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27.2.21

कवि अजय विश्वकर्मा की कविता --- " स्वयं की खोज "

 










स्वयं की खोज '

 

तुम जगदीश हो!

इसीलिए 

केवल मेरे नहीं हो

परंतु मैं अनाथ हूं!

इसीलिए केवल तुम!

मेरे हो।

मेरे साथ तुम्हारे इस संबंध को

जगत ने नाम दिया दीनानाथ!

 

जगत ने तुम्हे एक नाम और दिया

कृपासिन्धु!

अर्थात् कृपा के सागर।

शायद इसी नाम की सार्थकता 

सिद्ध कर रहे हो तुम

और मैं जन्मों से तुम्हारी कृपा रूपी प्यास से तड़प रहा हूं

क्योंकि सिन्धु कभी प्यास नहीं बुझा पाया किसी की

बेहतर होता यदि नाम दिया जाता कृपासरिता!

अर्थात् कृपा की नदी।

भले एक सीमितता होती

लेकिन वह सीमितता विस्तार से कई गुना श्रेष्ठ थी

कम से कम कोई प्यासा तो नहीं लौटता।

 

मैं जन्मों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं

लेकिन सबरी की तरह तुम्हारे आगमन पथ में

पुष्प नहीं बिछा पाया

क्योंकि 

मैं जानता हूं बिछोह का दु:ख!

इसीलिए मैंने फूलों को कलियों से पृथक नहीं किया

बल्कि खिलते हुए फूल के सृजन क्षणों में 

तुम्हारी अनुभूति की! और बहुत रोया भी।

मुझे पता है तुम नहीं आओगे,

क्योंकि मेरे पास तुम्हे खिलाने को

सबरी की तरह बेर नहीं हैं

मेरे अश्रुओं के खारे जल से

आसपास की पूरी भूमि बंजर हो चुकी है

अब कोई वृक्ष या पौधा हरा नहीं होता

वो खिलते पुष्प जिनमें मैंने तुम्हारी अनुभूति की,

वो काल्पनिक थे

लेकिन कल्पनाओं से पेट तो नहीं भरा जा सकता न!

 

तुम्हारी प्रतीक्षा करने से बेहतर था

मैं बुद्ध हो जाता

परन्तु मैं नहीं जा सकता था छोड़कर 

अपनी पत्नी और नन्हें पुत्र को

इसीलिए ठहरा रहा।

यदि इतना ही निर्दयी होता मैं, तो तुम्हारे पथ में

पुष्पों  को तोड़कर बिछाता

काल्पनिक ही सही।

न तो बुद्ध की तरह त्याग कर सकता मैं,

और न ही सबरी की तरह प्रतीक्षा!

फिर क्या करूं?

मैं ध्यान करूंगा।

और करूंगा स्वयं की खोज।

लेकिन भागकर नहीं,जागकर!

जहां हूं,जैसा हूं,उसी स्थिति में।

और एक दिन कहूंगा 'अहं ब्रम्हास्मि!'

ताकि आने वाली पीढ़ियाँ मुझसे सीख लें

और जानें कि त्याग और प्रतीक्षा से बेहतर है,

स्वयं की खोज.....

                             

  


        - 
अजय विश्वकर्मा 

                        मण्डी बमोरा,

           जिला -विदिशा,

           मध्यप्रदेश



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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

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