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22.10.20

प्रसिद्ध कहानीकार पवन शर्मा की कहानी ---- " सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े " ( भाग - 3 )

 पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है -











                         सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े 

                          ( भाग – 2 से आगे )

                                                                   अंतिम भाग 

          नरेश फिर चुप रहा | उसकी आँखों में प्रश्न उभर आया |

          “ तू जानता है न कि मुझे पिताजी की नौकरी मिली थी |” मैंने कहा|

          नरेश की आँखों में प्रश्न ज्यों – का – त्यों टंगा हुआ था |

          “ यदि ऐसा नहीं होता तो शायद मैं भी तेरी ही तरह ... ” अबकी बार मैंने अपनी बात जान – बूझकर अधूरी छोड़ी |

          नरेश बैठे – बैठे बार – बार अपना पहलू बदलने लगा | एक बैचेनी थी, जो उसे बराबर जकड़ती जा रही थी|

          “ पिताजी की मौत ने हमारे जीवन में सुख – ही – सुख भर दिए | ” बेहद सपाट स्वर था मेरा |

          “ व्हाट डू यू मीन ? ” नरेश के मुँह से घुटी – घुटी चीख निकल पड़ी और वह मुझे आँखें फाड़ – फाड़कर देखने लगा |

          “ सौ फीसदी सच | उनके मरने पर मुझे अनुकम्पा नियुक्ति मिली | पिताजी का फण्ड मिला – लगभग दो – सवा दो लाख | एल.आई.सी. की दो पॉलिसी के डेढ़ – डेढ़ लाख मिले | एक साथ इतना पैसा ! ”

          एकाएक नरेश को दीवाल पर रेंगती छिपकली दिखाई दी | वह तेजी से उठा और दोनों हाथों को ऊपर करके हिलाते हुए छिपकली को भागने का प्रयास करने लगा | जब वह छिपकली भगा रहा था , तब उसके मुँह से अजीब – सी अस्पष्ट आवाजें निकल रही थीं | छिपकली को भगाकर वह बिस्तर पर बैठकर मुझे ताकने लगा |

          मैंने बात जारी रखी , “ उसी पैसे से रुकमा की शादी की | उसी पैसे से छोटू को गाँव में दुकान डलवा दी – खूब चल रही है | अम्मा को पेंशन मिल रही है | बाकी का पैसा बैंक में डाल रखा है , उसका ब्याज भी मिल रहा है | ”

          नरेश का मुँह खुला रह गया | आँखें बाहर निकलने लगीं |

          “ क्या पिताजी के जीवित रिटायर होने पर इतना पैसा मिलता ? ... क्या मैं और छोटू सेटल्ड हो पाते ? ”

          “ नेव्हर – नेव्हर | ” नरेश के मुँह से घरघराती आवाज निकली |

          “ अब तू ही बता कि पिताजी की मौत ने हमारे जीवन में सुख भरा या नहीं ? ” एकाएक मेरी आवाज धीमी हो गई , “ सच कहता हूँ कि मैं तेरी जगह होता तो इन दिनों के लिए अपने भीतर उर्जा बचाकर नहीं रख पाता | ”

          अनजाने में ही मैंने एक कटु सत्य को नरेश के सामने रख दिया | हो सकता है कि पिताजी की आत्मा को बेहद पीड़ा पहुँची हो , क्योंकि लोग यही कहते हैं कि असमय मरने वाले की आत्मा भटकती रहती है | शायद यहीं कहीं पिताजी की भी आत्मा भटक रही हो | ये सोचकर मैं क्षणभर के लिए विचलित हो गया |

          बाहर बौछारें तेज हो गईं | तेज हवा से खिड़की के पल्ले बन्द होने तथा खुलने लगे | मैंने उठकर खिड़की बन्द की | बिस्तर पर लेटे हुए मैंने घड़ी देखी – सवा दो बज रहे हैं | हमें नींद लेशमात्र नहीं है | ऐसा लग रहा है कि बातें करते हुए सारी रात गुजार देंगे |

          नरेश ने पैकिट में से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली और जल्दी – जल्दी कश लेने लगा | मैं जानता हूँ कि जब वह उद्विग्न होता है , तब वह सिगरेट अवश्य पीता है और जल्दी – जल्दी कश लेता है |

          “ एक – एक कप चाय हो जाए | ” नरेश ने कहा |

          मैं इस स्थिति से उबरने का प्रयास कर रहा था | अच्छा हुआ नरेश ने ही मुझे उबरने का मौका दे दिया |

          “ मैं भी यही सोच रहा था | ” कहकर मैं रसोई में चाय बनाने चला गया |

          नरेश ने उठकर खिड़की खोली | अभी भी तेज हवा चल रही थी | खिड़की के पल्लों को पकड़कर खड़ा वह बाहर अँधेरे में कुछ देख रहा था और जल्दी – जल्दी सिगरेट के कश ले रहा था |

          बौछारें हल्की हो गई थीं |

          थोड़ी देर बाद मैं दो कप में चाय ले आया | नरेश ने मेरे हाथ से एक कप थामा और बिस्तर पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेने लगा |

          “ तूने बताया नहीं कि तेरा आना कैसे हुआ ? ” चाय की चुस्कियों के बीच मैंने फिर से उसकी ओर सवाल उछाला | मेरे द्वारा उछाले गए सवाल पर नरेश फिर खामोश रहा – पहले की तरह |

