ग़ज़ल ( भाग - 4 )
मुहब्बत आज़माने का , कोई नुस्ख़ा नहीं मिलता ।
यहाँ सब
ग़ैर मिलते हैं , कोई अपना
नहीं मिलता ।
तरसते रहते हैं अक्सर मुलाक़ातों को हम दोनों ,
मुझे
फ़ुर्सत नहीं मिलती , उसे मौक़ा
नहीं मिलता ।
हमारी नौकरी के साथ में ,इक मसअला है दोस्त !
कहीं इज़्ज़त
नहीं मिलती, कहीं पैसा
नहीं मिलता ।
वहाँ पे मालो-दौलत की हिफ़ाज़त कौन करता है ?
सुना है उस नगर में कोई, दरवाज़ा नहीं मिलता ।
उदासी , दर्द, ग़म, तन्हाई, आँसू, याद, रुसवाई ,
तुम्हारे
चाहने वालों को जानाँ ! क्या नहीं मिलत ।
कई हिन्दू, मुसलमाँ, सिक्ख, ईसाई तो मिलते हैं ,
मगर इंसान कोई मुझको, हमसाया नहीं मिलता ।
-अजय
विश्वकर्मा
जिला -विदिशा,
मध्यप्रदेश
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteधन्यवाद , आदरणीय अलोक सिन्हा जी |
Deleteबेहद शुक्रिया आप लोगों का
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