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24.2.20

पवन शर्मा की कहानी - '' दावानल '' - ( भाग - 2 )



( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से ली गई है )


                                 दावानल 


   कुछ और जानते हैं इनके बारे में ? '' मनोहर ने मेरे  चेहरे पर अपनी नजरें जमा दीं |
          '' क्या ? ''  
   भाग - ( 1 ) से आगे -

          एकाएक उसके चेहरे पर तल्खी उभर आई ,  '' ये साले जंगली जानवरों की खालें भी शहर ले जा कर बेचते हैं | गुल्ली , चिरौंजी का दो नम्बर का भी धन्धा करते हैं | ''
          '' क्या कह रहा है ? ''
          '' बिल्कुल सही | ''
          मैं चुप था | मुझसे कुछ कहते नहीं बना |
          '' अब आप ही बताओ कि मैं क्या करूँ ? '' उसने पूछा |
          '' मिश्राजी से जा कर कह | '' मैनें सलाह दी |
          '' कुछ नहीं होगा | ''
          '' क्यों ? ''
          '' उसको भी हिस्सा मिलता है | ''
          '' तू झूठ बोल रहा है | ''
          '' सही बोल रहा हूँ | विश्वास न हो तो उसी से पुछ लो | '' उसने कहा |
          '' तो तू अपने तरीके से उन्हें रोक | ''
          कैसे ... ? मैं अकेला क्या कर सकता हूँ ? '' उसके चेहरे पर प्रश्न टंग गया |
          '' अपने जैसे,अपने मोहल्ले के कुछ लोगों को अपने साथ लेकर | '' मैनें मनोहर को विरोध करने का पहला सबक सिखाया |
          हफ्तेभर बाद तहसील से दो सिपाही आए | उन्होंने मनोहर को घर से बाहर परछी में खिंचा और जमीन पर पटककर डंडों से बेदम होने तक पीटा ,  '' साले ... नेतागिरी करने लगा ... ''
          मनोहर के विरोध का नतीजा |
          पूरा गोंडी मोहल्ला दांतों के बीच उँगली दबाए मनोहर की चीखें सुन रहा था , किन्तु किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि मनोहर पर डंडे बरसाते दोनों सिपाहियों को रोक सके |
          अँधेरा घिरते ही मैं मनोहर के घर गया | मुझे देख उसका बप्पा और उसकी माँ रो पड़े ,  '' तुम्हीं ने उकसाया था उसे , अब देख लो , जालिमों ने जान भर नहीं निकाली है , बाक़ी सब ... ''
          मैं भीतर तक सिकुड़ गया |
          पूरा गोंडी मोहल्ला दहशतजदा था | किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि कटते हुए जंगलों को रोक सके | साँभर , चीतलों को मारकर उनकी खालों को बेचने से रोक सके | गुल्ली,चिरौंजी का अवैध व्यापार रोक सके | गोंडी मोहल्ले के लोगों का खुलेआम शोषण रोक सके | खुली चेतावनी दी गई थी कि जो भी टाँग अड़ाएगा , बेमौत मारा जाएगा |
          इसके बाद मनोहर का स्वभाव बदल गया | वह दुगनी ताकत से उन लोगों का विरोध करने लगा | गोंडी मोहल्ले के लोगों के दिलो -दिमाग में उसने आग भर दी | पूरा गोंडी मोहल्ला एक हो गया | सरपंची मोहल्ले के चेहरे पर चिन्ता उपजने लगी | पहले नाले से गाँव दो धडों में बटा था , अब मन से बंट गया |
          '' मास्साब , आजकल गोंडी मोहल्ला बहुत जाने लगे हो | क्या
किसी आदिवासिन से दिल लग गया है | '' ऐसी ही कोई शाम थी | हल्का अँधेरा हो चुका था | मनोहर के घर से लौटते हुए मुझे हँसी के साथ आवाज सुनाई दी | दिल में नश्तर चुभने जैसी हँसी !
          मैं मुड़ा | भूपतसिंह औए कंपाऊंडर थे |
          '' मनोहर की बहन भी पटाखा है साली ... शायद इसी लिए
मास्साब जाते हैं | ''   ये कम्पाउंडर की आवाज थी |
          '' चुप रहो ! ''   बेसाख्ता मैं चीख़ पड़ा |
          '' चिल्ला मत मास्टर ! ''  भूपतसिंह भी चीखा ,  '' तू वहाँ हमारे खिलाफ लोगों को भड़काने जाता है ... बन्द कर दे अपनी हरकत ... नहीं तो साले ... '' भूपतसिंह ने कहा | बात मेरे कलेजे को चीर गई | किसी ने जीवन में पहली बार इस तरह से बात की थी |मेरे चेहरे पर अपमान चस्पा हो गया |
          मुझे सारी रात नींद नहीं आई| खाट पर करवटें बदलता रहा| तरह - तरह के ख्याल आते रहे |  सुबह  होते -  होते मैनें तय कर लिया कि मैं फारेस्ट रेंजर मिश्राजी से भूपतसिंह की शिकायत करूँगा |
