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कवि संगीत कुमार वर्णबाल की कविता - " कैसी ये दुनियाँ की रीत है "













कैसी ये दुनियाँ की रीत है


जीते जी न माँ बाप की सेवा करते 
मरते ही दूसरे को मेवा खिलाते 
दूसरे को दिखाने में क्यों लोग ऐसा करते हैं 
कहते, श्राध्य से पितर खुश होते हैं 
कैसी ये दुनिया की रीत है

ऐसी कुप्रथा को त्याज्य करना है 
जीते जी माँ बाप की सेवा करना है 
कष्ट कभी न उन्हें होने देना है 
हर मुसीबत में साथ उनका आयेगा 
इस पुण्य कार्य में लगे रहना है 
कैसी ये दुनिया की रीत है 

माँ बाप की सेवा में लगे रहना है 
कुछ खोना भी पड़े तो कोई बात नहीं 
वर्तमान में विश्वास करना है 
हर वक्त सेवा में तत्पर रहना है 
स्नेह सदैव उनका बना रहे
कैसी ये दुनिया की रीत है 

कभी न माँ बाप को बोझ समझना है 
उनको अपना धन दौलत समझना है 
हमेशा उनके साथ चलना है 
जीवन में आगे बढते रहना है 
तब सफलता मिल ही जायेगी 
कैसी ये दुनिया की रीत है  **

                - संगीत कुमार वर्णबाल
                        जबलपुर 
                        चलंतभाष -९६८५७६१०७३
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

2 comments:

  1. आ संगीत कुमार बर्णवाल जी, सुंदर समसामयिक रचना!--ब्रजेन्द्रनाथ

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