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20.2.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा -- " पीठिका " ( भाग - 2 )

 यह पीठिका , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक -   " एक नदी कोलाहल "   ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -






पीठिका

 1959 में प्रकाशित ठाकुर प्रसाद सिंह के ‘ वंशी और मादल ’ ने नवगीत के प्रथम संग्रह के रूप में ख्याति अर्जित की और अपनी आंचलिक चेतना से परवर्ती गीतकारों को प्रभावित और प्रेरित किया | किन्तु 1964 में ...

 

भाग -2

 

1964 में ओम प्रभाकर द्वारा संपादित ‘ कविता – 64 ’ नवगीतों का प्रथम प्रामाणिक संकलन माना जाता है | 1969 में चन्द्रदेव सिंह द्वारा सम्पादित ‘ पाँच जोड़े बाँसुरी ’ नवगीतों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज कहा गया है | किन्तु डॉ0 शंभुनाथ सिंह द्वारा 1982 , 1983 , 1984 में क्रमशः सम्पादित ‘ नवगीत दशक ’ 1, 2, 3 और 1984 में पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ द्वारा सम्पादित ‘ यात्रा में साथ – साथ ’ तथा 1986 में डॉ0 शंभुनाथ सिंह द्वारा सम्पादित ‘ नवगीत अर्द्धशती ’ के माध्यम से ‘ नवगीत ’ को व्यापक पहचान मिली और उसका स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित हुआ | अन्त में सितम्बर 1986 में उन्नीस नवगीतकारों की सहमती से प्रकाशित ‘ सामूहिक घोषणापत्र ’ से नवगीत को परिभाषित और उसके विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया गया | किन्तु इसके पूर्व 1964 और उसके पश्चात नवगीत की सामर्थ्य और विशिष्टताओं को पहचान देने वाले अनेक श्रेष्ठ नवगीत और नवगीत – संग्रह प्रकाशित हुए हैं | यहाँ उल्लेखनीय है कि 1984 में ही प्रकाशित अपने महत्वपूर्ण समीक्षात्मक ग्रंथ ‘ हिन्दी नवगीत : उदभव और विकास ’ में डॉ0 राजेन्द्र गौतम ने नवगीत की प्रकृति व प्रगति के सम्बन्ध में बड़े विस्तार से चर्चा की है |

          1960 के बाद ‘ नवगीत ’ ने उत्तरोत्तर अनेक सरणियाँ पार की हैं और अपने काव्य – विवेक , भाव – भूमि और अनुभव – संसार को निरन्तर विस्तृत किया है | ‘ नवगीत ’ के केन्द्र में शोषित , वंचित और उपेक्षित आम आदमी है | उसके दुख – दर्द , गरीबी , अभाव , बेरोजगारी , मँहगाई ,अशिक्षा , घर , टूटते परिवार , छीजते आत्मीय रिश्ते , सपने , खण्डित आस्था और विश्वास , अकेलापन और असुरक्षा है | छद्म लोकतंत्र , सत्ता लोलुप , सुविधाभोगी नेतृत्व , सिद्धान्तहीन अवसरवादी राजनीति का अपराधीकरण , अमानवीय निरंकुश व्यवस्था , भ्रष्टचार , साम्प्रदायिकता , औद्योगीकरण , यांत्रिक सभ्यता , ग्राम्य व महानगरीय जीवन , भीड़ में पहचान खोते आदमी की त्रासदी , नैतिक व मानवीय मूल्यों का क्षरण , वैश्वीकरण , उदारीकरण , बाजारवाद , उपभोक्ता संस्कृति , वस्तु में तब्दील होता आदमी , उत्तर आधुनिकता , लोक संस्कृति , लोक जीवन , उत्सव – प्रियता , हास – उल्लास , प्रकृति – प्रेमी सामाजिक विसंगतियां , अप – संस्कृति और सांस्कृतिक प्रदूषण , दलित और नारी विमर्श आदि – आदि पारम्परिक और आधुनिक दोनों प्रकार की विषयवस्तु युगबोध , सौन्दर्य – बोध , जीवन – दृष्टि , जातीय अस्मिता , मानवीय आस्थाओं , विश्वासों और सरोकारों से सम्बन्धित सोच , संघर्ष की भावना और पूर्ण जिजीविषा के साथ नवगीत में उपस्थित है | यही नहीं , समकालीन घटनाओं की प्रतिक्रिया स्वरुप मनोजगत की हलचलों , संवेगों और संवेदनाओं को भी नवगीत में सफलतापूर्वक व्यक्त किया गया है | इस प्रकार नवगीत के कथ्य में असीम विस्तार हो चुका है , जो न जाने कितने आयामों को स्पर्श करता है और उन्हें उद्घाटित करता है |

          नवगीतकार अपने परिवेशगत और विश्व – पटल पर घटित घटनाओं से उत्पन्न मनोदशाओं को अनुभूति और संवेदनाओं के स्तर पर अपने गीत की अंतर्वस्तु बनाता है | तथा उसे यथार्थ की भूमि पर प्रतिष्ठापित कर लोक – संवेदना , जातीय संस्कार , युगीन सन्दर्भ , सौन्दर्य – बोध , मूल्य – बोध , जीनव के प्रति आस्था और लोक – मंगल की भावना से जोड़ता है | उसका अनुभूतिजन्य चिन्तन एवं उसके आत्मिक रागात्मक भावों की आवेगमयी तीव्रता कल्पना से सहज सौन्दर्य सम्पन्न होकर छान्दसिक कलेवर में ढलती और गीतों का स्वरूप ग्रहण करती है | उसके केन्द्र में जीवन का कोई राग या बोध होता है , जिसे वह अपने प्रगतिशील सोच और सतत अभ्यास द्वरा नई अर्थवत्ता प्रदान करता है तथा ह्रदय और बुद्दि के संतुलन द्वारा प्रभावी बनाता है | ... **

 

( इससे आगे का , भाग – 3 में )                  


                                                 - श्रीकृष्ण शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


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