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26.4.20

रामप्रीत आनंद की ग़ज़ल - ( 1 )








तालाबंदी के सम्मान का अरमान लिए बैठे हैं ,
बस वतन के हुकूमत का फरमान लिए बैठे हैं।
गमन की सिफ़ारिश का ज़रिया नहीं है कोई,
मोहलत के इशारों का धरमान लिए बैठे हैं ।
महकमें में वक़्त गुजरता है बड़ी मुश्किल से ,
आराम के समय अपना घर मान लिए बैठे हैं।
हर जगह खाली, मगर कितना भरा है आदमी,
जिस अंदाज़ को अपना दर मान लिए बैठे हैं ।
ज़िन्दगी मजबूर है इन बंदिशों में रहने के लिए ,
फिर भी उनके पैग़ाम को सर मान लिए बैठे हैं।
एक माह से भी अधिक वक़्त गुजारा है घर में,
पर तुम्हारी हर बात को यार मान लिए बैठे हैं ।
यहाँ की तन्हाई ने दी है हिम्मत जैसे लेखनी को ,
सुबह से शाम तक इसे प्यार मान लिए बैठे हैं ।
दिल में घर की याद बनी रहती है हमेशा 'आनंद'
मगर दूरभाषी बातों को ही तार मान लिए बैठे हैं ।**
              - आर. पी.आनंद(एम.जे.)
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई 

माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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