यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
पतझर ( दो )
तरु से उतर
धरा पर भागे ,
अनगिनती पत्ते |
अवसर पा
सिर पर आ बैठे ,
हरियाली को
रहे समेंटे
सुविधा पाने
में थे आगे ,
अनगिनती पत्ते |
जिधर हवा
अस्तित्व उधर था ,
मुख में बसा
शंख का स्वर था ,
फिर भी रहे
किन्तु हतभागे ,
अनगिनती पत्ते |
तरु से उतर
धरा पर भागे ,
अनगिनती पत्ते | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय आलोक सिन्हा जी , आप हमेशा प्रोत्साहित करते हैं | आपका बहुत - बहुत धन्यवाद |
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