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30.4.21

डॉ 0 योगेन्द्र गोस्वामी - " आस्थाओं का हिमवान " ( भाग - 3 )

 इसे , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है | यह पुस्तक की भूमिका है -



मेरी छोटी आँजुरी 


आस्थाओं का हिमवान ( भाग - 3 )

( भूमिका )


... आज कविता के तथाकथित पैरोकारों ने ऐसे – ऐसे फतवे दिये हैं , जिनसे कविता की मूलभूत मान्यताएँ गहरे तक आघातित हुई हैं , और यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि साहित्य का वातावरण दूषित हो गया है |

( भाग - 3 )

सूर और तुलसी का साहित्य रसिकों का वचनवैदग्ध्य है | भावुकता या अश्रुमोचन कोई इनका शौक नहीं है अपितु गहरी मर्मव्यथा है | हिन्दी का अतीत इसी से गौरवमय बना है | शर्मा जी ने इसे सहेजने में कोई भूल नहीं की है | किन्तु बड़बोले कमाऊ कवियों की भड़ैती का निर्भय होकर पर्दाफ़ाश भी किया है |

          नहीं अध्ययन – मनन है , और न काव्य विवेक |

          किन्तु कंठ के बल बने , वे कवि नम्बर एक ||

          मर्यादा शालीनता ,का न मंच पर काम |

          गन्दे फूहड़ चुटकुले , सिर्फ हास्य का नाम ||

          बस गिनती के गीत हैं , उन पर पन्द्रह – बीस |

          उन्हें सुनाकर हो गए मिठू जी ‘ वागीश ’ ||

          कवि – सम्मलेन में घुस आये अशोमन प्रसंगों का उल्लेख शर्मा जी ने अनेक दोहों में किया है | इनके चरित्रों पर बेबाक टिप्पणियाँ भी की हैं | इनके बिना जमाने के दोष सामने नहीं आते तो भी यहाँ एक बात को ओझल नहीं करना चाहिए कि अल्पशिक्षित सामान्य जन की रुचि के अनुकूल बनाकर प्रस्तुत करने की कला जब तक श्रेष्ठ रचनाकार नहीं सीखते , तब तक इस विकृति से छुटकारा नहीं मिल सकता |

          एक बात अक्सर देखी गई है कि अपने आपको श्रेष्ठ रचनाकार मानने वाले लेखक / कवि अपनी रचनाओं को समीक्षा / आलोचना की बैसाखी पर खड़ा करने के लिए अत्यधिक बैचेन रहते हैं | कवि को अपनी कविता के लिए आलोचकों , समीक्षकों की टीका – टिप्पणी के लिए नवसिखुए लेखकों की चिरौली करनी पड़ती है | साधारण से भी गए – बीते आलोचक की पूछ होने लगती है | झूठी प्रशंसा के पुल बांधे जाते हैं और यह लिखवाया जाता है कि इनके जैसा दूसरा कवि आज तक पैदा नहीं हुआ | यहाँ मैं यह कहना आवश्यक समझता हूँ कि श्री श्रीकृष्ण शर्मा की प्रस्तुत दोहा – सतसई पर यह दोष कतई नहीं लगाया जा सकता |इनके दोहे मुखर हैं , बोलते हुए हैं | इन्हें न किसी भूमिका की आवश्यकता है , और न झूठी प्रशंसा की | इनमें चारुता औए दृढ़ता दोनों हैं | अत्यन्त प्रसन्न मधुर होकर भी वाचाल नहीं हैं | ये दोहे अपने पैरों पर सीधे दौड़ते हैं , अपनी बात खुद सफलतापूर्वक कहते हैं | इनमें गजब का संतुलन है |

