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श्रद्धांजली - माखन लाल चतुर्वेदी - एक साहित्य सैनानी



          माखन लाल चतुर्वेदी एक कवि , नव छायाकार , साहित्य सैनानी , स्वतंत्रता सैनानी थे | इनका उपनाम - '' एक भारतीय आत्मा ''  था | इन्होने देश प्रेम के ऊपर अनेकों कविताएँ लिखीं थीं | इनका जन्म 04 अप्रैल 1889 ई. को मध्यप्रदेश में होशंगाबाद जिले के बाबई नामक गाँव में हुआ था | इनके पिता का नाम श्री नंदलाल चतुर्वेदी तथा माता का नाम सुंदरी बाई था | पिता अध्यापक थे | इनका परिवार राधा वल्लभ सम्प्रदाय का  अनुयायी था  | माखन लाल चतुर्वेदी की प्रारम्भिक शिक्षा प्राइमरी स्कूल में हुई | इसके पश्चात् की शिक्षा घर पर ही की | इन्होने अनेक भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त किया |
          माखन लाल चतुर्वेदी का विवाह 15 बर्ष की आयु में ग्यारसी बाई से हुआ | 1906 ई. में  8 रुपये मासिक वेतन पर इन्होने अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया | 1913 ई. में इन्होनें  '' प्रभा पत्रिका ''  का सम्पादन प्रारम्भ किया| यह पत्रिका प्रारम्भ में पूना और फिर बाद में कानपुर में छपने लगी | इन पर देश प्रेमी गणेश शंकर विद्यार्थी का प्रभाव अत्यधिक हुआ | इन्होनें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन  में भी भाग लिया | इनके  'शक्ति पूजा '  लेख पर 1912 ई. में देशद्रोह के आरोप में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | आगे भी इन्होने  इन कारणों से कई बार जेल -यात्रा भी की| 1920 ई. में इन्होने कर्मवीर नामक साप्ताहिक पत्र खंडवा (मध्यप्रदेश) से निकाला | 1942 ई. में भारत में हुए भारत छोड़ो आन्दोलन के सक्रीय कार्यकर्ता थे |
          1943 ई. में इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष बनाया गया  | इन्होने मध्यप्रदेश में सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट् की उपाधि प्राप्त की | भारत सरकार ने इन्हें इनके योगदान के लिए पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की | अपनी कविताओं के माध्यम से देश भक्ति का अलख जगाने वाले माखन लाल चतुर्वेदी का स्वर्गवास 30 जनवरी सन 1968  ई. को हो गया |
          माखन लाल चतुर्वेदी का साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान था | इनकी  प्रमुख रचना - संग्रह में थे -
हिमकिरीटिनी , हिमतरगिनी , माता , युगारण , समर्पण , अमीर इरादे गरीब इरादे, समय के पांव, मरण ज्वार ,चिंतक की लाचारी, साहित्य देवता , साहित्य देवता आदि । इनकी अमर कविताओं में से एक थी पुष्प की अभिलाषा |
     माखन लाल चतुर्वेदी के विषय में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है | यदि श्रदांजली हेतु उनकी इस कविता को नहीं पढ़ा गया तो उनको जो श्रधान्जली हम दे रहे हैं वह अधूरी ही रह जाएगी - 
'' चाह नहीं, मैं सुरबाला के

गहनों में गूँथा जाऊँ,

चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक! '' 



          
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