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कवि नरेंद्र आचार्य की कविता - " मैं आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ "

 










मैं आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ 


मैं   आम   आदमी ,  आम   आदमी   ही   रहना   चाहता    हूँ ।

नहीं बनना खास मुझे, आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ ।


अक्सर खास आदमी बनकर लोग, आम आदमी को भूल जाते हैं ।

औरों  को  तो  छोड़ो   खुद  लोग ,  पुरानी  पहचान  भूल  जाते  हैं ।


मैं  आम  आदमी,  आम  आदमी  ही  रहना  चाहता  हूँ ।


पंख  क्या  मिले  उड़ने  को ,  लोगों   ने   अपनों   से   आँखें   फेर  ली ।

खून के रिश्तों को छोड़कर, लोगों ने शानो-शौकत से मोहब्बत कर ली ।


मैं  आम  आदमी ,  आम  आदमी  ही  रहना  चाहता  हूँ ।


आदमी खास बनकर, माँ - बाप भाई - बहन को भूल बैठा ।

खासियत के चक्कर  में , खुद  अपनी  औकात  भूल  बैठा ।


मैं  आम  आदमी ,  आम  आदमी  ही  रहना  चाहता  हूँ ।


खासियत   तो   सिर्फ   चार   दिन   की   चाँदनी   है ।

बाकी तो जहाँ में ,  आम आदमी बनकर ही जीना है ।


मैं    आम   आदमी ,  आम   आदमी   ही   रहना   चाहता   हूँ।

नहीं बनना खास मुझे, आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ।  **



                                                            - नरेंद्र आचार्य 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


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