( '' हर कदम डर और खतरे '' कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
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हर कदम डर और खतरे
गुम हुए हैं वन
शहर में / और
शहरों भेड़िये हैं
बस्तियों में लक्कड़बग्घे हैं
कि करते अपहरण जो ,
हैं यहाँ पर रीछ
नैतिक अतिक्रमण को ,
लोमड़े बनते सँवरते ,
शोहदेपन के लिए हैं |
गुम हुए हैं वन ...
कबरबिज्जू बना तस्कर ,
चुस्त चीता आदमी है ,
इस दशा में हर सबल
बधिया बनेगा लाजिमी है ,
रंगे स्यारों - से कुटिल
धोखों भरे बहुरूपिये हैं
गुम हुए हैं वन ...
तने हाथों में लगे हैं
सूअरों के तेज चाकू ,
लिए वहशी हिंस्र भैंसे
दिलों में अपने हलाकू ,
हर कदम डर और खतरे ,
मुश्किलों के काफिये हैं
गुम हुए हैं वन ...
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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