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12.1.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " समय साँप के खाये - जैसा "

 यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -














मय साँप के खाये – जैसा

 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने

पियरायी है साँस सिंदूरी |

 

      हँसी – खुशी की गरमाहट को

      ठंडक ने गहरे दफनाया ,

      चहल – पहल ही नहीं , सभी को

      सन्नाटे ने सुन्न बनाया ;

            सूरज अभी – अभी डूबा पर ,

            धूप हुई मृग की कस्तूरी |

 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने

पियरायी है साँझ सिंदूरी |

 

      कुहरे के मोटे परदे के

      पार नहीं जाती हैं आँखें ,

      किन्तु टंगी रह गयीं दृष्टि की

      चौखट पर पेड़ों की शाखें ;

            समय साँप के खाये – जैसा ,

            कैसे कटे रात की दूरी |

 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने

पियरायी है साँझ सिंदूरी |

 

      सत्याग्रह करती हैं , मन के

      द्वारे अनागता इच्छाएँ ,

      कब तक अँजुरी भर सपनों से

      हम अपने अभाव दफनाएँ ;

            चढ़ी ज़िन्दगी के खाते में ,

            सिर्फ अँधेरे की मजबूरी |

 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने

पियरायी है साँझ सिंदूरी |

 

      लेकिन अब भी तो कोल्हू पर

      निशि भर खूब जाग होती है ,

      सच है , वहीं लोग जुड़ते हैं

      जहाँ कि एक आग होती है ;

            यही आग तो कम करती है

            मानव से मानव की दूरी |

 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने

पियरायी है साँझ सिंदूरी | **


               - श्रीकृष्ण शर्मा 

 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

 

 


2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर

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  2. बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |

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