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23.3.20

विडम्बना





















( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' में, 1973 में रचित नवगीत )


विडम्बना 

हम छटपटाते रहे 
सुविधाओं के लिए 
किन्तु अभाव हम पर हँसते गये ,
हम कसमसाते रहे स्वतंत्रता के लिए 
किन्तु दबाब हमको कसते गये |

बदसूरत दुर्भाग्य की छाया में 
हमें असफल होना ही था ,
किन्तु अकर्मण्य सिद्ध हुए हम 
समस्याओं के सामने |

और 
समस्याएँ भी एक नहीं 
दो नहीं , एक के बाद एक 
एक के साथ अनेक 
- लम्बा सिलसिला -
इन्टरव्यू के बेमानी बदजायका प्रश्नों - जैसा ,
और 
हमारा धैर्य चुकता गया 
और हमारा माथा झुकता गया |

तभी 
वे आये 
और हमें देखकर 
हमारे चेहरे पर उभरे 
किसी अदृष्ट लेख को पढ़कर 
वे हँसते गये |

और हम 
अपनी ही असमर्थताओं की लज्जा में 
धँसते गये गहरे 
बहुत गहरे 
और 
हमारी यह गहराई ही 
उनकी नीव है ,
जिस पर उनके प्रासाद खड़े हैं ,
और हम आज भी धरती में गड़े हैं |

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            - श्रीकृष्ण शर्मा 
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867


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