ग़ज़ल ( भाग - 3 )
न दर ,दीवार कोई दरम्याँ है
ज़मीं से खूबसूरत आसमाँ
है
यहाँ महफ़िल सजी थी दोस्तों की ,
तभी इस रूम में इतना धुआँ
है
चले तो आए शहरे - अजनबी में ,
ठहरने के लिए कोई
मकाँ है ?
मैं इक मुद्दत से भटका फिर रहा हूँ ,
कोई बतलाए मेरा घर कहाँ है
उलझना मत तिलिस्मी मंज़रों
में ,
यकीं का दूसरा पहलू गुमाँ है
छिपा रक्खा है अंदर जो खज़ाना ,
बदन तो सिर्फ़ उसका पासबाँ है
है अपने पास अपने घर की चाबी
हमारा राज़ बस हम पर अयाँ
है
चलो 'हसरत' के कुछ अशआर रट लें
मुहब्बत का 'अजय' कल इम्तिहाँ है **
-अजय विश्वकर्मा
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
Deleteबहुत आभार
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद सुखनवर जी |
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