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27.12.19

पवन शर्मा - '' शहर और जंगल ''

प्रस्तुत कविता - '' शहर और जंगल  '' पवन शर्मा की पुस्तक -'' किसी भी वारदात के बाद '' से ली गई है )











शहर और जंगल

शहर 
तो बस 
नाम के होते हैं शहर 

देखता है शहर नित रोज 
अपने गर्भ में पलते 
राहजनी 
हत्या / बलात्कार 
रंजिश / तनाव / आक्रोश 
साम्प्रदायिक उन्माद और दंगे 
आग और बमों के धमाके 
सड़कों पर जमे खून के कतरे 
लुभाती रूपसियाँ / गगचुम्मी कोठियाँ
चमक - दमक / सिक्कों की खनक 

कितना अजीब लगता है तब ,
जब , नहीं बता पाता शहर 
अपने पड़ोसियों का पता भी 

मैंने इतिहास की पुस्तक में पढ़ा है 
जंगल से गाँव 
गाँव से बना है शहर 
जंगल और शहर में 
अंतर है जमीन - आसमान का 

नहीं करता जंगल 
धर्म / मजहब / सजीव / निर्जीवों  में अंतर
नहीं करता जंगल 
थल / जल / नभ में अंतर
नहीं बहती कोई गरम हवा 

तपी - मनु पुत्रों की धरा है जंगल 
सच ,
बहुत ठंडा होता है जंगल 
सच ,
बहुत अच्छा होता है जंगल 
चलो ,
जंगल चलें !

                - पवन शर्मा 
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पवन शर्मा
( कवि , लघुकथाकार )


पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,
जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
















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