          परिवर्तन और नवीनता का स्वागत होना चाहिए | यह प्रकृति का अटल सिद्धान्त है , जिसको कोई बदल नहीं सकता | परन्तु अतीत से प्राप्त ज्ञान और संस्कृति का तिरस्कार नवीनता के लिए कोई शर्त नहीं हो सकती | संसार की कोई भी श्रेष्ठ कृति नूतन और पुरातन के समन्वय के अभाव में नहीं चल सकती | सर्वविध्वंसकारी मनोवृति के साथ जो एकाधिकारवादी आग्रह या आन्दोलन चलाने पर आमादा हों उनके फतवों पर जिहादों को कितना महत्व दिया जाना चाहिए , यह बताने की आवश्यकता नहीं है | इनके लिए ‘ स्वकीय ’ परम्पराओं और इतिहास का अपनी दृष्टि से आकलन करना होगा , दूसरों के द्वारा ईर्ष्यावश या राजनैतिक कारणों से की गयी व्याख्याएँ कहीं हमारी अस्मिता को ठेस न लगा सकें , इसके प्रति जागरूक रहकर ही साहित्य और संस्कृति का नवोन्मेष परिक्षणीय हो उठता है | इस अर्थ में ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ में कवि ने बड़े दायित्वों को पूरे मनोयोग से निभाना है |

          नवतावादी आन्दोलनों के उठने और गिरने के पीछे एक बड़ा तथ्य साहित्य समीक्षा का पटरी से उतरना है | असल में आज की आलोचना ऐसी बेलगाम घोड़ी है , जो अराजकता की जननी है और रचनाशीलता को धक्का देकर गिराने का आतंकपूर्ण प्रयास करती है | यह साहित्य – जगत में असाहित्यिकता की घुसपैठ है , मानव संस्कृति की उदार चेतना को संकीर्ण दायरों में बाँधकर प्रतिबद्धता का ढोंग करती है और अपनी वोट बैंक बैलेंस बढ़ाने की बुरी नीयत से संचालित होती है | जिस समाज में साहित्य और संस्कृति का चिन्तन मौलिक स्वकीय और सहज होगा , आरोपित नहीं , वहाँ साहित्य और समाज दोनों का स्वस्थ विकास होना अवश्यंभावी है |

          कविवर शर्मा जी का परम्परा को नमन करने का अपना तरीका है , जो अधिक मुखर है | **

( आगे का , भाग – 4 में )     

                           - डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी  


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


29.4.21

डॉ 0 योगेन्द्र गोस्वामी - " आस्थाओं का हिमवान " ( भाग - 2 )

 इसे  , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है | यह पुस्तक की भूमिका है -


मेरी छोटी आँजुरी 


आस्थाओं का हिमवान 

( भूमिका )


भाग - 1 में आपने पढ़ा -

                    पता न किन – किन पूर्वजों , से हम हैं मौजूद |

                    बोलो फिर कैसे कहें , ईश्वर का न वजूद ||

                    ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ सम्मुख सिन्धु अपार |

                    ओ आकाशी देवता ! अर्ध्य करो स्वीकार || 

          इसी प्रकार द्वितीय भाग में प्रकरण 30 से अंत तक वर्तमान जीवन की विसंगतियों को रेखांकित किया गया है –

क्रमशः

भाग - 2 

इसी प्रकार द्वितीय भाग में प्रकरण 30 से अंत तक वर्तमान जीवन की विसंगतियों को रेखांकित किया गया है –

          जनता का क्या है यहाँ , नेताओं को राज |

          मांस गया ठठरी रही , जिसे नौंचते बाज ||

          गली मोहल्ले में रहे , जो कि कभी बदनाम |

          नैतिकता के वास्ते , उनको मिला इनाम ||

          सतसई के अंतिम प्रकरण में कवि ने अपनी कुल गोत्र सहित व्यक्तिगत परिचय कुछ दोहों में दिया है | आरम्भ में आधुनिक लेखन की लफ्फाजी और आलोचकों बदनीयती को ठेंगा दिखाते हुए कवि ने धड़ल्ले से मंगलाचरण किया है | इसमें अपने इष्टदेवता और माता शारदा की वन्दना कर वरदान चाहा है –

