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4.2.20

पवन शर्मा की कहानी - '' घटना '' ( भाग - 2 )


                                   घटना
                                                               ( भाग - 2 )


          '' कब आया ? '' उसने पूछा |
          '' दोपहर में | ''
          '' क्यों आया है ? ''
          '' बता रहा था कि रेलवे का इंटरव्यू देना है | '' माँ ने कहा | माँ की बात सुनकर वह चुप रही |
          गुड्डू दूर के रिश्ते का कुछ लगता है | क्या लगता है ? उसे मालूम नहीं | कभी जानने की भी कोशिश नहीं की | साल - डेढ़ साल में आता रहता है | शहरों में लोगों को मिलने का स्थान मिल जाए तो कहीं - न - कहीं से रिश्तेदारी निकल ही आती है |
          '' कहीं बाहर गया है ? '' उसने पूछा , फिर चाय का आखिरी घूँट भरा और ख़ाली कप मेज पर रख दिया |
          '' कह रहा था कि अभी आता हूँ | '' माँ ने कहा , एक घंटे से ऊपर हो गया उसे गए हुए | ''
          चाय पीने के बाद वह उठी और अपने कमरे में जाकर घर के कपड़े पहने , फिर बाथरूम में फ्रेश होने चाली  गई | जब वह फ्रेश हो कर आई , तब तक गुड्डू लौट आया था | उससे थोड़ी - बहुत बातचीत कर वह किचिन में चली गई | माँ रोटी बनाने के लिए आटा गूंध रही थी |
          गुड्डू उससे कम ही बात करता है | अधिकतर कटने की कोशिश करता है | ये बात उसकी समझ में नहीं आती कि आख़िर ऐसा क्यों ? '' माँ ने आटा  गूंध लिया | सब्जी , दाल चावल पहले से ही तैयार थे | माँ बोलीं , तू थाली  और कटोरियाँ उतारकर नीचे रख | मैं रोटी बनाती हूँ | तेरे पिताजी और गुड्डू को खाना खिला दे | राकेश जब आएगा , तब खा लेगा | ''
          उसने थाली ओर कटोरी उतारकर नीचे रखीं , फिर कटोरियों में दाल और सब्जी परोसने लगी | माँ रोटी बनाने लगीं |
          बाहरवाले कमरे में उसके पिता ने टी.वी.चालू कर लिया | साढ़े आठ के समाचार आ रहे हैं | उन्हीं के सामनेवाले सोफे पर गुड्डू बैठा हुआ है |
          राकेश अभी नहीं लौटा है | राकेश उसका छोटा भाई | बेरोजगारी के दंश से आहत ! सुबह घर से निकलता है तो रात में ही लौटता है | उसके लौटने का कोई समय नहीं है | पिता कभी नहीं बोलते और न ही टोकते कि कहाँ जा रहा है ? क्या कर रहा है ? देर से क्यों लौटता है ? माँ ही कभी - कभार टोक देती हैं | जब टोकती हैं , तब वह दो - दो , तीन - तीन दिन घर से गायब रहता है | अक्सर ऐसा ही होता है |
          उसने थाली में रोटियाँ रखीं और अपने पिता और गुड्डू के सामने थाली रख आई | गिलासों में पानी पहले से ही रख आई थी |
          तब तक राकेश आ गया | उसके पिता और गुड्डू पर एक नजर फेंककर वह अपने कमरे में घुस गया |
          टी. व्ही. पर समाचार समाप्त हो गए और किसी सीरियल के आने से पहले के विज्ञापन आने लगे |
          थोड़ी देर बाद उसके पिता और गुड्डू ने खाना खा लिया
          रात के लगभग दस बज गए | उसने माँ से कहा , '' गुड्डू का बिस्तर राकेश के कमरे में लगा देती हूँ | ''
          '' और नहीं तो क्या ... वहीँ सो जायेगा | '' माँ ने कहा |
          थोड़ी देर वह बैठी रही |
          '' सुबह चाय और पंराठे बना लेना ... तेरे पिताजी और मुझे श्रीवास्तवजी की तेरहवीं में जाना है | '' माँ ने कहा |
          '' कौन श्रीवास्तवजी ? ''
          '' इन्हीं के ऑफिस में पहले बड़े बाबू थे | हार्ट अटैक हुआ और चल बसे | ''कहते हुए माँ ने ठंडी साँस भरी और सोने चली गई |
          गुड्डू का बिस्तार लगाकर वह भी अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई |
          बाँस के चैम्बर में हुई आज की घटना उसके मस्तिष्क से तब निकली , जब वह निद्रा में लीन हो गई |

