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21.1.20

पवन शर्मा - कहानी - '' उसकी जमीन '' - भाग - ( 2 )

( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से ली गई है )

                           उसकी जमीन 
                             भाग - ( 2 )

            
          '' सुना तो मैने भी है | महीने भर पहले सरकारी अफसर आए थे | लिखा - पढ़ी करके और नाप - जोख करके ले गए हैं | अब देखो , क्या होता होता है | मेरे तो पैर कब्र में लटके हैं | '' रहमान मियाँ शायद नींद से जागे , फिर कल्लू का हाथ पकड़
कर बच्चों जैसे बोले , '' कल्लू , तू मेरा एक काम करेगा ? ''
          '' बताओ चाचा | ''
          रहमान मियाँ उठकर अन्दर आ गए | चारपाई के नीचे रखे लोहे के सन्दूक का ताला खोलकर एक कागज निकाला और सन्दूक को बन्द कर ताला लगाया | वे कागज को हाथ में पकड़कर बाहर आए और कागज कल्लू  को देते हुए बोले , '' तू कचहरी जाकर ये कागज वर्मा बाबू को दे देना और कहना कि रहमान मियाँ ने भिजवाया है | उनके कागज जल्दी तैयार कर दें | अब देरी न करें | ''
          कल्लू अपने हाथ में कागज पकड़े कभी रहमान मियाँ को देख रहा था , तो कभी कागज को | असमंजस की स्थिति में था वह , '' चाचा क्या कर रहे हो तुम ? ''
          रहमान मियाँ थोड़ी देर चुप रहे , फिर बोले , '' मैं तुझे अपना वारिस बना रहा हूँ | ये उसी का कागज है | जब पट्टा मिल जायेगा , तो तेरे नाम जमीन कर दूँगा | तूने और तेरी घरवाली ने मेरी बहुत सेवा की है ... बिल्कुल बेटे और बहू की तरह | ''
          '' लेकिन सुलेमान भाई तो हैं | ''
          '' उस मरदूद का नाम अपनी जुबान पर मत ला | इस बूढ़े की उसने कभी नहीं सोची | तू जानता है - कल रात पीकर आया था | गाली - गलौज की | कहने लगा कि तुम्हें मेरे नाम पट्टा लिखना ही पड़ेगा ... '' रहमान मियाँ हाँफने लगे |
          '' चाचा , तुम भी बस ... '' कल्लू रो पड़ा | रहमान मियाँ उसे एक घर देने की सोच रहे हैं , जबकि वह इस चिन्ता में घुला जा रहा है कि जिन्हें पट्टे मिलने हैं , उन्हें छोड़ बाक़ी सभी को सरकार भूमि अतिक्रमण के अधीन मानकर जमीन से बेदखल कर देगी |
          '' तू वर्मा बाबू से कहकर जल्दी कागज तैयार करवा ले , तभी मैं अपना अंगूठा लगाऊँगा | '' कहने के बाद रहमान मियाँ वहीँ बिछी दरी पर लेट गए | कल्लू चला गया | पता नहीं भूरी भी कब चली गई वहाँ से | रहमान मियाँ फिर अकेले रह गए | सामने पान के ठेले पर फिर से वही गाना बज रहा है , ' चोली के पीछे क्या है ... ' लड़के अभी भी खड़े हैं और चमेली को इशारे कर रहे हैं | चमेली भी उन्हें देखकर मुस्करा रही है | खड़े हुए लड़के खुश हो रहे हैं |सिर पर धूप चढ़ आई है | रहमान मियाँ लम्बी साँस लेते हैं | मन उद्द्वेलित है | पुरानी बातें तंग कर रहीं हैं ... 
          कितने अच्छे दिन थे वे ... तब गाँव में ही रहते थे सब लोग ... बेगम और सुलेमान ... तब सुलेमान बच्चा ही तो था ... और बेगम हूर की परी ... हँसती थीं तो गाल में गड्ढे पड़ जाते थे ... बाद में ... गाँव छोड़ना ... चैकिंग पोस्ट में आना ... होटल चलाना ... सुलेमान का जाना ... बेगम को अल्लाह को प्यारा होना ... फिर उनकी तनहाइयाँ ... सिर्फ़ ... तनहाइयाँ ... क्यों ? ... और ... किसलिए ?

