इसे कवि श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया है | यह पुस्तक की भूमिका है -
मेरी छोटी आँजुरी
आस्थाओं का हिमवान
( भूमिका ) भाग - 6
भाग - 5 का अंश
... कवि ने जो भला – बुरा सहा वह उसका भाग्य था , अब उसकी कविता यदि आपको भी भीतर तक हिला दे और विकम्पित करके छोड़ दे तो आप अपनी अवस्था का विचार अवश्य रखें क्योंकि तन और मन से पुख्ता होना अच्छी कविता को झेलने की अनिवार्य शर्त है | ...
भाग - 6
...सतसईकार ने जैसे सांस्कृतिक
महत्व के तपःपूत मनीषियों की परम्परा के के बीच सामाजिक गरिमा की खोज की है , वैसे
ही उसके द्वरा प्रकृति को देखकर सृष्टि के अंतरंग रहस्यों से पर्दा हटाया गया है |
प्राकृतिक विभव से मण्डित ऋतु – सौन्दर्य पर कवि ने उल्लास और उमंग की रंगोलियाँ
रची हैं , वैसे ही हास – परिहास , उत्साह और ऊब जैसे भावों का सजीव चित्रण कर
कल्पना और यथार्थ की धूप – छाँह जैसी कलाचेतना का परिचय दिया है | अंधकार और
प्रकाश दोनों के सनातन संघर्ष के प्रकृति प्रदत्त रंग संकेत नयी – नयी छवियाँ
प्रस्तुत करते हैं , तो यह भी देखा जाना चाहिए कि मानव कभी हार न मानकर अपनी
आतंरिक उर्जा से सतत चुनौती देता और समस्त विपरीतताओं के बीच अपना प्रगति – पथ
प्रशस्थ करता रहा है | ग्रीष्मकाल की क्रूर तेवर दिखाने वाली धूप हो या अमावस की
भयावह रात मनुष्य ने अपने उल्लास को कभी हारने या पस्त होने नहीं दिया | बिम्बों
का सहारा कवि को ऐसे सजीव मानवीकृत रूप खड़े करने में सहायक बना है , जिससे कृति
में नयापन आ गया है | धूप का उदाहरण देखें – धूप शिक्षिका बनी ग्रीष्म में
कर्तव्यनिष्ठ कठोरता का परिचय दे रही है – ऐसे ही दृश्य – श्रव्य बिम्ब इस काव्य
की गरिमा को बढ़ाते देखे जा सकते हैं –
अनुशासन प्रिय शिक्षिका ,
धूप रही है डांट |
तन से कपड़े उतरवा , मार रही
है सॉंट ||
धूप भीलनी चुन रही , झरबेरी
से बेर |
नहीं शिशिर के आगमन में अब कोई देर ||
धूप जुगाली कर रही , पीपल की
छाँव ||
00
धरती पर दिन भर लिखा , सूरज
ने जो लेख |
बाँच न पाये खग उसे , करते
साँझ परेख ||
धूप अँधेरे में गयी , दिन की
लिखी किताब |
दिन भर किरनें धूप का करती
रहीं हिसाब ||
वर्षा वर्णन में रंग और गंध के दृश्य –
श्रव्य बिम्बों का प्रयोग वर्षा के वातावरण की दृष्टि में सहायक है |कल्पना के साथ
संवेदन के संश्लिष्ट चित्रण से यह वर्णन मोहक बन गया है – भावाक्षिप्त दशा के कुछ
चित्र देखें –
बूंदों के संग उठ रही ,
सौंधी सौंधी गंध |
धरती अब रचने लगी , हरियाली
के छन्द ||
फीका फीका चंद्रमा , बादल
तेरह तीन |
ख़ामोशी की गोद में , रात बड़ी
गमगीन ||
बरस रही है आँख से , उमड़
घुमड़ कर पीर |
धरती तपती देखकर , बादल हुए
अधीर ||
सागर उड़ता व्योम में , पकड
हवा की बाँह |
तपती धरती पर हुई , अब बदरौटी
छाँह ||
वर्षा ने आकर यहाँ , बिछा
दिया कालीन |
दादुर बैठे पीटते ,
ध्यानमग्न हो टीन ||
मखमल से काटी गयीं ,
बहूटियों की देह |
खद्योतों की देह में , है
विद्युत् का गेह ||
दिल धक् – धक् – धक् कर रहा ,
कौंधा लपका देख |
तड़ित तड़प कर ठोंकती , संज्ञा
के तन मेख ||
मानव की चिर सहचरी प्रकृति कवियों के
लिए समाद्रित रही है | यह विषय जितना ही पुराना हो चुका है , उतना नवीन भी है |
भारत की प्राकृतिक शोभा जितनी वैविध्यपूर्ण है , उतनी ही संस्कारक्षम भी | भारतीय
आम आदमी आज भी अपने प्राकृतिक परिवेश से चलित होता है और कैसी भी बिषम परिस्थिति
हो अपनी प्रकृतिजन्य संस्कारशीलता का त्याग नहीं करता | सुदूर ग्रामांचलों के लोग
शहरी बनकर भी अपने गाँव और जंगलों में , पर्वतों और सागर से अलग कहाँ हो पाते हैं
| मेघदूत की भूमि का संस्कार कविवर शर्माजी की प्रकृति सम्पन्न कविता का गौरव है |
कवि प्रकृति की भंगिमाओं को तटस्थ वयां करना चाहते हुए भी बारम्बार मानवीय सुख –
दुख से ऊपर नहीं उठ पाता | उनके द्वारा रचित दोहावली धारा प्रवाह नये – नये रूपों
में प्रकृति का मूल्यांकन करती चलती है | कभी संघर्षों की छाया में कुरुक्षेत्र का
स्मरण आता है तो कभी विजयपर्व पर रची गयी दीपमालिका का सुकुमार सौंदर्य | अंधकार
और प्रकाश का सनातन संघर्ष नये रूपों में इस काव्य में संकलित किया गया है धृष्ट
या अशिष्ट बलात्कारी आचरणों के लिए उसकी भर्त्सना भी की गयी हे | **
( आगे का भाग , भाग – 7 में )
- डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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