     पल – पल बढ़ते तिमिर में , हे मेरे सुखधाम |

     रागारुण अब तो करो , जीवन की ये शाम ||

     कल्मष हर हे माँ ! करो , शब्द अर्थ द्युतिमान |

     सत् – शिव – सुन्दर भाव नव , नव अभिव्यक्ति अम्लान ||

          आधुनिकता का दम्भ पालने वाले अनेक कवि इस परम्परा को रुढ़ि मानकर छोड़ गये | श्रीकृष्ण शर्मा अपने समय की नब्ज पर हाथ रखे हुए हैं , तो भी उन्होंने सच्चे ह्रदय से सूर और तुलसी जैसे महान कवियों में अपना आदर्श खोजा है और निर्भय होकर परम्परा से अपना जुड़ाव सूचित किया है | कुछ आलोचक भीरु कवि और लेखक अपने राष्ट्रीय सांस्कृतिक धर्म से विच्युत होते हैं , इससे शर्मा जी चिन्तित नहीं हैं | इसलिए आशंकित मन से वे कह उठते हैं –

          कविता सुरसरि सम बहे , पावन औ’ कल्याणि |

          अक्षर – अक्षर अमृत हो , हे माँ वीणापाणि ||

          आज हिन्दी का शिक्षित रचनाशील समाज आमतौर पर दो वर्गों में बँटा हुआ है | पहला वह जो सम्पूर्ण अतीत के चिन्तन और संस्कारों को निन्दनीय ठहराकर सिरे से ख़ारिज का दाता है अथवा पाश्चात्य चश्में से उसे परखता है | और दूसरी ओर पूरी निष्ठा के साथ उनका अनुसरण करता है | इस बावत मुझे हाल के ही एक प्रसंग का स्मरण हो आया है | मेरे आदरणीय मित्र प्रो. देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ इसके साक्षी हैं | हमारे सूर्यनगर आवास की निकट ही एक मित्र के घर ‘ सांस्कृतिक जागरण मंच ’ की एक गोष्ठी में काव्य – पाठ का आयोजन था | आरम्भिक काव्य – पाठ के अवसर पर जैसा कि चलन है मैंने एक कवि मित्र से वाणी वन्दना करने का अनुरोध किया | तभी एक वरिष्ठ और जाने – माने लेखक महोदय तपाक से बोल उठे – “ बहुत हो गया पूजा – पाठ | आप तो सीधे कविता सुनाइये | ” यह सुनकर सभी लोग अचम्भित हुए | स्थिति की नाजुकता भाँप कर कविवर श्री ‘ इन्द्र ’ जी कहा – “ कोई जरुरी नहीं कि ‘ या ... कुन्देन्दुतुषार हार धवला ... ’ से ही प्रारम्भ हो | आप जो चाहें कविता पढ़ें , वाणी वन्दना हो जायेगी | ” सम्भवतः डॉ0 मिश्र को वाणी वन्दना का कोई छन्द याद न आने से सीधे काव्यपाठ हुआ | ‘ सर्वोत्तम ’ पत्रिका के सम्पादक की वरिष्ठता का लिहाज किया गया | कुछ बौद्धिकों की वाणी के प्रति अश्रद्धा व्यक्त करना उनके विद्याप्रेम पर प्रश्न जरुर खड़े करता है |

          ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ कविवर श्रीकृष्ण शर्मा की निज और अपने युग की व्यथा – कथा है | हिन्दी के जातीय छन्द दोहा में यह भरपूर समा गयी है | यों कहें कि यह अपने युग - सत्य का प्रतिबिम्ब है और यह कई अर्थों में आज के कविता – जगत में फैली आपाधापी और भेड़चाल से बहुत कुछ अलग और सौम्य है | कविवर शर्मा जी एक ऐसे युग में कविता की बाँह थामे हुए हैं जबकि कविता के हत्यारे अपने आतंक से उसे जीने न देने के लिए कृतसंकल्प हैं | आज कविता के तथाकथित पैरोकारों ने ऐसे – ऐसे फतवे दिये हैं , जिनसे कविता की मूलभूत मान्यताएँ गहरे तक आघातित हुई हैं , और यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि साहित्य का वातावरण दूषित हो गया है | **

