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14.5.20

कवि कमलेश शर्मा '' कमल " की कविता - '' माँ ''



















माँ में तुझ पर क्या लिखूं, जिसने मुझे स्ययं लिखा।
में तो बस बिंदु मात्र हूँ, तुझमे महाकाव्य दिखा।।

( मेरी एक रचना आज माँ के ऊपर लिखने की कोशिश करी है )

 माँ 


माँ शक्ति है, माँ भक्ति है, माँ ही प्राण, माँ ही पूजा ।
माँ के जैसा इस जग में, होगा कोई और न दूजा ।।

माँ दिन है , माँ रात है , माँ सुबह है , माँ ही शाम है ।
माँ की गोद से बढ़कर मिलता किसे आराम है ।

माँ भूँख , माँ प्यास है, माँ ही जीने की एक आस है ।
मूर्छित से जीवन में, माँ एक वायु की श्वास है ।।

माँ शून्य है, माँ सृष्टि है, माँ ही नयन की एक दृष्टि है ।
बंजर सी भूमि पर जैसे, माँ ही प्यार की एक वृष्टि है ।।

माँ ही अणु, माँ परमाणु, माँ श्वेताणु, माँ बिम्बाणु ।
सबकी नसों में दौड़ रहा है, माँ का ही एक रक्ताणू ।।

माँ ही भाषा, माँ ही ज्ञान है, माँ संस्कृति, माँ विज्ञान है ।
प्रथम गुरु की बात आते ही मन में आता माँ का संज्ञान है।।

माँ ही शब्द है, माँ ही वर्ण है, माँ स्वर है, माँ ही व्यंजन ।
सप्त लोक में कही न मिलता माँ के हाथ बना व्यंजन ।।

माँ मूर्त है, माँ अमूर्त है, माँ धूप में एक छावं है ।
सारे तीरथ बसे इसमें, सारी जन्नत माँ के पावं है ।।

माँ मंदिर, माँ ही मूरत, माँ सूरत है, माँ ही दर्पण ।
श्रद्धा के फूल लेकर "कमल" करे माँ को अर्पण ।। **



   - कमलेश शर्मा '' कमल " 
               मु. पोस्ट:- अरनोद,जिला:-प्रतापगढ़(राज.)
            मोब.9691921612






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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई 

माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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