ग़ज़ल ( 2)
उसकी महफ़िल में मैं रुस्वा हो गया
इक अधूरा शे'र पूरा हो
गया
इश्क़ की दोशीज़गी कम हो गई
वस्ल की शब अपना झगड़ा हो गया
कैसी बातें कर रहे हो यार तुम
ये अचानक से तुम्हे क्या हो गया
वक़्त की उड़ती हुई इस धूल में
एक चेहरा था जो धुन्दला हो गया
अब किसी के हाथ आता ही नहीं
आदमी उड़ता परिन्दा हो गया
आज फिर कुछ यार मिलने आए हैं
आज फिर इक ज़ख़्म ताज़ा हो गया **
- अजय विश्वकर्मा
मण्डी बमोरा,
जिला -विदिशा,
मध्यप्रदेश
सुंदर गजल
ReplyDeleteआपको यह ग़ज़ल पसंद आई , इसके लिए आदरणीय आलोक सिन्हा जी आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!🙏🙏
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