                      ( आगे का , भाग – 3 में )   

 

                  - डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


28.4.21

डॉ 0 योगेन्द्र गोस्वामी - " आस्थाओं का हिमवान " ( भाग - 1 )

 इसे श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है | यह पुस्तक की भूमिका है -


मेरी छोटी आँजुरी

 

  आस्थाओं का हिमवान

( भूमिका )


 

          आस्थाओं का ललित आख्यान है कविता | जातीय अस्मिता कविता के माध्यम से नये – नये रूपों में अपनी गौरव – गाथा को दोहराती है | आत्म – निरिक्षण और आत्मलोचन के मार्ग से व्यक्ति और समुदाय के अभ्युदय और निश्रेयस का अनुसंधान करती है कविता | सच्ची कविता स्वानुभूति का सहज – सरल और सौख्य का मुक्तहस्त दान है | कविता इतिहास से ऊर्जा ग्रहण करती और आत्मा के रस राग में पान कर आने वाली पीढ़ियों के लिए चिरन्तन सुख – संजीवनी का विधान करती है | किसी भी राष्ट्र की पुष्टि और प्रसन्नता के लिए कविता एक टॉनिक है | इसीलिए कविता अमृत है , परम्परा है , परिवर्तन की दुदुंभी और नित्य नूतनता का उद्घोष है | कवि अतीत का समृद्ध चेतना – पुन्ज और भावी के लिए दीपस्तम्भ की तरह प्रगति का दिशासूचक धुर्व नक्षत्र है | इन्हीं अर्थों में श्रीकृष्ण शर्मा जी की ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ की पंक्ति – पंक्ति को पढ़ने की आवश्यकता है , ऐसा मैंने अनुभव किया है |

          अपनी दोहा - सतसई को ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ नाम देने के पीछे कवि की गहरी सूझबूझ और शालीनता स्पष्ट दिखाई देती है | जो सौम्यता और विनम्रता संग्रह में आदि से अन्त तक संचित और सुरक्षित रही है , वह स्तब्धकारी है | यह आधुनिकतावादी साहित्यिक आन्दोलनों और प्रदूषित सन्दर्भों में समाज की जड़ता पर नपी – तुली भाषा में की गई चोट है | ऐसा वही कर सकता है , जिसे अपनी उन्नत परम्पराओं , जीवन के प्रति गहरी आस्थाओं तथा बौद्धिक वर्चस्व का सम्यक और संतुलित ज्ञान हो और संस्कारों की निष्कम्प दीप्ति को आत्मसात कर साधना के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ता रहा हो | यह आश्चर्य की बात है कि ऐसी महनीय काव्य प्रतिमा जिसने जीवन भर प्रकाश लुटाया हो , अपनी आँचलिक सीमाओं को लाँघकर देर से प्रकाश में आ रही है |

          दोहे और उसमें रची अपनी रचनाओं के विषय में कवि ने स्वयं संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया है | ठीक उसी तरह दोहों के लघु कलेवर में उसने गहरे अर्थ भर दिये हैं | ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ नामक इस सतसई का फलक व्यापक है और दृष्टि उदात्त | भारतीय संस्कृति , इतिहास , काव्य , काव्य भाषा , व्यक्ति , परिवार और राष्ट्र – अर्थात् जीवन और जगत के सभी सरोकार कवि की चिन्तन परिधि में सिमट आये हैं | कालक्रम से राष्ट्रीय जीवन की सहज गति में आने वाली विकृतियों और विरूपताओं की ओर भी कवि ने सशक्त भाषा में संकेत किए हैं | भारत भूमि की सुन्दरता और जीवन की सहज अनुभूतियों के सजीव बिम्ब खड़े करने में कवि सिद्धहस्त है | हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों की परम्परा को जिस निष्ठा से इस ग्रंथ में संजोया गया है , वह अनुकरणीय है |

          ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ की प्रस्तुति विभिन्न विषयों के गुच्छों में दोहों को आबद्ध कर की गयी  है | प्रत्येक गुच्छ एक सूत्र में पिरोये विचारों , टिप्पणियों अथवा आलोचनाओं का निबन्धन है | संग्रह में किसी विशिष्ट दोहों के पूर्वार्द्ध अथवा उतरार्द्ध के एक चरण को शीर्षक बना दिया गया है | इन विविध विषयों या प्रकरणों को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है | यद्दपि ऐसा कठोर दृष्टिकोण संकेतिक नहीं है , तो भी पहला भाग अतीत के चिन्तन और गौरव को रेखांकित करता है | यहाँ भारतीय जीवन का एक संतुलित चित्र उपस्थित किया गया है | जीवनादर्शों के प्रति यहाँ कवि पूर्ण आस्था और विश्वासों के प्रति अपनी समर्पणशीलता विवेदित करता है | निम्न दोहों से यह स्पष्ट होगा –

          पता न किन – किन पूर्वजों , से हम हैं मौजूद |

          बोलो फिर कैसे कहें , ईश्वर का न वजूद ||

          ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ सम्मुख सिन्धु अपार |

          ओ आकाशी देवता ! अर्ध्य करो स्वीकार || 

          इसी प्रकार द्वितीय भाग में प्रकरण 30 से अंत तक वर्तमान जीवन की विसंगतियों को रेखांकित किया गया है –  **

 

                                      ( आगे का भाग – 2 में )  

                   - डॉ. योगेन्द्र गोस्वामी


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

             



27.4.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " होरी - सा जीवन गया " ( भाग - 15 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -




26.4.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " होरी - सा जीवन गया " ( भाग - 14 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी "  ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है - 




25.4.21

पवन शर्मा की लघुकथा - " बोझ "

 यह लघुकथा ,  पवन शर्मा की पुस्तक - " मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ " से ली गई है -




बोझ

 

इन दिनों वह बेहद मानसिक तनाव में जी रहा है | जीए भी तो क्यों नहीं ! घर में डॉ जवान बहनों को पाल रहा है | अपने भी तो दो बच्चे हैं | अच्छा हुआ कि उसने नसबन्दी करवा ली , नहीं तो उसका बड़ा लड़का भी उसी की तरह चार बहनों के बीच अकेला रहता | महानगर में जैसे – तैसे गुजारा चल रहा है | कहीं भी बात जम नहीं रही है | जम जाए तो दोनों बहनें और निपट जाएँ | ऑफिस में अपर डिवीजन की हैसियत ये तक नहीं है कि अपनी बहनों के लिए लोअर डिवीजन क्लर्क भी खोज सके | डिमाण्ड दस – पन्द्रह के नीचे नहीं उतर रही है |

          आज फिर एक पत्र ने उसे मानसिक तनाव से ग्रसित कर दिया | मना कर दिया है |

          “ स्साले ! ”  वह झल्लाया ... किसके ऊपर ... पता नहीं !

