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20.5.20

कमलेश शर्मा "कवि कमल" की कविता - '' पिता ''



माँ पर सभी ने बहुत लिखा है। आज मैनें पिता पर कुछ पंक्तिया लिखी है।सभी को सादर समर्पित है।










पिता

पिता   से   ही   तो    महकता   हर   कुल   है  ।
पिता  ही   कल्पवृक्ष  की   सजीव   मूल   है   ।।

ना वजूद मेरा  होता ,  ना  मैं  पहचाना  जाता ।
मेरे नाम के साथ गर, तुम्हारा नाम न आता ।।
बिना   पिता   के   जीवन  जैसे  कोई  धूल  है ।
पिता   से   ही   तो   महकता   हर   कुल   है ।।

मन में कई आशाएं , लेकर  रोज  निकलता  है ।
दिन भर मेहनत करके, पेट सभी का भरता है ।।
परिस्थिति कोई आये,  रहता सदा प्रतिकूल  है ।
पिता  से   ही    तो   महकता   हर   कुल   है  ।।

पिता माँ का सिंदूर है, किसी बहन की राखी  है ।
पिता ही दादा दादी के, बुढ़ापे  की  बैसाखी  है ।।
पिता है  तो बच्चों की,  मुरादें  होती  कुबूल  है ।
पिता   से   ही   तो   महकता   हर   कुल    है ।।

पिता  है   तो  पूरे ,  होते  सभी   के   सपने   है ।
पिता से ही  तो  सारे ,  रिश्ते  नाते  अपने  हैं  ।।
पिता की बगियाँ में कभी, न  मुरझाता फूल  है ।
पिता   से   ही   तो   महकता   हर   कुल   है  ।। **


                   

          
- कमलेश शर्मा "कवि कमल"(अध्यापक)
मु.पोस्ट:- अरनोद, जिला:- प्रतापगढ़(राज.)
मो. 9691921612






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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान 

),फोन नम्बर– 09414771867

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