यह कविता , पवन शर्मा की पुस्तक - " किसी भी वारदात के बाद " ( कविता - संग्रह ) से ली गई है -
सुनो साधो
सुनो साधो
चलो , चलें और
बैठें उसी पुल पर
जहाँ हम पहले बैठा करते थे
बिता दें सारी रात
बतियाते हुए
कितने दिन हो गये
न तुमने अपनी कही
न मेरी सुनी
गले तक नहीं मिले साधो
सुनो साधो
नहीं सीखी तुमने
दुनियादारी
नहीं पहिचान पाये
गिरगिटों के रंग
बीड़ी पीते रहे
बैरागी बने
घूमते रहे
साधो , सुनो मेरे यार
कुछ हासिल नहीं कर पाये तुम
जीवन में
हथेली रगड़ते रहे
दाढ़ी सहलाते रहे
झूठे भ्रमों में
पलते रहे सदा
सुनो साधो
पर - दुखों में तुम
लिपट जाते पेड़ों से
ढुलकाते रहते आँसू
सुलगाते रहते अपनी देह
सचमुच साधो
गऊ हो तुम
जिसने जिधर हाँका
उधर चल पड़े
नदियों के ऊपर
किसी भी दिशा में
साधो
तुम सदा
यही तो चाहते थे न कि
जब दमें की खाँसी से तुम
दुहरे हो जाओ
दर्द से तड़प उठो तब
तुम्हारी छाती और पीठ को
सहलाने वाले हाथ
तुम्हारे करीब हों
तुम्हारी स्मृतियों को हर करने वाले
तुम्हारे करीब हों
तुम्हारी यात्राओं और संवेदनाओं के सहभागी
तुम्हारे करीब हों
सुनो साधो
यदि ऐसा नहीं हुआ
तब ? **
- पवन शर्मा
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पता -
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना । शत शत शुभ कामनाएं , आशीष ।
ReplyDeleteआदरणीय आलोक सिन्हा जी , आपके द्वारा कवियों की सराहना प्रेरणा स्रोत होती है | बहुत - बहुत धन्यवाद |
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