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9.12.20

कवि देवेन्द्र शर्मा ' इन्द्र ' - “ ते हि नो दिवसाः गताः ” और “ फागुन के हस्ताक्षर ” ( भाग - 2 )

 






हम लोगों की ये गोष्ठियाँ टॉमसन हॉस्टल के अतिरिक्त वर्द्धमान हाउस , चौराहा धाकरान और ईदगाह कॉलोनी–जहाँ क्रमशःदीनानाथ , श्रीकृष्ण और मेरे निवास थे – में भी सम्पन्न होने लगीं | ...  

    

( भाग – 2 )


हम लोगों की ये गोष्ठियाँ टॉमसन हॉस्टल के अतिरिक्त वर्द्धमान हाउस , चौराहा धाकरान और ईदगाह कॉलोनी – जहाँ क्रमशः दीनानाथ , श्रीकृष्ण और मेरे निवास थे – में भी सम्पन्न होने लगीं | उन्हीं दिनों हम सभी मित्रों ने मिलकर ‘ नक्षत्र – मण्डल ’ नामक एक काव्य – मंच की स्थापना की थी | सर्वश्री द्वारिका प्रसाद कुलश्रेष्ठ , राम सहाय ‘ मधुकर ’ , त्रिलोकी प्रसाद शर्मा , कामता प्रसाद साहू ‘ उदित ’ और सुखराम सिंह चौधरी आदि भी धीरे – धीरे ‘ नक्षत्र – मण्डल ’ सदस्य हो गये | ‘ नक्षत्र – मण्डल ’ के तत्वावधान में गोष्ठियों की एक यह विशेषता भी थी कि उनमें आगरा कॉलेज के तत्कालीन काव्य – प्रेमी प्राध्यापकों ने भी रूचि लेना शुरू कर दिया था | प्रो. कमलेश और प्रो. घनश्याम अस्थाना न केवल इन गोष्ठियों में उपस्थित रहते , अपितु काव्य – पाठ भी किया करते थे | मध्यप्रदेश में नौकरी के लिए जाने से पेश्तर शायद ही कोई ऐसी गोष्ठी रही होगी जिसमें श्रीकृष्ण शर्मा ने काव्य – पाठ न किया हो | परिवार का आर्थिक आधार पुष्ट न होने के कारण जहाँ श्रीकृष्ण शर्मा की आगे की पढ़ाई में व्यवधान आया , वहीँ उन्हें जीविका के लिए भी अपेक्षाकृत अधिक संघर्ष करना पड़ा | मध्यप्रदेश में स्थानान्तरित होने के पश्चात् श्रीकृष्ण को एक लम्बे समय तक आदिवासी क्षेत्र में रहना पड़ा |

          सन 1956 में एम. ए. करने के बाद जगतप्रकाश , वीरेन्द्र परिहार , दीनानाथ श्रीवास्तव और चौधरी सुखराम सिंह को नौकरियों की वजह से आगरा छोड़ना पड़ा | में आगरा कॉलेज के हिन्दी विभाग में नियुक्त हो गया और वहाँ 5 वर्ष तक अस्थायी प्राध्यापक के रूप में कार्य – रत रहा , किन्तु सन 1961 में मैं भी सहारनपुर चला गया | कहने का आशय यही है कि जीविकोपार्जन की विवशताओं ने हम अभी को तितर – बितर कर दिया | जो लोग दिन – रात के साथी थे वे अब अलग – अलग शहरों में एक दूसरे से महज चिट्टी – पत्रियों के माध्यम से मिलने लगे | कुछ वर्षों तक गर्मियों की लम्बी छुट्टियों में हम लोगों का आगरा में मिलना – जुलना बना रहा और आगे चलकर उसमें भी पूर्ण विराम की – सी स्थिति आ गयी | संपर्कों की भावनात्मक प्राणोष्मता काल के साथ प्रतीक्षा की हिमानी शीतलता में पथराने लग गयी |

          समाज – व्यवस्था और मानवीय – सम्बन्धों के पारस्परिक निर्वहण में हमें भारतीय डाक विभाग का ह्रदय से आभार स्वीकार करना होगा जिसने देशान्तर और कालान्तर के व्यवधानों पर सदैव एक भावनात्मक सेतु का निर्माण किया है | पारस्परिक हर्ष – विषाद के सम्प्रेषण और आदान – प्रदान में डाक विभाग की प्रारम्भिक चरण से ही अपनी एक श्लाघनीय भूमिका रही है | मेरे जैसे स्थाणु और यात्रा भीरु व्यक्ति को इस विभाग के उदारतापूर्ण सहयोग ने ही शेष समाज से जोड़े रखा है और देश के असंख्य रचनाधर्मियों , पाठकों , प्रशंसकों , समीक्षकों , सम्पादकों एवं शोधकर्ताओं के साथ मुझे एकात्म बनाये रखा है | पिछले 40 – 50 वर्षों में मुझे अपने सगे – सम्बन्धियों , परिचित बन्धुओं और मित्रों के जो 15 – 20 हजार पत्र मिले होंगे उनमें से , मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि प्रायः पाँच सौ पत्र तो भाई श्रीकृष्ण शर्मा के ही होंगे , जिनमें से 200 पत्र तो सम्भवतः आज भी मेरे पास सुरक्षित होंगे | यह सब , मैं यही प्रमाणित करने की दृष्टि से लिख रहा हूँ कि श्रीकृष्ण सम्बन्धों को अक्षुण्ण बनाये रखने में कितने संवेदनशील , ईमानदार, मुस्तैद और सक्रिय व्यक्ति हैं | उनके व्यवहार में कुछ ऐसी आत्मीयता , सरलता , निश्छलता और मर्मस्पर्शी भावुकता है जो अपने रस – चक्र में जिस व्यक्ति को एक बार बाँध लेती है , वह जीवन भर के लिए उनका अभिन्न होकर रह जाता है | **

    ( आगे का , भाग – 3 में )  

                        - देवेन्द्र शर्मा ' इन्द्र '


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

 

          

 


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