यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " बोल मेरे मौन " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
मेरी ग़लती थी !
शायद मेरी ही ग़लती थी ||
घिरी हुई थी जब कि यामिनी ,
सोच रहा था मैं विहान की ,
आज शिशिर का प्रात आ गया ,
पर ख़ामोशी सूनसान थी ;
इससे तो वह रात भली थी ,
रजत चाँदनी जब बहती थी ,
जब पखवाड़े बाद चाँद से ,
मिलने की आशा रहती थी ;
थे जब मन के पास सितारे ,
सपने थे आँखों के द्वारे ,
आज तरसता हूँ मैं जिसको ,
वही मुझे पहले खलती थी |
शायद मेरी ही ग़लती थी || **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
सुन्दर
ReplyDeleteआपका बहुत - बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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