          थोड़ी देर के लिए कमरे में सन्नाटा फैल गया |

          नरेश चाय की चुस्कियों के बीच सिगरेट के कश भी ले रहा था | थोड़ी देर बाद उसने सिगरेट बुझाकर फेंक दी | चाय ख़त्म कर हमने अपने – अपने खाली कप टेबिल पर रख दिए |

          “ मैं सुबह पहली बस से गाँव चला जाउँगा | ” एकाएक नरेश ने जाने की घोषणा की |

          “ क्यों ? ... कल और रुकता | ” मैंने कहा |

          “ नहीं रुक सकता | परसों मुझे सुधा को उसकी ससुराल से विदा कराकर लाना है | ”

          “ सुधा की शादी हो गई ? ” मुझे आश्चर्य हुआ |

          “ पिछले माह | ” कहने के बाद नरेश अपने नरेश दोनों हाथों की हथेलियाँ रगढ़ने लगा |

          “ शादी का कार्ड नहीं भेजा | खबर तक नहीं की | ” मैंने शिकायत भरे लहजे में कहा |

          “ मैंने सोचा कि तुझे खबर मिली होगी | ” कहने के बाद नरेश दीवाल – घड़ी को देखने लगा | पौने चार बज रहे हैं | साढ़े पाँच पर पहली बस जाती है |

          “ क्या मुझे सपना आया था | ” मैंने बनावटी रोष दर्शाया और सिगरेट सुलगाई |

          “ अरे ! ... पिताजी तो सुधा की शादी के डेढ़ माह पहले से तेरे ऑफिस के चक्कर काटने लगे थे | ”

          “ क्यों ? ”

          “ अपने जी.पी.एफ. से पार्टफाइनल सेंक्शन करवाने के लिए | ”

          “मैं उन्हें पहचान नहीं पाया था | ”

          नरेश कुछ कहना चाहता था , किन्तु कह नहीं पाया | केवल होंठ हिल रहे थे | चेहरा सफ़ेद होने लगा | वह उठा और अपने बैग में से कुछ फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा निकाला | उसने फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा मेरी ओर बढ़ा दिया | होठों के बीच सिगरेट दबाकर मैं उन्हें उलट – पलटकर देखने लगा | देखने के बाद सिगरेट उँगलियों में फंसाई |

          बाहर बारिश पूरी तरह से थम गई थी |

          एकाएक नरेश ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए , “ तू पिताजी का पार्टफाइनल सेंक्शन करवा दे | तेरा अहसान होगा हमारे ऊपर | बोल , करवाएगा कि नहीं ? ”

          थोड़ी देर मैं चुप रहा , फिर चालू छाप उत्तर दिया , “ कोशिश करूँगा | ”

          “ कोशिश नहीं – करवाना है | ” कहते – कहते नरेश के चेहरे पर तनाव के साथ विद्रूपता उभर आई , “ तू नहीं जानता – शादी में जिनसे कर्जा लिया था , अब वो लोग हर दूसरे – तीसरे दिन छाती पर खड़े हो जाते हैं | ”

          मैं फिर से थोड़ी देर के लिए चुप रहा | कुछ सोचता रहा |

          “ अपने यहाँ का पूरा सिस्टम ही ख़राब है – ये बात जानता है न तू ... बिना गिव एण्ड टेक के कुछ नहीं होता आजकल | ” मैंने बुरा – सा मुँह बनाया , फिर नरेश के चेहरे पर अपनी नजरें स्थिर कीं | सिगरेट का कश भरा | धुआँ छोड़ा , फिर कहा , “ तू अपना आदमी है | पाँच परसेंट ही देना | सभी से दस परसेंट लेते हैं | मैंने अपना शेयर छोड़ दूँगा | कम लगेगा | ”

          नरेश के भीतर कुछ चटक गया ... चेहरे पर तनाव के साथ उभरी विद्रूपता गाढ़ी हो गई ... कानों में असंख्य सीटियाँ बजने लगीं | एक अनचाहा सन्नाटा कमरे की दीवालों से टकराने लगा | नरेश जूझने लगा सन्नाटे से ... सिगरेट की आँच से उँगलियों में जलन होने लगी | नरेश ने उँगलियों में फँसी सिगरेट झटके से फेंक दी |

          नरेश को फिर से दीवाल पर रेंगती छिपकली दिखाई दी | वह उठा और फिर से दोनों हाथों को ऊपर उठाकर छिपकली को भगाने लगा | छिपकली भागी नहीं , जैसे की दीवाल पर चिपक गई हो |

          “ बोल क्या कहता है ? ” जब वह छिपकली भगा रहा था , तब मैंने पूछा |

          नरेश ने कोई उत्तर नहीं दिया |

          छिपकली भगाते हुए नरेश के मुँह से अस्पष्ट आवाजें फिर से निकलने लगीं | अबकी बार आवाजें बहुत तेज थीं |

          पूरे कमरे में सिगरेट की राख तथा बुझे हुए टुकड़े बेतरतीब ढंग से बिखरे हुए हैं |

          नरेश अभी भी अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर छिपकली को भगा रहा है | मेरी हिम्मत नहीं होती कि मैं फिर से पूछूँ कि बोल , क्या कहता है ? **

                                             ( समाप्त )

पवन शर्मा

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com   


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

         

         

                                  

                 

           


4 comments:

  1. मेरी कहानी को पाठकों के समक्ष लाने के लिए साधुवाद सुनील जी.. 🙏

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  2. मेरी कहानी को पाठकों के समक्ष लाने के लिए साधुवाद सुनील जी.. 🙏

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