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3.12.19

हर कदम डर और खतरे

( '' हर कदम डर और खतरे '' कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )













हर कदम डर और खतरे 

गुम हुए हैं वन 
शहर में / और 
शहरों भेड़िये हैं 
          बस्तियों में लक्कड़बग्घे हैं 
          कि करते अपहरण जो ,
          हैं यहाँ पर रीछ 
          नैतिक अतिक्रमण को ,
लोमड़े बनते सँवरते , 
शोहदेपन के लिए हैं |
गुम हुए हैं वन ...
        कबरबिज्जू  बना तस्कर ,
        चुस्त चीता आदमी है ,
        इस दशा में हर सबल 
        बधिया बनेगा लाजिमी है , 
रंगे स्यारों - से कुटिल 
धोखों भरे बहुरूपिये हैं
गुम हुए हैं वन ...
        तने हाथों में लगे हैं 
        सूअरों के तेज चाकू ,
        लिए वहशी हिंस्र भैंसे 
        दिलों में अपने हलाकू ,
हर कदम डर और खतरे ,
मुश्किलों के काफिये हैं 
गुम हुए हैं वन ...

           - श्रीकृष्ण शर्मा 
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

  

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