कैजुअल लीव के लिए उसने ऑफिस फोन कर दिया | बता दिया कि घर में काम है , अतः वह ऑफिस नहीं आ सकती | एकाएक उसे हँसी आई कि कदाचित् बॉस सोचेगा कि कल के व्यवहार से उसने कैजुअल ली होगी |
          इस समय वह घर में अकेली है |
          उसके पिता और माँ , श्रीवास्तवजी की तेरहवीं में गए हुए हैं | शाम तक लौटेंगे | राकेश सुबह से ही निकल गया - और दिनों की तरह | गुड्डू इंटरव्यू देने गया है |
          उसने टेपरिकोर्डर में कैसिट लगाकर टेप चालू कर दिया |
          काफी दिनों बाद वह घर में अकेली है |
          एकाएक वह अपने शरीरमें तपिश महसूस करने लगी - जैसे , शरीर में आग भर गई हो | उसे ध्यान आया कि सुबह से वह नहाई नहीं है |
          टेप पर गाने चल रहे हैं |
          वह उठी और बाथरूम में घुसकर बाथरूम का दरवाजा बन्द कर लिया | वह अपने शरीर पर शरीर पर पानी उड़ेलने लगी , फिर भी शरीर की तपिश कम नहीं हुई | आख़िर ये तपिश कैसी है ? वह समझ नहीं पाई | अभी तक एक ठण्डापन महसूस किया है अपने शरीर में | छब्बीस की उम्र में ये ठण्डापन क्यों है ? वह ये भी नहीं समझ पाई |
          तपिश कम नहीं हो हुई  |
          उसने अपने शरीर पर पानी उड़ेला ... खूब पानी उँड़ेला , फिर भी शरीर में तपिश ज्यो - की - त्यों थी |
          अपने शरीर पर तौलिया लपेटकर वह बाथरूम से निकलकर अपने कमरे में आ गई और आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर स्वयं को देखने लगी |
          आईने के सामने खड़ी होकर वह स्वयं को घूर रही है | कोई दूसरा घूरे तो वह उसका मुँह नोंच ले |
          अचानक उसे लगा कि उसके अलावा कमरे में कोई और भी है , जो उसे घूर रहा है | कौन है ? कौन है ? वह चीखना चाहती है , किन्तु आवाज गले में फँसी रह जाती है |
          कौन है ? - वह फिर चीखना चाहती है |
          उसके चेहरे पर आतंक जमने लगा |
          '' कौन है ? '' वह चीख़ पड़ी |
          गीले बालों को तौलिये के साथ ऐंठे देकर बाँध लिया |
          उसके चेहरे पर अभी भी आतंक जमा हुआ है |
          वह अपने कमरे से निकलकर बाहरवाले कमरे में आई | गुड्डू को सोफे पर सिर टिकाकर बैठे हुए देखकर वह विस्मित हो गई |
          आहट पाकर गुड्डू ने अपनी आँखें खोली |

                                                                       शेष भाग - ( 3 ) में

                                                - पवन शर्मा
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पवन शर्मा
कवि , लघुकथाकार , कहानीकार

पता
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,
जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .

ईमेल – pawansharma7079@gmail.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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