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कवि कमलेश शर्मा " कमल " की कविता - '' पैसों की माया ''













पैसों की माया

पैसों   की   ये   कैसी   माया,   कोई   समझ   नहीं   पाता ।
दिल   के   रिश्ते   नाम   के   हैं ,  पैसों  से  सबका  नाता ।।
क्या - क्या  करवाता  है  पैसा,   भेद  कोई  न  जान  सका ,
कभी - कभी तो खुद पर भी,  विश्वास मुझे अब  न  आता ।

भाई - भाई की जान का दुश्मन,  बैरी कर  देता  है  सबको ।
माता पिता को घर से निकाला, पैसा प्यारा लगता इनको।।
पैसों   से   ही  बनते  दुश्मन,  कोई  पैसों  से  मित्र  बनाता ।
नफरत का आलम है यहाँ, पर सब चाहते है  बस  तुमको ।।

बिन   पैसों  के  घर  न  चलता,  ना  चलता  कोई  व्यापार ।
लाज शर्म सब मोल  बिके  हैं , बिकता  है  पैसों  से  प्यार ।।
कोई   मजहब   या   दफ्तर  हो,  चाहे  नेता,  अभिनेता  हो ।
हर इंसा  की  एक  तम्मना,  चाहे  बंगला,  ऑफिस,  कार ।।

दिन रात बस एक  ही  मन  में,  मेरा  धन  और  मेरा  पैसा ।
साथ न  कुछ  भी  ले  जाता  है,  रह  जाता  वैसे  का  वैसा ।।
घर   की   खुशियाँ   भेंट  चढ़  गई,  माया  के  इसी  फेर  में ।
भोगना पड़ता है फल  सबको,  मिलता  है  जैसे  को  तैसा ।। **



   - कमलेश शर्मा  '' कमल  ''
 
     मु.पो.- अरनोद, जिला:- प्रतापगढ़(राज.)












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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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