          रहमान मियाँ को दफ़नाने के बाद कल्लू ने देखा कि बरगद के नीचे शहर का पूरा सरकारी अमला बैठा है | चैकिंग पोस्ट के बाशिन्दे कलेक्टर के हाथ से भूमि के पट्टे वितरित होते देख रहे हैं | जिन्हें पट्टा मिल रहा है , उनके चेहरे से ख़ुशी टपक रही है और जिन्हें नहीं मिल रहा है , उनके चेहरे पर ईर्ष्या के और शायद भूमि पर से बेदखल होने की चिन्ता के भाव हैं |
          कल्लू को भी चिन्ता है ... कहाँ जायेगा ? कहाँ रहेगा ? कहाँ बसेगा ? कैसे परिवार की गुजर - बसर होगी ? एक ही आसरा था ... साइकिल की दुकान | न जाने कब सरकारी अफसर आकर उसे ... उससे पहले ही उसे अपना कहीं ठौर - ठिकाना ढूँढना ही  पड़ेगा | रहमान मियाँ ने एक आस जगाई थी | सब धरा - का - धरा रह गया | उनका क्या कसूर ? वे तो कागजात तैयार करवा रहे थे | ऊपरवाले की मंशा ही कुछ और थी कि कागजात तैयार होने के बावजूद वे उस पर अंगूठा नहीं लगा पाये | बिना अंगूठा - निशानी के उस कागज का क्या महत्व | लेकिन एक बात उसके मस्तिष्क में हथौड़े - जैसी चोट बार - बार कर रही थी - वह थी रहमान मियाँ की मौत | मौत के बाद रहमान मियाँ का शरीर अकड़ गया था | आँखें फटी रह गई थीं | मुँह खुला रह गया था | उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ था | हाँ , दफ़नाने के पूर्व एक बात उसने और गौर की थी कि रहमान मियाँ के दायें हाथ के अंगूठे पर सूखी हुई स्याही लगी हुई थी , जैसे किसी ने उनके मरने से पहले या बाद में कहीं किसी कागज पर उनके अंगूठे के निशान लगाये हों | वह बेहद विस्मित है |
          कल्लू के विचारों का क्रम टूटा | न जाने कब से रहमान मियाँ के वारिस को बुलाया जा रहा है | उसकी इच्छा हुई कि वह कलेक्टर के पास पहुँचकर उनके पैर पकड़ ले और कहे कि रहमान मियाँ ने उसे ही अपना जमीन का वारिस बनाया है | वह कचहरी के वर्मा बाबू से कागज तैयार करवाकर ले आया है , किन्तु उस पर अंगूठा लगाने से पहले ही रहमान मियाँ अल्लाह को प्यारे हो गए हैं | शायद कलेक्टर को दया आ जाए और रहमान मियाँ का वारिस मानकर जमीन का पट्टा दे दें | 
          कल्लू इसी उधेड़बुन में था कि सुलेमान हाथ में एक कागज लिए कलेक्टर की ओर बढ़ा | कल्लू आँखें फाड़ - फाड़कर देखने लगा | कलेक्टर ने कागज देखा | सन्तुष्ट होकर उन्होंने कागज दूसरे अधिकारी की ओर बढ़ा दिया | दूसरे अधिकारी ने कागज पर सरसरी नजर दौड़ायी और फ़ाइल में रख लिया | कल्लू देख रहा है - तालियों की गडगडाहट के बीच सुलेमान को रहमान मियाँ का वारिस मानकर जमीन का सरकारी पट्टा दिया जा रहा है | सुलेमान मुस्करा रहा है ...
          कल्लू से देखा नहीं गया | वह मुड़ा और खड़े हुए लोगों को धकियाते हुए भीड़ से बाहर निकल आया | घर आकर खूब देर तक रोता रहा |
          शाम को लोगों ने देखा कि सुलेमान ने बहुत अधिक पी रखी है और नशे में लडखडाता हुआ बक रहा है , '' बुढऊ तो अल्लाह को प्यारा हो गया ... पर ... अपन का उद्धार कर गया ... नहीं तो ... साले कल्लू के हत्थे चढ़ जाती ... हजारों की जमीन ... बुढऊ मान ही नहीं रहा था ... पर ... अपन भी ... साला ... कम नहीं ... जबरदस्ती ही सही ... पर ... बुढऊ ... साला ... कल्लू ... '' *  

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पवन शर्मा
कवि , लघुकथाकार , कहानीकार 

पता
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,
जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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