यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
वैशाख
खो गया है सब कुछ ,
समय की अतल गहराइयों में |
टिकती नहीं है ताज़गी ,
निरर्थक अँगड़ाइयों में |
हवा के हमराह
तीतरपाँखी मेघ ,
आकाश की आँखें नहीं ढँकते |
प्रत्यंचा - सी तनी
गद्दर काया तलैया की ,
झुर्रियों के सरीसृप डंसते |
यहाँ - वहाँ
कहीं - नहीं
अता - पता वसन्त का |
मोहक गीत सरसों के
खेत नहीं रचता |
... और
ढाक तीन पात ,
जल - जल कर हुआ खाक |
अन्त नहीं
लेकिन वैशाख का ,
रात - दिन बजती
पीपल की शहनाइयों में | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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