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25.5.21

लघुकथाकार पवन शर्मा की लघुकथा - " उनके बीच "

 यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से ली गई है -




उनके बीच 



' गाँव क्यों छोड़ दिया था ? '

          ' क्या रखा था गाँव में ? ' अम्मा के गुजर जाने के बाद मकान ... खेत ... ट्यूबवेल सब - कुछ बैंक की नौकरी लगते ही बेच दिया | '

          ' अम्मा कब गुजरीं ? '

          ' तुम्हारे जाने के साल भर बाद ही | '  वह थोड़ी देर के लिए रुका ,  ' तुम्हें पत्र भी तो लिखा था | '

          ' मुझे नहीं मिला था ... सचमुच | '

          थोड़ी देर दोनों चुपचाप चलते रहे |

          ' इतने बड़े शहर में तुम कैसे रह पाती हो  ...पता नहीं , किसके सहारे | '

          ' प्रतीक के सहारे | '

          ' प्रतीक ? '

          ' मेरा बच्चा | '

          कहाँ है ? '

          ' बोर्डिंग में डाल दिया है | वहाँ उसकी देखभाल अच्छी तरह होती है | सन्डे को देख आती हूँ | '

          ' कितना कठोर ह्रदय है तुम्हारा ! '

          इतने व्यस्त मार्ग में उन्हें जैसे किसी दूसरे की ख़बर तक न थी | सड़क के किनारे खड़ी हाथ ठिलिया में भुने हुए चने देखकर वह बोला , ' चने खाओगी ? ' 

          ' ले लो | ' उसने कहा | 

          वह दो रूपये के चने खरीदता है |

          ' लो खाओ | ' उसकी ओर चने बढ़ाते हुए वह बोला |

          ' तुम्हारी आदत अभी तक नहीं बदली | ' कहने के बाद उसके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट तिर आई , फिर चने लेकर एक - एक दाना खाने लगी |

          दोनों चने खाते हुए धीरे - धीरे चलने लगे |

          ' यहाँ कब ट्रांसफर हुआ तुम्हारा ? '

          ' पिछले माह | '

          ' फिर शिफ्ट कहाँ हो गए ? '

          ' कल्याण में | '

          ' रोज अप - डाउन करते हो चर्चगेट तक ? '

          ' करना ही पड़ता है | '

          थोड़ी दूर दोनों शांत चलते हैं |

          ' तुम्हें देखकर मैं हैरान हो गई थी | '

          ' भूत नज़र आया मैं | ' कहकर वह हँसता है |

          ' इतने वर्षों बाद , लगभग अठारह वर्ष बाद तुम्हें देखा है न ... इसलिए | ' थोड़ी देर रूककर उसने फिर कहा , ' तुम्हारे कनखियों के बाल भी सफ़ेद हो गये हैं - पहचानना जरा मुश्किल हो गया था | '

          ' चार वर्ष साथ रहने के बाद भी , मैं तुम्हें देखते ही पहचान गया था | '

          ' तुम्हारे साथ बिताए चार वर्ष ही बेहद कष्टप्रद हैं मेरे लिए - आज भी |'

          ' क्यों ? '

          उन दिनों को भूल नहीं पा रही मैं | '

          चने खाते और बातें करते दोनों पैदल चले जा रहे थे | सड़क के किनारे बिजली के खम्भों पर लगे हैलोजन लैम्प जल उठे थे |

          ' तुम्हारे भीतर का अहं मुझसे जीत गया था | तुम्हारी उच्चाकांक्षाऍ जीत गईं थीं |तभी तो तुम मुझसे सहजता के साथ अलग होकर सतीश के पास चली गईं थीं | '

          ' उलाहना दे रहे हो मुझे | '

          ' कुछ भी समझ लो | हम - तुम एक साथ नहीं रह पाए | हमारे बीच रोज - रोज की कलह ... उफ़ ! '

          वह चुप रही | कुछ झेलती रही | 

          ' अच्छा हुआ कि तुम मुझे छोड़कर चली आईं | मैं तो तुम्हें कुछ भी नहीं दे सका | उस वक्त एक प्राइमरी स्कूल का मास्टर तुम्हें दे भी क्या सकता था ? '

          ' प्लीज राकेश | '

          ' तुम्हारा जाना ही मेरे लिए दृढ़संकल्प जैसा था | तभी तो मैं बैंक में प्रोंबेशनरी ऑफिसर के लिए सिलेक्ट हो सका | '

          दोनों चलते हुए रुक गए |

          ' एक बात पूछूँ ? '

          ' पूछो | '

          ' मैं यह नहीं पूछूँगा कि सतीश ने तुम्हें क्यों छोड़ दिया , किन्तु इतना अवश्य पूछूँगा कि आखिर तुम्हें मिला क्या ? अठारह वर्ष के एकाकी जीवन में मैं आज तक यह नहीं समझ पाया काँति , कि मेरा प्रेम तुम्हें बाँधकर क्यों नहीं रख पाया ! '

          वह फफक कर रो पड़ी |

          ' अब चलूँगा ... तुम्हारे साथ बिताए आज के तीन - साढ़े तीन घंटे मेरे लिए कीमती हैं | '

          वह अब भी फफक - फफक कर रो रही थी |  ***


                                                   - पवन शर्मा      


 पता -

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  


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 संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

  

              

3 comments:

  1. मेरी लघुकथा को प्रकाशित करने के लिए आभार सुनील जी.

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    Replies
    1. आदरणीय पवन भाई , आपका इस ब्लॉग में हमेशा स्वागत है |

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  2. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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