पर आँखें बंद कर लेट
गया | थोड़ी देर बाद एकाएक बदसूरत धड़ का ध्यान आया | मैं दरवाजे से बाहर निकला |
बरामदे में बदसूरत धड़ लहूलुहान पड़ा कराह रहा था | मैंने उसे सहारा देकर उठाया और
कमरे में ले जाकर सोफे पर बिठाया | उसने स्नेहभरी नजरों से मुझे देखा और कहा , “
आजकल लोग देखकर भी नहीं चलते | किसी भी तरह आगे निकलना चाहते हैं और आसमान छूना
चाहते हैं | ” **
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
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