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28.2.20

तुम नहीं हो इसलिए ही












( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है )


        तुम नहीं हो इसलिए ही 

गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||

          भावना का फूल मैं ऐसा खिलाना चाहता था ,
          दृष्टी में हर एक के ही हो बसी जिनकी सुघरता ;
          और जिसकी गन्ध के बादल गगन में छा रहे हों ,
          वृष्टि की हर बूंद में जिसकी बरसती हो तरलता ;
खिल सके जिसमें सुघरतम - गन्धमय कविता - कुसुम यह ,
कल्पना में अब तलक मधुमास वह आया नहीं है ||

गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||

          चाहता गढ़ना अपरिचित मूर्ति अपनी कामना की ,
          रूप के बदलाव में जिसको तनिक होती न देरी ;
          बन रहा है एक धुँधला चित्र मेरी चेतना में ,
          ये लकीरें दे नहीं पायीं जिसे अभिव्यक्ति मेरी ;

हू - ब - हू अपने ह्रदय में जो कि उस छवि को उतारे ,
किन्तु ऐसा सृष्टि में दर्पण कहीं पाया नहीं है ||
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||

          आज कहना चाहकर भी कुछ न मैं कह पा रहा हूँ ,
          क्योंकि भावुक मन सभी की वेदना से दुख गया है ;
          देख लूँ तो चाँद नभ का भी उतर आये धरा पर ,
          किन्तु मेरी ग़लतियों से आज माथा झुक गया है ,

पूर्ण होकर भी , तुम्हारे बिन सदा ही मैं अधूरा,
तुम नहीं हो , इसलिए ही प्राण हैं , काया नहीं है ||

गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||

          - श्रीकृष्ण शर्मा 
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 www.shrikrishnasharma.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
   

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