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21.9.20

पवन शर्मा की कहानी - " मेरे दो धड़ " ( भाग - 1 )

 

पवन शर्मा 










पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई कहानी है -


 

मेरे दो धड़

 

मुझे लगता है कि मैं दो धड़ों में बंट गया हूँ |

          पहला – खूबसूरत धड़ और दूसरा बदसूरत धड़ | पहला धड़ दूसरे धड़ पर हावी हो गया है | मैं यकीन नहीं कर पाता कि ऐसा क्यों हो रहा है ? तमाम कोशिशों के बावजूद भी मैं ये जानने में असफल रहता हूँ , फिर भी इतना जानने में अवश्य सफल हुआ हूँ कि वे दोनों जैसे हैं , वैसे नहीं हैं , और जैसे नहीं हैं , वैसे हैं |

          दोनों धड़ों की वजह से मैं परेशानी में फँस गया हूँ | अच्छा काम करने पर खूबसूरत धड़ मुझे रोकता है | अपनी लच्छेदार बातों से लुभाकर अपने कर्यानुरूप कार्य करने को प्रेरित करता है और जब मैं उसके कहे अनुसार कार्य करता हूँ तो बदसूरत धड़ मुझे रोकने की कोशिश करता है , किन्तु मैं बदसूरत धड़ की एक नहीं सुनता , क्योंकि मैं खूबसूरत धड़ की चमक की गिरफ्त में बुरी तरह फँस चुका हूँ |

          एक बात और है – वह ये कि जहाँ एक ओर खूबसूरत धड़ अच्छे – अच्छे कपड़े पहने , अप – टू – डेट बना घूमता रहता है , वहीँ बदसूरत धड़ अपनी फटी हुई शर्ट को हाफ स्वेटर के नीचे पहने और गले में मफलर डाले रहता है | उसके चेहरे पर चेचक के दाग मन में घिन पैदा करते हैं | खूबसूरत धड़ हमेशा कलाई में गोल्डन , चमकती घड़ी और गले में सोने की चेन पहने रहता है , वहीँ बदसूरत धड़ की कलाई और गला हमेशा खाली रहता है |

          खूबसूरत धड़ मुँहफट है और अपनी बात पर टिकनेवाला नहीं है | मैं ये जानता हूँ कि खूबसूरत धड़ में समस्त अवगुण मौजूद हैं | उन्हीं में मुझे वह ढाल रहा है | बदसूरत धड़ अक्खड़ है , अड़ियल है | साथ ही बेहद शालीन है | खूबसूरत धड़ की तरह उसमें अवगुण नाममात्र को नहीं हैं |

          पहले अहसासभर था , किन्तु अब यकीन भी हो जाता है कि मैं दो धड़ों में बंट गया हूँ | सोच बढ़ती जाती है – क्यों और कैसे ? स्मृतियों में खोता हूँ ...

          मैं रात को खाना खाकर लेटा हुआ ‘ गोदान ’ पढ़ रहा था | सहसा दरवाजे पर आहट हुई | मैंने उपन्यास सिरहाने रख दिया और दरवाजे की ओर देखा | अच्छे कपड़े पहने , कलाई में चमकती घड़ी और गले में सोने की चेन पहने खूबसूरत धड़ मेरे पलंग की ओर बढ़ रहा है | पलंग के नजदीक आकर खूबसूरत धड़ कुर्सी खींचकर बैठ गया और बोला , “ अकेले हो गुरु ! ”

          मैं आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा | मैंने देखा कि उसने जेब से सिगरेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली | सिगरेट के धुएँ से कमरा भर गया | मैंने उठकर खिड़की खोली | पलंग पर बैठते हुए मैंने देखा कि वह मन्द – मन्द मुस्करा रहा है | उसकी बेफिक्री मुझे आश्चर्य में डाल रही थी |

          “ बच्चे अपने नाना – नानी के यहाँ गए हैं न ? ” खूबसूरत धड़ ने पूछा |

          “ हाँ | पर तुम्हें कैसे मालूम ? ” मुझे बहुत आश्चर्य हुआ |

          “ मुझे सब मालूम है | ”

          “ कैसे ? ”

          “ बस , ये मत पूछिए | ”

          “ कौन हो तुम ? ”

          “ धीरे – धीरे सब जान जाएँगे | मुझे भी पहचान जाएँगे | ” वह बोला , फिर सिगरेट का कश खिंचा |

