यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
सावन - घन
गगनांगन सावन - घन |
झरते झर - झर जलधर ,
भरते सर - सरि - सागर ,
बरसे री , बरसे घन ,
घुमड़ - घहर उमड़ - अहर ,
लरज - तरज सहज गरज ,
सुन री सुन , वंशी - स्वप्न |
गगनांगन सावन - घन |
झकझोरे झंझा से ,
दुपहर में संझा - से ,
चंचल ये सुभग विहग ,
सजल - तरल - दृग ये मृग ,
विद्युत के बन्धन में ,
आकुल तन , व्याकुल मन |
गगनांगन सावन - घन |
तट पर के बाँसों पर ,
कोदों औ' काँसों पर ,
निर्मोही प्रियतम बिन ,
गुमसुम - सी साँसों पर ,
बरसे री , तरसे जी
पर जैसे - आँसू - कन |
गगनांगन सावन - घन | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुंदर अत्यंत सराहनीय
ReplyDeleteआभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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