          सुबह लगभग  नौ  बजे मैं  मिश्राजी के घर गया  |  मिश्राजी ने आदरभाव से मुझे बिठाया और भीतर चाय का आदेश दे दिया | शाम वाली घटना मैंने उन्हें बताई तो वे चिन्तित स्वर में बोले ,  '' कम पढ़े - लिखे लोग हैं मास्साब ! किससे कैसी बात की जाए, वो लोग नहीं जानते | मैं भूपतसिंह को समझा दूँगा कि आइन्दा ऐसा  अशिष्ट बर्ताव न करे | ''
          कहने के बाद मिश्राजी ने जेब में से विल्स का पैकिट निकाला और एक सिगरेट सुलगा ली |
          चाय आ गई |
          मिश्राजी ने कहा , '' चाय लीजिए | ''
          हम लोग चाय पीने लगे | चाय पीते - पीते मिश्राजी बोले ,  '' मेरी एक सलाह मानेंगे ? ''
          '' बोलिए | ''
          '' आप इन लोगों के बीच में कतई न पड़ें | आप , मैं , भूपतसिंह , काशीनाथ , कम्पाउंडर सभी सरकारी आदमी हैं | ये लोग जो करते हैं , करने दें ! आप सब देखिए , पर अपनी आँखें बन्द रखिए - गांधीजी के बन्दर की तरह ... हैं ... हैं ... हैं ... '' मिश्राजी हँसे |
          मैं अवाक् रह गया | मनोहर की बात सत्य लगने लगी कि मिश्राजी को भी हिस्सा मिलता है | मिश्राजी ने सिगरेट का कश खिंचा और धुआँ उगल दिया |मैंने देखा कि सिगरेट के धूएँ के उस पार बैठे मिश्राजी का चेहरा काशीनाथ , भूपतसिंह और कम्पाउंडर के चेहरों जैसा ही था |
          मैं घर लौट आया | घर के बाहर परछी में केशव सरपंच बैठा हुआ था | मुझे देख उसके चेहरे पर अजीब - सी मुस्कराहट तिर आई | मैं आहत हो उठा |
          '' आओ मास्साब बैठो | '' केशव ने मुझसे कहा |
          मैं स्टूल खींचकर बैठ गया |
          '' मिल आए रेंजर से ! क्या कहा उसने ? '' केशव ने बिना किसी भूमिका के कहा |
          मुझे आश्चर्य हुआ की केशव को कैसे मालूम है कि मैं मिश्राजी के पास गया था और क्यों गया था ?
          '' क्या कहेगा ... कल जो भूपतसिंह और कम्पाउंडर ने कहा , वही आज उसने कहा | '' कहने के बाद में विचलित होने लगा |
          '' रेंजर ठीक कहता है | गोंडी मोहल्ले वालों के पीछे आप दुश्मनी क्यों मोल ले रहे हैं ! ये साला मनोहर ... ढोर ... गँवार ... कुछ दिन पहले मुँह नहीं खोल पाता था और आज देखो तो ... '' एकाएक केशव की आवाज तेज हो गई ,  '' साला हर बात पर सीना तानकर खड़ा हो जाता है ... आपने ही उसे शह दी है | ''
          मैं चुप था | मेरे मन में चिनगारी फूटने लगी | केशव की बातों में भी मिश्राजी , भूपतसिंह और कम्पाउंडर की बातों  जैसी बू आ रही थी |
          '' इन सब बातों से तुम्हें परेशान नहीं होना चाहिए | '' मेरे भीतर आग सुलगने लगी |
          '' सबसे अधिक परेशानी तो मुझे ही है | ''
          '' क्यों ? '' विस्मय से मेरा मुँह खुला रह गया | 
          केशव हँसा ,  '' बहुत भोले हो मास्साब ... मनोहर का असर गोंडी मोहल्ले के लोगों पर इतना जम गया है कि वो जैसा कहता है , सब वही करते हैं | ''
          '' तो क्या ... '' केशव मेरे नजदीक खिसक आया और फुसफुसाते हुए बोला , '' वह मेरे लिए खतरा बन गया है | हो सकता है कि अगले चुनाव में वही सरपंच बन जाए ! ''
          मेरे भीतर सुलगती आग ठण्डी पड़ने लगी |
          रात के अँधेरे में लकड़ियों में फँसे हए कपडे मेंआग भुकभुका उठी | अँधेरा ख़त्म नहीं होता, पीला पड़ जाता है | पीली रोशनी गोंडी मोहल्ले के लोगों के पसीने से भीगती काली - काली देहों पर पड़ती है , जो खड़ेरा देव को खुश करने के लिए माहुल के पत्तों से बनी पुड्की में महुए की कच्ची दारु पी रहे हैं और मादल की थाप पर करमा कर रहे हैं |

                                         ( आगे का अगले भाग में )   

                              - पवन शर्मा 
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पवन शर्मा ( कवि , लघुकथाकार , कहानीकार )
        पता

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,
जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com


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 संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867


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