( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के काव्य - संग्रह
- '' अक्षरों के सेतु '' से ली गई 1976 में लिखित काव्य )
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinbNsE8F0iDV6PheeUTMK9uhYriCGwvYknBU6DVWbK6QqM7bJj_sQmysHg2ieQMpdGY04owoybTH7P5dVDAR12K9KcNW7PxigVFuCk290ivZXKgrv4H9_b4ZdqwRz1VKAsQXwZD6DEy_Q/s1600/download+%25284%2529.jpg)
आख़िर फ़र्क क्या पड़ा
ऐसी बेरंग
और बदमजा
तो नहीं रही कभी
आज जैसी ये ज़िन्दगी
कितना बेमानी रहा
तहखानों से निकल कर
खुली हवा में आने का अहसास
पता नहीं
कब हुआ ये
कि हमारे आक़ा
जाते - जाते छोड़ गये
अपने औरस पुत्र हमारे बीच
जो बन बैठे हमारे वैधानिक सरपरस्त
आख़िर फ़र्क क्या पड़ा ?
जरखरीद गुलाम
ढोर - डंगर या कैदी
फ़र्क ही क्या है होने का /
न होने का इनके लिए
घुटन
जो भीतर है
बाहर भी वही तो है
हक़ है
लेकिन नहीं है
सुख - सुविधाएँ भोगने का
पाक़ - साफ़ लफ़्ज , लेकिन
उनका ये अर्थ और व्याख्या ?
आख़िर व्याख्याकार तो वे ही हैं ,
जो ढालते हैं -
जुनूनी नारे
जादुई वक्तव्य
इन्द्रधनुषी आश्वासन / और
आने वाले दिनों के सुनहरे सपने
जो
पस्तों और खस्ताहालों की बहबूदी
और मुल्क की सलामती के नाम पर
कम अक्ल और बुजदिलों को बचाने
- और तरह सुरक्षित रखते हैं
अपने आपको
आज बन गया है
हमारा सम्पूर्ण तंत्र
झूठ और फ़रेब का अभेध दुर्ग
- खूंखार भेडियों के लिए
ठीक वैसा ही जैसे पहले था
ऐसे में -
पर्तों - दर - पर्तों और
तरह - तरह के मुखौटों के पीछे से
आती आवाज को सुनो
गौर से सुनो
और पहचानो
कि कौन है अपने बीच
- वह ख़ूनी पिशाच ?
ता कि
मुक्ति पाने के लिए उससे
बड़ी ही चालाकी और होशियारी से
पेबस्त कर सको मात्र एक अदद गोली
उसके सीने में
- दहशत की |
- श्रीकृष्ण शर्मा
***************************************************
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |