यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
मैं खड़ा हूँ हार कर
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ?
सामने मेरे खड़ा
चम्बल नदी – सा क्रुद्ध
भरका |
है कहाँ पितृव्य का आशीष
वाला हाथ ,
माँ की है कहाँ ममतामयी वह
गोद ,
जो दुख दर्द सहलाते कहाँ है
अब
प्रिया के वे प्रियंका नैन ?
उफ़ , कहीं कोई नहीं ,
जो दे तनिक आश्वस्ति ,
लेकिन देह के नीचे
अचानक एक ठण्डा और चिकना
साँप – सा सरका |
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ?
लालसाएँ / तितलियों के पंख –
सी
फेंकी समय ने नोंच
प्रेत – नख – तन और मन को
दे रहे हैं विष – भरे व्रण
/ नोंच और खरोंचे ,
औ’ खड़ा मैं हार कर जैसे कि
लम्बी जंग |
अब होकर अपाहिज इस तरह
जाऊँ , कहाँ जाऊँ
ओह , बर्बर और खूनी
व्याघ्र – जैसी दृष्टि से
बच ?
दे सकेगी ज़िन्दगी
इस मौत को कब तक भला चरका ?
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ
ला पटका ? **
- श्रीकृष्ण शर्मा
----------------------------------------------------------------------------संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद , आलोक सुन्दर जी |
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