          “ इधर सुनिए न | ”  भीतर से पत्नी ने आवाज लगाई |

          “ क्या है ? ”  वह अन्दरवाले कमरे में घुसते हुए बोला |

          “ ये गेहूँ का बोरा उठवा के पलंग के नीचे रखवा दीजिये जगह घिरी हुई है | ”  पत्नी ने कहा |

          उसने पत्नी के साथ गेहूँ का बोरा उठाना चाहा | चवालीस साल की उम्र जवाब देने लगी | बोरा उठ नहीं पाया |

          बोरा उठाने का प्रयास करती हुई पत्नी हाँफती – हाँफती बोली ,  “ देखो कल मँझली की एग्जामिनेशन फीस जमा करनी है | कल आखिरी दिन है , नहीं तो परीक्षा में नहीं बैठ पाएगी | ”

          “ देखो – देखो , अब मुझसे इतना बोझ नहीं उठ सकता ! ”

          वह न जाने किस जुनून में झल्ला गया ... झल्लाता ही गया ! ”  **


                                                    - पवन शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


24.4.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " दीवार न ढाओ ! "

 यह गीत , कवि श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक -  " बोल मेरे मौन  "  (  गीत - संग्रह ) से लिया गया है -



 












दीवार न ढाओ !


मैं मन पर पत्थर रख लूँगा ,

यदि तुमको जाना है , जाओ !

लेकिन आँसुओं से धीरज की 

रेतीली दीवार न ढाओ !


शूल तुम्हारे पथ में होंगे ,

उठे धूल के बादल होंगे ,

आँधी - पानी धूप और लू 

घायल मन , ऊबे पल होंगे ;


पर बिछुड़न से टूटे प्रण ये ,

सूनेपन से झुलसे क्षण ये ,


कहते -  आँसुओं की बदली में ,

मेरी ज्योति तनिक मुस्काओ !

मैं मन पर पत्थर रख लूँगा ,

यदि तुमको जाना है , जाओ !!  **


      - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

22.4.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " हम सब तो आम हैं "

 यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -















हम सब तो आम हैं 


हम सब तो आम हैं ,

खास नहीं ,

अपना कोई इतिहास नहीं |

          अपने हैं संग - साथ 

          तकलीफें ,

          पीड़ा है , आसूँ हैं 

          हैं चीखें ,

सपनों की 

हमको तलाश नहीं |


हम सब तो आम हैं 

खास नहीं ,

अपना कोई इतिहास नहीं |

          भूख बहिना ,

          अभाव है भाई ,

          बाप है पेट ,

          गरीबी माई ,

ख्वाहिशें बेवा ,

पर संकल्प अभी लाश नहीं |


हम सब तो आम हैं ,

खास नहीं ,

अपना कोई इतिहास नहीं |  **


                - श्रीकृष्ण शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


11.4.21

कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " दिल कांप रहा "

 










दिल कांप रहा


हवा बह रही 
माहुर फैल रहा
दिल कांप रहा
मन भयभीत हुआ

दहसत का माहौल पनप रहा
कोरोना बिकराल हुआ
मानव व्याधि से ग्रस्त हुआ
दूरी एक दूसरे से बढ रहा

हे भगवन ये क्या हो रहा
जीवन अस्त व्यस्त हो रहा
स्पर्श से जहर फैल रहा
कौन बीमारी आ गया

लोग जीवन त्याग रहा
श्मशान शव से पट गया
मन व्याकुल सा हो रहा
अपनो से भी न लोग मिल रहा

हवा बह रही
माहुर फैल रहा  **


- संगीत कुमार वर्णबाल 
     जबलपुर

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

8.4.21

कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " हे मानव "

 















हे मानव 



हे मानव खुद बदलो
जग खुद बदल जायेगा
अपने किये हुए का ध्यान करो
विनम्र मन से विचार करो

अहम का त्याज्य करो
फल होने से पौधा खुद झुक जाता है
थोड़े से में ही न अभिमान करो
दुसरे की सिकायत करने पर न ध्यान दो

कर्म पर विश्वास करो
खुद लोग सम्मान करे
चापलूसी से न काम चलेगा
ईश्वर सब देख रहें

हे मानव खुद बदलो
जग खुद बदल जायेगा  **

                       - संगीत कुमार वर्णबाल 
                                       जबलपुर ( मध्यप्रदेश )
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

7.4.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा - " होरी - सा जीवन गया " ( भाग - 14 )

 यह दोहा , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है -