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15.4.22

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " ये बदरा "

 यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -












ये बदरा


ये बदरा !

अटका रह गया 

किसी नागफनी काँटे में ,

बिजुरी का ज्यों अँचरा !

                    ये बदरा !!


जल की चल झीलें ये ,

उड़ती हैं चीलों - सी ,

झर-झर-झर झरती हैं ,

जलफुहियाँ खीलों-सी ;

                    पानी की सतह-सतह 

                    बूंद के बतासें ये 

                    फैंक दिये मेघों ने 

                    खिसिया कर पाँसे ये;

पीपल जो बेहद खुश 

था अपनी बाजी पर,

उसके ही सिर पर अब 

गाज गिरी है अररा !

                    ये बदरा !!


व्योम की ढलानों पर 

बरखा के बेटे ये,

दौड़-दौड़ हार गये,

हार-हार बैठे ये; 

                    लेटे-अधलेटे ये 

                    नक्षत्र नैन मूँद ,

                    चंदा के अँजुरी भर 

                    स्वप्न सँजो बूंद-बूंद;

अर्पित हो बिखर गये 

भावुक समर्पण में,

टूट गया जादू औ'

टोनों का हर पहरा !

                    ये बदरा !!


बिना रीढ़ वाले ये 

जामुनी अँधेरे-से ,

आर-पार घिरे हुए 

सम्भ्रम के घेरे-से;

                    धरती की साँसों की 

                    गुँजलक में बंधे हुए,

                    आते हैं सागर की 

                    सुधियों से लदे-फंदे ;

आँखों में अंकित हैं 

काया के इन्द्रधनुष ,

प्राणों में बीते का 

सम्मोहन है गहरा !

                    ये बदरा !!


ये बदरा !

अटका रह गया 

किसी नागफनी काँटे में,

बिजुरी का ज्यों अँचरा !

ये बदरा !!   **


               - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन - सुनील कुमार शर्मा 

सम्पर्क -     9414771867

2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |

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  2. आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |

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