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12.5.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - '' अभिमन्यु की हत्या ''











अभिमन्यु की हत्या 

छेद कर 
जैसे कलेजे में 
गगन के कील ,
हत्यारे - सरीखा है खड़ा 
दुर्दम्य - ऊँचा ताड़ ,
बौने पेड़ ठठ - के - ठठ 
अवश - निरुपाय |

जैसे -
द्रौपदी कौरव - सभा में 
लाज को रोती ,
दु:शासन पाशविकता से लगाता कहकहे ,
सहमा हुआ स्वर सुन नहीं पड़ता 
निरर्थक शोर में |
आसनों धृतराष्ट्र की औलाद 
बैठी भोगतीं सुख और सुविधा 
पाण्डवों का हक़ |

और 
रच दुष्चक्र ,
जन - जन को रुपहली ज़िन्दगी से काट 
निर्वासन - अवधि को काटने 
भेजा किसी अज्ञात पथ पर |
और 
महँगाई - अभावों का बना कर व्यूह ,
मार डाला 
चेतनायुत - उर्जस्वित अभिमन्यु | **

                      - श्रीकृष्ण शर्मा 
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www.shrikrishnasharma.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867      

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