यह नवगीत, श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
बादल
दिनभर
पश्चिम - दांड़े लटके
मधुमक्खी - छत्ते - से बादल |
इधर - उधर
मुँह मार रहीं अब
बकरी औ' भेड़ सी घटाएँ ,
बिखरा रेबड़
हाँक ला रहीं
साँटे से गोड़नी हवाएँ ,
देखो ,
जुड़कर एक हो गये
मेले से जत्थे - से बादल |
धमा चौकड़ी
मची गगन में
धूसर काले गज यूथों की ,
ऐसी बाढ़
कि धूप बह गयी ,
डूब गयी बस्ती तारों की ,
पर
दहाड़ते , आँख दिखाते
ये उखड़े हत्थे से बादल | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा
सम्पर्क - फोन नंबर - 9414771867
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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