          हम दोनों के मध्य ख़ामोशी तैर आई | मैं अभी तक ये अनुमान नहीं लगा पाया कि आखिर ये कौन है ? दरवाजा बन्द होने के बावजूद ये कमरे में घुस कैसे आया ? कमरे में आया , कुर्सी पर बैठा, सिगरेट सुलगाकर पीने लगा और बेतकल्लुफी से बातें करने लगा | उसका चेहरा देखकर मैं एक बार साँसत में फँस गया – हू – ब – हू मेरा चेहरा |

          “ पत्नी और बच्चों को लेने कब जाओगे गुरु ? ” उसने पूछा |

          “ अगले माह की चार – पाँच तारीख तक | तब तक तनख्वाह भी मिल जाएगी | ”

          मेरी बात सुनकर वह जोरों से हँसा |

          “ क्यों हँस रहे हो ? ” मैं झल्लाया |

          वह कुछ नहीं बोला | हँसता रहा | थोड़ी देर बाद जब उसकी हँसी थमी , तब बोला , “ आप परेशान हैं गुरु ! ”

          “ बिल्कुल नहीं | ” मेरी झल्लाहट कम नहीं हुई |

          “ मैं नहीं मान सकता | आप कुछ भी कहें | मैं बराबर आपके साथ हूँ | सब जानता हूँ | ”

          “ क्या जानते हो – बताओ ? ”

          “ आपकी परेशानियों को | ” थोड़ी देर रूककर उसने कहा , “ आर्थिक दृष्टि से आप बेहद कमजोर हैं | आपने दुनियाँदारी नहीं सीखी है |दुनियाँ जिस रास्ते पर चल रही है , आप नहीं चल रहे हैं | इसलिए आपकी जेब हमेशा खाली रहती है | मैं जैसा कहूँ , वैसा ही करें , फिर देखें – आप हमेशा सुखी रहेंगे | ”

          “ क्या करना है मुझे ? ” मैंने उसके चेहरे पर अपनी नजर गढ़ा दीं |

          “ तो सुनो गुरु ... ”  वह कह रहा था और मैं सुन रहा था |

          उसने सिगरेट का आखिरी कश भरकर सिगरेट फेंक दी |

          “ तुम मुझे गलत रास्ते पर चलने को उकसा रहे हो | ” उसकी सारी बातें सुनकर मैंने कहा |

          “ तो फिर सड़ते रहो | हर महीने की पहली तारीख पर अपनी नजरें जमाये रहा करो | ” वह झल्ला गया , “ मैं चाहता हूँ कि आपका जीवन बदल जाए , और आप खुशी रहें | ”

          मैंने सोचा – सच है , बाबूगिरी करते हुए अपने जीवन के सत्रह वर्ष बिता दिए – क्या मिला ? एक प्रमोशन ही न ! बड़े बाबू से एकाउटेंट बन गया | न अच्छा पहन सका और न अच्छा खा सका | अपनी पत्नी और अपने बच्चों की इच्छाओं का गला घोंटता रहा| हर महीनें की पहली तारीख पर नजरें जमीं रहतीं|

          “ एक बात और , ”  खूबसूरत धड़ कुर्सी से उठता हुआ बोला | मैं भी यंत्रवत खड़ा हो गया उसके साथ ,  " एक साला , फटीचर आपके मार्ग का कंटक बन सकता है | उसे अधिक लिफ्ट न दें | ”

          “ कौन है ? ”  मैने पूछा |

          “ सब समझ जाएँगे | अब चलूँगा | मैंने जैसा कहा है , वैसा ही करें | आपका जीवन बदल जाएगा | ” कहते हुए वह दरवाजे तक आया | मैं भी उसके पीछे – पीछे आया | दरवाजे पर आकर वह ठिठका और मुड़कर बोला , “ मैं आपका खूबसूरत धड़ हूँ ! “

          मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया |

          महीनों बाद मैंने अपनी ओर देखा | मेरा जीवन बदल गया | हर जरूरतें पूरी होने लगीं | किसी चीज की कोई कमी नहीं रही | मैं खुश रहने लगा | पत्नी और बच्चे भी |

          खूबसूरत धड़ ने मुझे पूरी तरह गिरफ्त में ले लिया | मेरे जीवन को बदलने में उसी का हाथ था | मुझे उसकी तलाश हमेशा रहती |

 

          चलते – चलते ऐसा लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है | कई बार मुड़कर देखा , किन्तु समझ में नहीं आया कि कौन है ? ....

 

( शेष अगले भाग में )

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पवन शर्मा

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

          

         

             

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