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18.5.21

कवि मुकेश गोगडे की कविता - " आँख की गुस्ताख़ी "

 







आँख की गुस्ताख़ी  


सच कहा

आँख रुलाती है। 

पर आँख रोती नही

रोता मन है। 

आँख सिर्फ

प्रतीक दिखाती है। 

उद्गार मन में 

उमड़ जाता है। 

आँख देखती अच्छा तो

मन विलाप क्यों करता। 

मधुर बिम्ब दिखाती अगर 

तो

मन जाप क्यों करता। 

आँख के पर्दे पर

जो अभिनय होता है । 

उसका ही किरदार

मन ग्रहण करता है। 

प्रेम,घृणा,खुशी,गम,नृत्य,विलाप

बिम्ब के अनुरूप उभरता है। 

कोई हँसता - हँसता रोने लगता है। 

कोई रोते - रोते हँसने लगता है।।  **


               - मुकेश गोगडे


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संकलन - सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला - सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) फोन नम्बर - 9414771867.

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