यह कविता श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अक्षरों के सेतु " ( कहानी - संग्रह ) से लिया गया है -
धूप
गिर पड़ी
सहसा फिसल कर
उतरती हुई धूप |
और
फैल गयी
नयी - नयी सम्भावनाओं की तरह |
गिरा हुआ आदमी
धूप क्यों नहीं बन पाता भला ? **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
धन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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