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28.11.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " मैं खड़ा हूँ हारकर "

 यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -












मैं खड़ा हूँ हार कर

 

भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?

सामने मेरे खड़ा

चम्बल नदी – सा क्रुद्ध भरका |

     है कहाँ पितृव्य का आशीष वाला हाथ ,

     माँ की है कहाँ ममतामयी वह गोद ,

     जो दुख दर्द सहलाते कहाँ है अब

     प्रिया के वे प्रियंका नैन ?

उफ़ , कहीं कोई नहीं ,

जो दे तनिक आश्वस्ति ,

     लेकिन देह के नीचे

     अचानक एक ठण्डा और चिकना

     साँप – सा सरका |

     भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?

लालसाएँ / तितलियों के पंख – सी

फेंकी समय ने नोंच

प्रेत – नख – तन और मन को

दे रहे हैं विष – भरे व्रण / नोंच और खरोंचे ,

 

     औ’ खड़ा मैं हार कर जैसे कि लम्बी जंग |

     अब होकर अपाहिज इस तरह

     जाऊँ , कहाँ जाऊँ

     ओह , बर्बर और खूनी

     व्याघ्र – जैसी दृष्टि से बच ?

दे सकेगी ज़िन्दगी

इस मौत को कब तक भला चरका ?

भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ? **


                 - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


2 comments:

  1. बहुत - बहुत धन्यवाद , आलोक सुन्दर जी |

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