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27.6.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " सावन - घन "

 यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -















सावन - घन 


गगनांगन सावन - घन |


झरते झर - झर जलधर ,

भरते सर - सरि - सागर ,

बरसे री , बरसे घन ,

घुमड़ - घहर  उमड़ - अहर ,

          लरज - तरज सहज गरज ,

          सुन री सुन , वंशी - स्वप्न |

गगनांगन सावन - घन |


          झकझोरे झंझा से ,

          दुपहर में संझा - से ,

          चंचल ये सुभग विहग ,

          सजल - तरल - दृग ये मृग ,

                    विद्युत के बन्धन में ,

                    आकुल तन , व्याकुल मन |


गगनांगन सावन - घन |


तट पर के बाँसों पर ,

कोदों औ' काँसों पर ,

निर्मोही प्रियतम बिन ,

गुमसुम - सी साँसों पर ,

          बरसे री , तरसे जी 

          पर जैसे - आँसू - कन |

गगनांगन सावन - घन |  **


                                          - श्रीकृष्ण शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


2 comments:

  1. बहुत बहुत सुंदर अत्यंत सराहनीय

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  2. आभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी |

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