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20.8.21

पवन शर्मा की लघुकथा - बेकारी में "

 यह लघुकथा पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से लिया गया है -





बेकारी में 


उसके साथ अक्सर ऐसा ही होता है , लगभग रोज - रोज !
          हो भी क्यों नहीं | कुछ करता भी तो नहीं है | भाई के पैसों से कब तक घर चलता रहेगा ? पापा हैं जो ' घोटाले ' में पकड़े गए | पापा कहते हैं - " इंजीनियरों ने खाया ' और पूरा उनके मत्थे मढ़ दिया ! ' जो भी हो | अब तो सस्पेंड होकर घर में बैठे हैं |
           वह रसोई में जाता है मम्मी रोटियाँ बना रही हैं | वह कहता है ,  ' देखो मम्मी , पापा को समझा दो | रोज - रोज की चख - चख मुझे पसंद नहीं है ... मुझे भी तो चिंता है | '
          पापा ने शायद सुन लिया | वह रसोई के दरवाजे पर हाथ टिकाकर बोले,   ' चिंता होती तो कोशिश करता | समझा ! बैठे - बैठे रोटियाँ थोड़े ही तोड़ता ! ' 
          ' ... और आप ? ' गुस्से में वह भरभरा जाता है |
          अचानक मम्मी रोटी बेलना छोड़कर खड़ी हो गईं | पापा जा चुके थे ... |  ** 


                                        - पवन शर्मा 

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पता -

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


2 comments:

  1. ये मेरी अच्छी लघुकथाओं में से एक है. धन्यवाद सुनील जी.

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  2. हाँ , ये लघुकथा वास्तव में श्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक है |

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