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25.2.21

कवि अजय विश्वकर्मा की ग़ज़ल ( भाग - 4 )

 










ग़ज़ल ( भाग - 4 )


मुहब्बत  आज़माने का कोई नुस्ख़ा नहीं मिलता ।
यहाँ सब ग़ैर मिलते हैं कोई अपना नहीं मिलता ।

तरसते  रहते हैं अक्सर मुलाक़ातों को  हम  दोनों ,
मुझे फ़ुर्सत नहीं मिलती उसे मौक़ा नहीं मिलता ।

हमारी नौकरी के साथ में ,इक मसअला है दोस्त !
कहीं इज़्ज़त नहीं मिलतीकहीं पैसा नहीं मिलता ।

वहाँ पे मालो-दौलत की हिफ़ाज़त कौन करता है ?
सुना है उस  नगर में कोई, दरवाज़ा नहीं मिलता ।

उदासी , दर्द,   ग़म,   तन्हाई,  आँसू,  यादरुसवाई ,
तुम्हारे चाहने वालों को जानाँ ! क्या नहीं मिलत ।

कई हिन्दू, मुसलमाँ,  सिक्ख,  ईसाई तो मिलते हैं ,
मगर  इंसान कोई मुझको,  हमसाया नहीं मिलता ।


                                                             -अजय विश्वकर्मा

                                                                  मण्डी बमोरा,

                             जिला -विदिशा,

                             मध्यप्रदेश

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


3 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर गजल

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    1. धन्यवाद , आदरणीय अलोक सिन्हा जी |

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  2. बेहद शुक्रिया आप लोगों का

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